शनिवार, 27 अगस्त 2011

राजपूताना ताकत के आराध्य देव...एकलिंगजी।

राजपूत कौम को काफी ताकतवर माना जाता है और इस बात को उन्होंने कई अहम मौकों पर सिद्ध भी किया है।

अपने आराध्य देव की सिद्धी के कारण उनमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा हुआ है। इनके आराध्य देव हैं-एकलिंगजी।

श्रीएकलिंगजी का मंदिर विशाल है। एकलिंगजी की मूर्ति में चारों ओर मुंह हैं। मंदिर के पश्चिम द्वार की ओर पीतल की नन्दी की मूर्ति है।

कहते हैं कि वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार 15 शताब्दी मेंराजा कुम्भ ने कराया था। एकलिंगजी मेवाड़ के राजाओं के आराध्य देव थे। मेवाड़ के संस्थापक बाप्पारावल ने इनकी आराधना की थी।

कहा जाता है कि पहले यहां लिंगमूत्ति थी। डूंगरपुर राज्य की ओर से वह बाणलिंग इन्द्रसागर में पधरा दिए जाने के पश्चात यह चतुर्मुख मूर्ति स्थापित हुई। -

एकलिंगजी का श्रृंगार रोज विभिन्न रत्नों से किया जाता है। यहां पुजारियों द्वारा दिए गए चोगे को पहन कर ही मंदिर के अंदर जाने की आज्ञा मिलती है।

एकलिंगजी को राजपूत कौम अपना आराध्य देव मानती है। किसी भी युद्ध में जाने से पहले ये इनकी पूजा जरूर करते थे।

मंदिर से थोड़ी दूर इन्द्रसागर नामक सरोवर है। सरोवर के आस-पास गणेश, लक्ष्मी, डुंटेश्वर, धारेश्वर आदि कई मंदिर हैं।

एकलिंगजी के मंदिर के पास भी छोटे-बड़े कई मंदिर हैं। थोड़ी दूरी पर ही वनवासिनी देवी का मंदिर है।

कैसे पहुचें- उदयपुर या नाथद्वारा से बस द्वारा एकलिंगजी पहुंचा जा सकता है। उदयपुर से एकलिंगजी 22 किलोमीटर दूर हैं।

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