भरतपुर। गोपालगढ़ में तनावपूर्ण शांति है। ढील अवधि में भी सामान्य माहौल नहीं बन पा रहा है। मंगलवार को कर्फ्यू में 7 घंटे की ढील दी गई। बुधवार को भी यह छूट जारी रहेगी। हिंसा में मारे गए 6 जनों के शव मंगलवार को भी आरबीएम अस्पताल के पोस्टमार्टम कक्ष में रखे रहे और जयपुर एसएमएस से आए चिकित्सकों के दल मृतकों के परिजनों का इंतजार करते रहे।
शवों का पोस्टमार्टम बुधवार को स्थानीय प्रतिष्ठित नागरिकों की मौजूदगी में कराया जाए। राज्य सरकार ने देर रात भरतपुर जिला प्रशासन को यह निर्देश दिया। इधर, हिंसा में घायल एक युवक ने मंगलवार को जयपुर में दम तोड़ दिया। अब हिंसा में मृतकों की संख्या नौ हो गई है। हिंसा में मारे गए गांव पिपरोली निवासी इकबाल की पत्नी फरीदा को जिला कलक्टर गौरव गोयल ने पांच लाख का चैक सौंपा।
बींबा में शोकसभा
हरियाणा क्षेत्र के बींबा में मंगलवार को मेवात अमन कमेटी की ओर से शोकसभा हुई। राजनीतिक दलों के प्रमुख नेताओं ने गोपालगढ़ हिंसा को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। सभा में गृहमंत्री के त्याग पत्र, मृतकों के लिए भरतपुर या अलवर जिले में 25 बीघा भूमि आवंटित करने, मृतकों को शहीद का दर्जा देने, सभी शवों को साथ दफनाने और उस वक्त मुख्यमंत्री के मौजूद रहने की मांग की गई। शोकसभा से लौटते समय सांसद किरोड़ीलाल मीणा हरियाणा व राजस्थान सीमा पर धरने पर बैठ गए। समझाइश के बाद धरना खत्म कर दिया।
दुर्भाग्यपूर्ण घटना-पायलट
मंगलवार को गोपालगढ़ पहुंचे केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट ने पूरे घटनाक्रम पर गहरा दु:ख जताते हुए कहा है कि जो
हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था। उन्होंने शवों के दफनाने की अपील की। इधर, पीयूसीएल के जांच दल ने मंगलवार को गोपालगढ़ में हालात का जायजा लिया।
शाहनवाज ने कहा, सरकार जिम्मेदार
गोपालगढ़ पहुंचे भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन व पार्टी सांसदों के प्रतिनिधिमण्डल ने घटना के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया। इसमें जालोर सांसद देवजी पटेल, मेरठ सांसद राजेन्द्र अग्रवाल, आगरा सांसद रामशंकर कटेरिया, प्रदेश महामंत्री सतीश पूनिया व विधायक डॉ. दिगम्बर सिंह, विजय बंसल, जगतसिंह व अन्य शामिल थे। बाद में नई दिल्ली पहुंचे प्रतिनिधिमंडल ने आरोप लगाया कि कांग्रेस इसे साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रही है। जबकि इस घटना के पीछे पुलिस और राज्य सरकार का निकम्मापन जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि भट्टा पारसौल पहंुचने वाले राहुल गांधी आठ जनों के मारे जाने के बावजूद गोपालगढ़ क्यों नहीं गए?
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