कृष्ण जन्माष्टमी
बात द्वापर की है। मथुरा पर कंस का राज था। इसके अत्याचार से जनता त्रस्त थी। इसका नाश करने श्री कृष्ण के रुप में भगवान विष्णु अवतरित हुए। समय था, भाद्र माह के कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि की मध्यरात्रि। तब से यह दिन जन्माष्टमी के रुप में मनाया जाता है। पौराणिक कथानुसार जब भगवान का जन्म हुआ, तब आकाश में घना अन्धकार छाया हुआ था। घनघोर बारिश हो रही थी। मथुरा जेल में उनके माता-पिता वसुदेव-देवकी के बेडिय़ां लगी थी। लेकिन प्रभु के अवतरित होते ही बेडिय़ां टूटी। कारागार के द्वार स्वयं ही खुल गए। पहरेदार गहरी नींद में सो गए। फिर वसुदेव श्रीकृष्ण को उफनती यमुना के पार गोकुल में अपने मित्र नन्दगोप के घर पहुंचे। जहां से नन्द की पत्नी यशोदा के गर्भ से उत्पन्न कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए।
देखा जाए, तो भगवान श्रीकृष्ण आत्म तत्व के मूर्तिमान रूप हैं। इनके त्रिगुणी रूप में तीन माताएं हैं- रजोगुण में जन्मदात्री देवकी। तमोगुण में माँ यशोदा। तमस रूप शिशुभक्षक पूतना, जिसने इन्हें विषपान कराना चाहा। वैसे हमें इनके जीवन में सम्पूर्ण लीलाओं का दर्शन मिलता है। परिवार से लेकर प्यार तक, अध्यात्म से लेकर समाज तक। कृष्ण लीला के सम्पूर्ण दर्शनों को आत्मसात करने के बाद कुछ भी एेसा नहीं बचता कि हमें कहीं और जाना पड़े। अत: भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव में कौन शामिल नहीं होना चाहेगा। आज अपने देश में ही नहीं, विदेशों में भी इसे धूमधाम से मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान की झांकियां सजतीं हैं। रंगारंग धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम होता है। भक्त मध्य रात्रि तक व्रत रखते हैं।जन्माष्टमी व्रत:
स्कन्द पुराण के अनुसार जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी को जानते हुए भी नहीं मनाता वह अगले जन्म में व्याघ्र या सर्प के रूप में जन्मता है। ब्रह्म पुराण कहता है कि कलियुग में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में 28 वें युग में देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए थे। भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत को न करने वाला अगले जन्म में राक्षस होता है। भृगु ने कहा कि जन्माष्टमी, शिवरात्रि और रोहिणी ये पूर्वविद्धा ही करना चाहिए तथा तिथि और नक्षत्र के अंत में पारण करें। इसे मोह रात्रि भी कहा गया है। इस रात्रि को श्रीकृष्ण का ध्यान करने, नाम जपने से मोह-माया से आसक्ति हटती है।
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