जैसलमेर। रेतीले धोरों की धरा पश्चिमी राजस्थान कला और लोक संस्कृति की नदियाँ बहाने वाली रही है। ठेठ सीमावर्ती दुर्गम इलाकों से लेकर ढांणियों और शहरों तक गूंजती लोक लहरियाँ यहाँ की सांगीतिक पर पराओं का आज भी जीवंत दिग्दर्शन कराती हुई यह संदेश मुखरित करती हैं कि यहाँ का लोक संगीत दुनिया के मुकाबले इक्कीस ही ठहरता है।
पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर और बाडमेर जिलों में निवासरत मांगणियार ऐसा अनूठा समुदाय है जिसका हर सदस्य पर परागत लोक संगीत का संवाहक है। गाने बजाने का मौलिक हुनर इनकी वंश पर परा का मूल हिस्सा रहा है जो पीढियों से पूरे वेग के साथ प्रवाहित होता आया है।
इस क्षेत्र के मांगणियार कलाकार दुनिया के कई मुल्कों में अपने लोक संगीत की छाप छोड चुके हैं। प्रदेश व देश का कोई सा भी लोक साँस्कृतिक महोत्सव मांगणियारों के बिना अधूरा ही है। इन्हीं मांगणियारों में नई पीढी के हुनरमंद कलाकार ममे खां बॉलीवुड से लेकर सात समन्दर पार तक के लोक गायन और संगीत परिवेश में अपनी पैठ रखते हैं।
जैसलमेर जिले के छोटे से गाँव सत्तों में अपने जमाने के महान लोक गायक राणे खाँ के घर जन्मे ममे खाँ को लोक संगीत विरासत में मिला। पिता ही उनके पहले गुरु रहे जिनसे ममे खाँ ने पर परागत लोक संगीत और सूफी यूजिक की दीक्षा ली व खूब अ यास करते हुए पिता के नक्शे कदम पर चल कर यह हसीन मुकाम पाया।
बचपन से ही दुनिया में छा जाने वाला कलाकार बनने की तमन्ना संजोने वाले ममे खाँ ने पूरी लगन से अपने संास्कृतिक व्यक्तित्व को निखारा। मात्र बारह वर्ष की आयु में इस होनहार बालक को साँस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (सीसीआरटी) नई दिल्ली में अपने मौलिक हुनर का परिचय देने और निखारने का अवसर मिला।
अपनी आवाज और अदाओं से ही हर किसी को मंत्र मुग्ध कर देने वाले ममे खाँ के लिए किशोरावस्था के बाद से ही शौहरत के कई रास्ते खुल गए। वे मु बई, दिल्ली, मद्रास, केरल और देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विश्व के कई देशों में अपनी विलक्षण प्रतिभा व वाणी माधुर्य की पहचान कायम कर चुके हैं। आधुनिक व पुरातन संगीत से स बंधित कई महत्वपूर्ण आयोजनों में वे शिरकत कर चुके हैं। खासकर यूरोप, यूएसए, कनाडा, एशिया और अरब देशों में कई बार यात्रा कर उन्होंने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।
ममे खाँ मांगणियार संगीत की कई विधाओं में महारथ हासिल कर चुके हैं। मांगणियारी संगीत की विभिन्न शैलियों में उनका गायन बेमिसाल है। मु य रूप से कल्याण, कमायचा, दरबारी, तिलंग, सोरठ, बिलवाला, कोहियारी, देश, करेल, सुहाब, सामेरी, बिरवास, मलार आदि का गायन हर आयोजन को ऊँचाई देता है।
देश विदेश में कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर ममे खाँ ने अपनी धाक जमायी है। अमेरिका, इंगलैण्ड, जर्मनी, फ्रंास, सिंगापुर, स्पेन, स्वीडन, पोलेण्ड, आस्ट्रिया, मलेशिया, आस्ट्रेलिया, पाकिस्तान, कनाडा, इटली, बैकहोम आदि में कई बार साँस्कृतिक आयेाजनों में वे शिरकत कर चुके हैं। देश के नामी कला संस्कृति व संगीत संस्थानों में उनकी प्रस्तुतियों को खूब सराहा गया है। रूपायन संस्थान ने मेमे खाँ पर केन्द्रित ’’राजस्थान डेजर्ट वंडर फोक सोंग्स’’ कार्यक्रम पर सी.डी. भी जारी की है जिसमें ममे खाँ के गाए संगीत, भजनों, पर परागत सूफी संगीत का समावेश है।
ममे खाँ ने दुनिया की नामी हस्तियों के समक्ष अपना हुनर दिखाया है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के मु य आतिथ्य में नइ दिल्ली में स्वतंत्रता दिवस राष्ट्रीय समारोह, बोरुण्डा संगीत समारोह, प्रदेश के विभिन्न जिलों में स्थापना दिवस पर आयोजित महोत्सवों, पर्यटन उत्सवों, साँस्कृतिक केन्द्रों के कार्यक्रमों, सूफी महोत्सव, देश के तमाम प्रतिष्ठित समारोहों तथा लोक संगीत से जुडे कई कार्यक्रमों में वे अपनी अलग पहचान कायम कर चुके हैं।
ममे खाँ देश विदेश में डेढ सौ से अधिक प्रतिष्ठित महोत्सव और समारोहों में अपना कमाल दिखा चुके हैं। इनमें कोटा, जयपुर, जैसलमेर, जोधपुर, पुष्कर के फेस्टिवलों, दिल्ली ट्यूरिज्म व क्रा ट फेस्टिवल, भोपाल के आदिवासी लोक कला मण्डल, रवीन्द्र मंच शिल्पग्राम उत्सव, राजस्थान फेस्टिवल, मरु महोत्सव, मारवाड महोत्सव, थार महोत्सव, पश्चिमी व दक्षिणी क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्रों, रवीन्द्र भवन(भोपाल), दिल्ली में दस्तकार महोत्सव, आईसी.सी.आर सूफी महोत्सव, जनेन्द्र भवन(मद्रास), स्वर लयम इन्स्टीट्यूट (केरल) ,कोच्चि, अर्नाकुलम, दिल्ली हाट (स्पीक मैके), इंदिरा गांधी मानव संग्रहालय(भोपाल), टाटा नगर, जीएल इण्डिया कंपनी, संगीत एवं नाटक प्रभाग (भोपाल), रुहानियत सूफी कार्यक्रम(मु बई), रवीन्द्र मंच (पूणे), सिकंदरा क्लब हैदराबाद, रुहानियत (कोलकाता), जोधपुर, नेहरु मेमोरियल त्रिमूर्ति भवन दिल्ली, पेट्रोनेट कंपनी (जयपुर), चित्रकला परिषद बैंग्लोर आदि में अपने कार्यक्रम पेश कर चुके हैं।
इसी प्रकार खमानी ऑडिटोरियम (दिल्ली), ऑल इण्डिया सूफी एवं मैजेस्टिक यूजिक फेस्टिवल (पूणे), छतीसगढ पर्यटन महोत्सव, जमशेदपुर थियेटर टाटा, आइडिया जलसा(मु बई), नागौर फोर्ट सूफी दरबार, उस्ताद राणे खाँ वार्षिकोत्सव (जैसलमेर), संगीत महाभारती व ब्ल्यू फ्रोग (मु बई), गोल्फ क्लब (कोलकाता), चोईस क्लब कोच्चि आदि में हुए कार्यक्रमों में अपने फन का कमाल दिखा चुके हैं।
ममे खाँ पचास से अधिक देशों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित संस्थाओं की ओर से आयोजित महत्त्वपूर्ण समारोहों व उत्सवों में शिरकत कर यादगार छाप छोड चुके हैं। इनमें फ्रांस, बेल्जियम, यूएसए, स्पेन, स्वीडन, लंदन, स्कॉटलैण्ड, जर्मनी, इटली, हॉलेण्ड, कनाडा, टर्की, यमन, अफ्रीका, पाकिस्तान, लेबनान, आस्ट्रिया, मलेशिया, मोरक्को, दुबई, पौलेण्ड, क्रोएशिया, ऑयरलैण्ड, ऑस्ट्रेलिया, अल्जीरिया, सिंगापुर, न्यूजीलैण्ड आदि प्रमुख हैं।
ममे खाँ के कार्यक्रमों ने विदेशों में काफी प्रसिद्घि पायी है। विदेशी मीडिया ने भी उनके कार्यक्रमों को प्रमुखता से स्थान दिया है। देश भर में 2॰॰ से अधिक कार्यक्रमों में भागीदारी निभा चुके ममे खाँ दुनिया के 5॰ से ज्यादा देशों में शताधिक बार अपनी कला का शानदार प्रदर्शन कर चुके हैं। बॉलीवुड में भी अपनी पैठ रखने वाले ममे खाँ ने कविता सेठ के साथ आईएम फिल्म का गीत गाया है। ऋतिक रोशन की ‘लक बाई चाँस’ फिल्म में ममे खाँ ने शंकर महादेवन के साथ गीत पेश किया है।
जैसलमेरी मांगणियारों की गायन शैली को साम समंदर पार पहुँचा कर याति दिलाने वाले ममे खाँ जाँगडा एवं सूफी शैली के अपनी तरह के बेजोड गायक हैं। भगवान श्रीकृष्ण के भजन, नी बूडा, दमादम मस्त कलंदर व रियासतकालीन संस्कृति के गीतों पर केन्द्रित उनका गायन श्रोताओं की खास पसंद रहा है।
दिल्ली में तीन बार सूफी फेस्टीवल में अपनी गायकी का परिचय देने वाले ममे खाँ देश विदेश के दो दर्जन थियेटरों में भी अपने हुनर का कमाल दिखा चुके हैं। पर परागत संगीत के संरक्षण व प्रचार प्रसार के साथ ही ममे खाँ ने कई नवीन विधाओं को भी आत्मसात किया है। संसार भर में गायकी के लिए मशहूर मिक्स यूजन ग्रुप में ममे खाँ के साथ फ्रांस व ईरान के कलाकार भी शामिल हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकगायन में मशहूर कलाकार ममे खाँ राजस्थान प्रदेश ही नहीं बल्कि हिन्दुस्तान की वह श सयत हैं जिस पर सभी को नाज है। राजस्थान भर के लिए यह गौरव की बात है कि रेत के धोरों से निकला यह कलाकार पूरी दुनिया में धूम मचा रहा है।
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