बाड़मेर जिले में इस बार
बेटियो की संख्या में इजाफा
हुआ
बाड़मेर। बेलगाम बढ़ती आबादी की गुणात्मक वृद्धि को थामने और लोगों को सक्षर करने के लिए राज्य एवं केन्द्र सरकार द्वारा करोड़ों रूपए दर्जनों योजनाओं पर खर्च करने के बावजूद 2001-2011 के दशक में नतीजा सिफर रहा है। बाड़मेर जिले में शहरी आबादी एक दशक में 25.45 प्रतिशत बढ़ी और गांवों की जनसंख्या में 33.12 प्रतिशत वृद्धि दर्ज हुई है। शहर और गांवों में हो रही यह गुणात्मक वृद्धि संसाधनों और विकास के मार्ग में रोड़ा बन रही है। वहीं लाख जतन करने के बावजूद साक्षरता दर में आई गिरावट सरकारी दावों की पोल खोल रही है।
गांव में बेटियां बढ़ी
बाड़मेर जिले में इस बार बेटियो की संख्या में इजाफा हुआ है। वर्ष 2001 के आंकड़ों में जहां 1000 लड़कों पर 892 लड़कियां थी वहीं इस बार गांव में यह आंकड़ा 901 पर पहुंच गया है। नौ लड़कियां प्रति हजार पर बढ़ी है। छोटे बच्चों में भी यह अनुपात 891 से 900 तक पहुंच गया है। घटती बेटियों की संख्या की स्थिति में यह वृद्धि शुभ संकेत है।
इस दशक में राज्य एवं केन्द्र सरकार के साझा प्रयासों से परिवार नियोजन, परिवार कल्याण, जनमंगल जोड़े, जननी सुरक्षा योजना, लिंगानुपात के अंतर को कम करने के लिए आपणी बेटी योजना, छात्रवृत्ति योजनाओं सहित दर्जनों योजनाएं चलाई गई। इतना सब होने के बावजूद जनसंख्या में वृद्धि दर पर अंकुश नहीं लग पाया। बाड़मेर जिले में 2001 में 19 लाख 64 हजार 835 आबादी थी, जो करीब तैंतीस फीसदी वृद्धि कर 26 लाख 4 हजार 453 पहुंच गई।
कम हो गए साक्षर
जिले के साक्षरता के ग्राफ में खास फर्क नहीं पड़ा है। गांव की साक्षरता वर्ष 2001 में 59 प्रतिशत ही थी जो इस बार कम होकर 55.72 प्रतिशत आ गई है। अलबत्ता शहरी साक्षरता 79.52 फीसदी रही है। साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए गत एक दशक के दौरान सरकारी स्तर पर कई अभियान चलाए गए। गांव-गांव स्कूल खोलने के साथ ही कई योजनाओं पर करोड़ों रूपए खर्च कर दिए गए, लेकिन इन सब का नतीजा सिफर ही रहा।
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