जामनगर।। जिले के एक सेशन कोर्ट ने निलंबित आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट के खिलाफ 1990 में पुलिस की कथित पिटाई से एक व्यक्ति की मौत के मामले में जमानती वॉरंट जारी किया।
आरोपी भट्ट खंभालिया तालुका की अदालत में नहीं पहुंचे, जिसके बाद मंगलवार को अडिशनल सेशन जज एन.टी.सोलंकी ने वॉरंट जारी किया।
गौरतलब हैकि भट्ट ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर वर्ष 2002 के दंगों के दौरान राज्य सरकार की मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। उन्हें हाल ही में निलंबित कर दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने पिछले महीने 1990 के मामले में भट्ट और छह अन्य के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के निचली अदालत के फैसले की पुनरीक्षा याचिका को वापस ले लिया था। सरकार के वकील विमल चोटिया ने पिछले महीने 1996 में दाखिल याचिका वापस ले ली, जिसके बाद भट्ट और अन्य लोगों के खिलाफ आरोप तय करने का रास्ता बना। चोटिया के अनुसार याचिका को वापस लेना था क्योंकि राज्य सरकार एक तरफ शिकायती और दूसरी और आरोपी का बचाव नहीं कर सकती। चोटिया की दलील थी कि प्रत्येक आपराधिक मामले में प्रदेश सरकार अभियोजक है और इसलिए वह अपने ही अधिकारियों का बचाव नहीं कर सकती।
गुजरात उच्च न्यायालय ने 1996 में मामले में आरोपियों की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। सरकार ने तब निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पुनरीक्षा याचिका दाखिल की थी। इतने साल तक यह हाई कोर्ट के समक्ष लंबित रही।
यह कथित अपराध 1990 में हुआ था, जब भट्ट जामनगर में डीएसपी (पुलिस) के तौर पर तैनात थे और जामखंभालिया इलाके में पुलिस बंदोबस्त के प्रभारी थे, जहां सांप्रदायिक संघर्ष हुआ था। पुलिस ने कथित तौर पर उनके आदेश पर कुछ लोगों की पिटाई की, जिसके बाद एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
आरोपी भट्ट खंभालिया तालुका की अदालत में नहीं पहुंचे, जिसके बाद मंगलवार को अडिशनल सेशन जज एन.टी.सोलंकी ने वॉरंट जारी किया।
गौरतलब हैकि भट्ट ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर वर्ष 2002 के दंगों के दौरान राज्य सरकार की मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। उन्हें हाल ही में निलंबित कर दिया गया था।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने पिछले महीने 1990 के मामले में भट्ट और छह अन्य के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के निचली अदालत के फैसले की पुनरीक्षा याचिका को वापस ले लिया था। सरकार के वकील विमल चोटिया ने पिछले महीने 1996 में दाखिल याचिका वापस ले ली, जिसके बाद भट्ट और अन्य लोगों के खिलाफ आरोप तय करने का रास्ता बना। चोटिया के अनुसार याचिका को वापस लेना था क्योंकि राज्य सरकार एक तरफ शिकायती और दूसरी और आरोपी का बचाव नहीं कर सकती। चोटिया की दलील थी कि प्रत्येक आपराधिक मामले में प्रदेश सरकार अभियोजक है और इसलिए वह अपने ही अधिकारियों का बचाव नहीं कर सकती।
गुजरात उच्च न्यायालय ने 1996 में मामले में आरोपियों की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की गई थी। सरकार ने तब निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पुनरीक्षा याचिका दाखिल की थी। इतने साल तक यह हाई कोर्ट के समक्ष लंबित रही।
यह कथित अपराध 1990 में हुआ था, जब भट्ट जामनगर में डीएसपी (पुलिस) के तौर पर तैनात थे और जामखंभालिया इलाके में पुलिस बंदोबस्त के प्रभारी थे, जहां सांप्रदायिक संघर्ष हुआ था। पुलिस ने कथित तौर पर उनके आदेश पर कुछ लोगों की पिटाई की, जिसके बाद एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।
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