जयपुर.राज्य में पदोन्नतियों पर लगी रोक सरकार ने हटा ली है। विभिन्न विभागों में अब करीब 50 हजार लोगों के प्रमोशन हो सकेंगे। इसके लिए सभी विभागों को 1 अप्रैल, 1997 से वरिष्ठता सूचियां नए सिरे से तैयार करनी होंगी।
पदोन्नति में आरक्षण के लिए रोस्टर के अनुसार आरक्षित वर्ग को 16 और 12 प्रतिशत के हिसाब से कुल 28 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं देने के आदेश भी सरकार ने दिए हैं। कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव खेमराज ने बताया कि सरकार ने 28 दिसंबर, 2002 और 25 अप्रैल, 2008 की उन दोनों अधिसूचनाओं को भी वापस ले लिया है, जिन्हें पूर्व में हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था।
पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में राज्य प्रशासनिक सेवा और राजस्थान विभिन्न संवर्ग सेवा नियमों में संशोधन किया है।
कोई पदावनत नहीं होगा :
नोटिफिकेशन में सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह आदेश 1 अप्रैल, 1997 से लागू माना जाएगा। इस बीच यदि आरक्षित वर्ग के किसी कर्मचारी ने पहले पदोन्नति ले ली है और उस वर्ग में उनका प्रतिनिधित्व निर्धारित सीमा से ज्यादा है, तो ऐसी स्थिति में उसे पदावनत नहीं किया जाएगा।
उसके लिए शैडो पोस्ट सृजित करके उसके प्रमोशन को एडहॉक माना जाएगा। आरक्षित वर्ग के अलावा भी अन्य किसी कर्मचारी के साथ ऐसी स्थिति बनती है तो उसे भी पदावनत नहीं किया जाएगा।
पिछले 9 माह से रुके हुए थे प्रमोशन :
पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण राज्य सरकार ने 28 दिसंबर 2010 को सभी विभागों में पदोन्नतियां (डीपीसी) करने पर रोक लगा दी थी।
इसकी वजह यह बताई गई थी कि अगर किसी संवर्ग में किसी कर्मचारी या अधिकारी की वरिष्ठता अधिसूचना दिनांक 28 दिसंबर 2002 और 25 अप्रैल, 2008 से प्रभावित होती है तो पदोन्नति कार्यवाही स्थगित रखी जाए। इससे पहले सरकार ने अभियान चलाकर एक साल में करीब 40,000 लोगों के प्रमोशन किए थे।
यथावत रहेगी वरिष्ठता
रविवार को जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि आरक्षित वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों की वरिष्ठता यथावत रहेगी। उन्हें तब तक पदोन्नति में आरक्षण दिया जाएगा, जब तक कि रोस्टर के अनुसार उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व का लक्ष्य (अजा का 16 और अजजा का 12 प्रतिशत) पूरा नहीं हो जाता।
अगर रोस्टर पूरा हो जाता है तो उसके बाद प्रमोशन के लिए रिप्लेसमेंट के सिद्धांत पर विचार किया जाएगा। यानी जो पद अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए चिन्हित किए गए हैं, उन पदों में से कोई पद खाली होता है तो उस पर उसी संवर्ग का कर्मचारी पदोन्नत किया जाएगा।
झगड़ा आरएएस का, प्रभावित पूरी ब्यूरोक्रेसी :
पदोन्नति के लिए वरिष्ठता को लेकर झगड़ा सबसे पहले राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में शुरू हुआ था। इसी वजह से पिछले 15 साल से उनकी पदोन्नतियां नहीं हो पा रही थीं, लेकिन इस बार सरकार ने सभी विभागों में पदोन्नतियां रोक दी थीं।
मिशन 72 ने बताया कोर्ट के आदेश की अवहेलना
इधर, मिशन 72 ने सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को न्यायालय के निर्णय की अवहेलना बताते हुए 72 प्रतिशत समाज के साथ धोखा बताया है। प्रदेश महामंत्री पूरणचंद झरीवाल के अनुसार इस अधिसूचना में आरक्षित वर्ग के लोगों की वरीयता को यथावत जारी रखना ही कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने एम. नागराज के फैसले में कहा था कि सरकार चाहे तो पदोन्नति में आरक्षण दे सकती है, लेकिन उसे पहले तीन बातों पर ध्यान देना होगा।
1. पिछड़ापन,
2. कार्यकुशलता,
3. पर्याप्त प्रतिनिधित्व।
इस बारे में सरकार ने के.के. भटनागर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर माना कि अनुसूचित जाति, जनजाति का सदस्य होना ही पिछड़ापन है। कार्यकुशलता को लेकर सरकार का मानना था कि पदोन्नति के समय संबंधित कर्मचारी की एसीआर (गोपनीय प्रतिवेदन) देखा जाता है, इसलिए कार्यकुशलता का कोई मुद्दा नहीं है।
जहां तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व की बात है तो पदोन्नति के समय अब इसका ध्यान रखा जाएगा कि आरक्षित वर्ग को 28 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं मिल पाएगी।
हाईकोर्ट में टली पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई
हाई कोर्ट में सोमवार को पदोन्नति में आरक्षण मामले में सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को उनकी पुन:अर्जित वरिष्ठता देने के आदेश का पालन नहीं करने को चुनौती देने वाली बजरंग लाल शर्मा व समता आंदोलन समिति की अवमानना याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी।
सुनवाई मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ में होनी थी लेकिन कार्य की अधिकता के कारण अब मंगलवार को होगी।
पदोन्नति में आरक्षण के लिए रोस्टर के अनुसार आरक्षित वर्ग को 16 और 12 प्रतिशत के हिसाब से कुल 28 प्रतिशत से अधिक आरक्षण नहीं देने के आदेश भी सरकार ने दिए हैं। कार्मिक विभाग के प्रमुख सचिव खेमराज ने बताया कि सरकार ने 28 दिसंबर, 2002 और 25 अप्रैल, 2008 की उन दोनों अधिसूचनाओं को भी वापस ले लिया है, जिन्हें पूर्व में हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था।
पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में राज्य प्रशासनिक सेवा और राजस्थान विभिन्न संवर्ग सेवा नियमों में संशोधन किया है।
कोई पदावनत नहीं होगा :
नोटिफिकेशन में सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह आदेश 1 अप्रैल, 1997 से लागू माना जाएगा। इस बीच यदि आरक्षित वर्ग के किसी कर्मचारी ने पहले पदोन्नति ले ली है और उस वर्ग में उनका प्रतिनिधित्व निर्धारित सीमा से ज्यादा है, तो ऐसी स्थिति में उसे पदावनत नहीं किया जाएगा।
उसके लिए शैडो पोस्ट सृजित करके उसके प्रमोशन को एडहॉक माना जाएगा। आरक्षित वर्ग के अलावा भी अन्य किसी कर्मचारी के साथ ऐसी स्थिति बनती है तो उसे भी पदावनत नहीं किया जाएगा।
पिछले 9 माह से रुके हुए थे प्रमोशन :
पदोन्नति में आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने के कारण राज्य सरकार ने 28 दिसंबर 2010 को सभी विभागों में पदोन्नतियां (डीपीसी) करने पर रोक लगा दी थी।
इसकी वजह यह बताई गई थी कि अगर किसी संवर्ग में किसी कर्मचारी या अधिकारी की वरिष्ठता अधिसूचना दिनांक 28 दिसंबर 2002 और 25 अप्रैल, 2008 से प्रभावित होती है तो पदोन्नति कार्यवाही स्थगित रखी जाए। इससे पहले सरकार ने अभियान चलाकर एक साल में करीब 40,000 लोगों के प्रमोशन किए थे।
यथावत रहेगी वरिष्ठता
रविवार को जारी नोटिफिकेशन में कहा गया है कि आरक्षित वर्ग के अधिकारी-कर्मचारियों की वरिष्ठता यथावत रहेगी। उन्हें तब तक पदोन्नति में आरक्षण दिया जाएगा, जब तक कि रोस्टर के अनुसार उनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व का लक्ष्य (अजा का 16 और अजजा का 12 प्रतिशत) पूरा नहीं हो जाता।
अगर रोस्टर पूरा हो जाता है तो उसके बाद प्रमोशन के लिए रिप्लेसमेंट के सिद्धांत पर विचार किया जाएगा। यानी जो पद अनुसूचित जाति, जनजाति के लिए चिन्हित किए गए हैं, उन पदों में से कोई पद खाली होता है तो उस पर उसी संवर्ग का कर्मचारी पदोन्नत किया जाएगा।
झगड़ा आरएएस का, प्रभावित पूरी ब्यूरोक्रेसी :
पदोन्नति के लिए वरिष्ठता को लेकर झगड़ा सबसे पहले राज्य प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों में शुरू हुआ था। इसी वजह से पिछले 15 साल से उनकी पदोन्नतियां नहीं हो पा रही थीं, लेकिन इस बार सरकार ने सभी विभागों में पदोन्नतियां रोक दी थीं।
मिशन 72 ने बताया कोर्ट के आदेश की अवहेलना
इधर, मिशन 72 ने सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को न्यायालय के निर्णय की अवहेलना बताते हुए 72 प्रतिशत समाज के साथ धोखा बताया है। प्रदेश महामंत्री पूरणचंद झरीवाल के अनुसार इस अधिसूचना में आरक्षित वर्ग के लोगों की वरीयता को यथावत जारी रखना ही कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने एम. नागराज के फैसले में कहा था कि सरकार चाहे तो पदोन्नति में आरक्षण दे सकती है, लेकिन उसे पहले तीन बातों पर ध्यान देना होगा।
1. पिछड़ापन,
2. कार्यकुशलता,
3. पर्याप्त प्रतिनिधित्व।
इस बारे में सरकार ने के.के. भटनागर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर माना कि अनुसूचित जाति, जनजाति का सदस्य होना ही पिछड़ापन है। कार्यकुशलता को लेकर सरकार का मानना था कि पदोन्नति के समय संबंधित कर्मचारी की एसीआर (गोपनीय प्रतिवेदन) देखा जाता है, इसलिए कार्यकुशलता का कोई मुद्दा नहीं है।
जहां तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व की बात है तो पदोन्नति के समय अब इसका ध्यान रखा जाएगा कि आरक्षित वर्ग को 28 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं मिल पाएगी।
हाईकोर्ट में टली पदोन्नति में आरक्षण मामले की सुनवाई
हाई कोर्ट में सोमवार को पदोन्नति में आरक्षण मामले में सामान्य वर्ग के कर्मचारियों को उनकी पुन:अर्जित वरिष्ठता देने के आदेश का पालन नहीं करने को चुनौती देने वाली बजरंग लाल शर्मा व समता आंदोलन समिति की अवमानना याचिका पर सुनवाई नहीं हो सकी।
सुनवाई मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ में होनी थी लेकिन कार्य की अधिकता के कारण अब मंगलवार को होगी।
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