नया जमीन अधिग्रहण बिल संसद में पेश हो गया है। ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने बताया कि बिल के कई प्रावधानों पर पार्टियों के बीच मतभेद है। वो इन मतभेदों को दूर करने के लिए 15 अक्टूबर को राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बिल पर चर्चा करेंगे।
जयराम रमेश के मुताबिक बिल के मसौदे में कुछ बदलाव भी किए गए हैं। दिसंबर तक जमीन अधिग्रहण कानून बन जाने की उम्मीद है।
जयराम रमेश ने नए जमीन अधिग्रहण बिल के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी के प्रयासों की भी सराहना की। जयराम रमेश ने बताया कि राहुल गांधी के प्रयासों से ही ये बिल 55 दिन में तैयार हुआ है।
नए जमीन अधिग्रहण बिल में प्रस्ताव है कि 1 से ज्यादा फसल देने वाली जमीन का सिर्फ 5 फीसदी हिस्से का ही अधिग्रहण किया जा सकता है। वहीं, 10 साल तक जमीन इस्तेमाल नहीं होने पर राज्य सरकार के पास चली जाएगी।
अधिग्रहण से पहले 80 फीसदी लोगों से सहमति जरूरी होगी। रेलवे, पोर्ट, हाइवे, पावर प्रोजेक्ट के लिए भी सहमति की शर्त लागू की जाएगी। गांवों में जमीन के बाजार भाव का 4 गुना मुआवजे के तौर पर देना होगा। शहरों में जमीन अधिग्रहण के लिए बाजार भाव का 2 गुना मुआवजा देना पड़ेगा।
अधिग्रहण से प्रभावित परिवार के 1 सदस्य को नौकरी देना जरूरी होगा। नौकरी नहीं देने पर 5 लाख रुपये का मुआवजा देना होगा। पहले साल हर महीने 3,000 रुपये और 2 से 20 साल तक हर महीने 2,000 रुपये देने होंगे।
प्रस्तावित नए जमीन अधिग्रहण बिल में अर्जेंसी क्लॉज का इस्तेमाल बहुत कम जगहों पर किया गया है। सुरक्षा से जुड़े मामलों में ही अर्जेंसी क्लॉज का इस्तेमाल किया जाएगा। बाकी मामलों में जमीन के मालिक की सहमति से ही अधिग्रहण किया जा सकता है।
हालांकि, उद्योग नए बिल के प्रस्तावों से खुश नजर नहीं आ रहा है। उद्योग का कहना है कि 1 से ज्यादा फसल देने वाली जमीन का अधिग्रहण मुश्किल बनाने से औद्योगीकरण में दिक्कतें आ सकती हैं। इसके अलावा निजी और सार्वजनिक उद्देश्य का मतलब साफ नहीं है।
बिल में उचित मुआवजा देने का प्रावधान तो दिया गया है, लेकिन मुआवजा तय करने के मापदंड साफ नहीं है। सही आंकड़ों न होने पर जमीन की उचित कीमत तय करना आसान नहीं होगा। 20 साल तक हर महीने 2,000 रुपये देने के प्रावधान पर उद्योग को कड़ा ऐतराज है।
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