पाक में जल्लाद ढूंढ रहा है नौकरी
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में 200 से भी ज्यादा कैदियों को फांसी के फंदे पर लटकाने वाला एक जल्लाद अब नौकरी ढूंढ रहा है। सूत्रों के अनुसार राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने जब से पद संभाला है, तभी से उन्होंने फांसी की सजा पर रोक लगा रखी है। जरदारी से मृत्युदंड की अनुमति नहीं मिल पाने के कारण पिछले दो सालों से यह जल्लाद बेरोजगार बैठा है।
पाकिस्तान के कोट लखपत जेल के 27 वर्षीय जल्लाद सबीर मसीह का कहना है कि "जब से राष्ट्रपति जरदारी कुर्सी पर बैठे हैं, उन्होंने किसी को भी फांसी पर चढ़ाने की अनुमति नहीं दी है। इसलिए अब मैं एक नई नौकरी की तलाश में हूं।" मसीह ने बताया कि उसके पुरखे ब्रिटिश शासनकाल से ही जल्लाद का काम करते आ रहे हैं और अपने उसने भी जल्लाद की नौकरी को ही अपना पेशा बनाया था। मसीह के अनुसार "हालांकि, मुझे नौकरी से निकाला नहीं गया है, लेकिन चूंकि पिछले दो सालों से किसी को भी फंासी पर नहीं लटकाया गया, इसलिए मुझे नौकरी पर जाना बेकार लगता है।" मसीह ने बताया कि "जल्लाद का काम करने के लिए मुझे 10 हजार रूपए सैलरी मिलती है और किसी कैदी को फंदे पर लटकाने के एवज में 20 रूपए अलग से मिलते हैं।
उल्लेखनीय है कि आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2008 में जब जरदारी राष्ट्रपति बने थे, उस दौरान लगभग 7000 कैदियों को मौत की सजा मिली हुई थी। हालांकि, राष्ट्रपति बनने के बाद जरदारी ने सभी कैदियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी। वहीं, प्रधानमंत्री यूसफ रजा गिलानी ने भी केबिनेट के उस फैसले पर मुहर लगा दी थी, जिसके तहत कैदियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की सिफारिश की गई थी।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान में 200 से भी ज्यादा कैदियों को फांसी के फंदे पर लटकाने वाला एक जल्लाद अब नौकरी ढूंढ रहा है। सूत्रों के अनुसार राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने जब से पद संभाला है, तभी से उन्होंने फांसी की सजा पर रोक लगा रखी है। जरदारी से मृत्युदंड की अनुमति नहीं मिल पाने के कारण पिछले दो सालों से यह जल्लाद बेरोजगार बैठा है।
पाकिस्तान के कोट लखपत जेल के 27 वर्षीय जल्लाद सबीर मसीह का कहना है कि "जब से राष्ट्रपति जरदारी कुर्सी पर बैठे हैं, उन्होंने किसी को भी फांसी पर चढ़ाने की अनुमति नहीं दी है। इसलिए अब मैं एक नई नौकरी की तलाश में हूं।" मसीह ने बताया कि उसके पुरखे ब्रिटिश शासनकाल से ही जल्लाद का काम करते आ रहे हैं और अपने उसने भी जल्लाद की नौकरी को ही अपना पेशा बनाया था। मसीह के अनुसार "हालांकि, मुझे नौकरी से निकाला नहीं गया है, लेकिन चूंकि पिछले दो सालों से किसी को भी फंासी पर नहीं लटकाया गया, इसलिए मुझे नौकरी पर जाना बेकार लगता है।" मसीह ने बताया कि "जल्लाद का काम करने के लिए मुझे 10 हजार रूपए सैलरी मिलती है और किसी कैदी को फंदे पर लटकाने के एवज में 20 रूपए अलग से मिलते हैं।
उल्लेखनीय है कि आंकड़ों के अनुसार नवंबर 2008 में जब जरदारी राष्ट्रपति बने थे, उस दौरान लगभग 7000 कैदियों को मौत की सजा मिली हुई थी। हालांकि, राष्ट्रपति बनने के बाद जरदारी ने सभी कैदियों की फांसी की सजा पर रोक लगा दी थी। वहीं, प्रधानमंत्री यूसफ रजा गिलानी ने भी केबिनेट के उस फैसले पर मुहर लगा दी थी, जिसके तहत कैदियों की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की सिफारिश की गई थी।
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