सोमवार, 1 अगस्त 2011

रहमत की बारिश का महीना ‘माह-ए-रमजान’


रहमत और बरकत से भरे रमजान के महीने का आगाज हो चुका है। मोमिनों को अल्लाह से प्यार और लगन जाहिर करने के साथ खुद को खुदा की राह की सख्त कसौटी पर कसने का मौका देने वाला यह महीना बेशक हर बंदे के लिए नेमत है।

रमजान में दिन भर भूखे-प्यासे रहकर खुदा को याद करने की मुश्किल साधना करते रोजेदार को अल्लाह खुद अपने हाथों से बरकतें नवाजता है।

दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम मौलाना कहते हैं कि यह महीना कई मायनों में अलग और खास है। अल्लाह ने इसी महीने में दुनिया में कुरान शरीफ को उतारा था जिससे लोगों को इल्म और तहजीब की रोशनी मिली। साथ ही यह महीना मोहब्बत और भाईचारे का संदेश देने वाले इस्लाम के सार तत्व को भी जाहिर करता है।

उन्होंने कहा कि रोजा न सिर्फ भूख और प्यास बल्कि हर निजी ख्वाहिश पर काबू करने की कवायद है। इससे मोमिन में न सिर्फ संयम और त्याग की भावना मजबूत होती है बल्कि वह गरीबों की भूख-प्यास की तकलीफ को भी करीब से महसूस कर पाता है।

रमजान का महीना सामाजिक ताने-बाने को भी मजबूत करने में मददगार साबित होता है। इस महीने में सक्षम लोग अनिवार्य रूप से अपनी कुल सम्पत्ति का एक निश्चित हिस्सा निकालकर उसे जकात के तौर पर गरीबों में बाँटते हैं।

फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मौलाना मुकर्रम अहमद बताते हैं कि रमजान की शुरुआत सन् दो हिजरी से हुई थी और तभी से अल्लाह के बंदों पर जकात भी फर्ज की गई थी।

मौलाना अहमद ने बताया कि रमजान के महीने में अल्लाह के लिए हर रोजेदार बहुत खास होता है और खुदा उसे अपने हाथों से बरकत और रहमत नवाजता है। रमजान की खासियत का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि इसमें बंदे को एक रकात फर्ज नमाज अदा करने पर 70 रकात नमाज का सवाब 'पुण्य' मिलता है। साथ ही इसमें शबे कद्र की रात में इबादत करने पर एक हजार महीनों से ज्यादा वक्त तक इबादत करने का सवाब हासिल होता है।

मौलाना ने कहा कि कुरान शरीफ में लिखा है कि मुसलमानों पर रोजे इसलिये फर्ज किए गए हैं ताकि इस खास बरकत वाले रूहानी महीने में उनसे कोई गुनाह नहीं होने पाए। उन्होंने कहा कि यह खुदाई असर का नतीजा है कि रमजान में लगभग हर मुसलमान इस्लामी नजरिए से खुद को बदलता है।

आतंकवाद को कहीं न कहीं इस्लाम से जोड़े जाने के बीच रमजान की महत्ता के बारे में मौलाना ने कहा कि रमजान का संदेश ही इस धारणा को गलत साबित करने के लिये काफी है।

यह पूछे जाने पर कि नई पीढ़ी में रोजे के लिए अकीदत किस हद तक है, मौलाना ने कहा कि वह तथाकथित ‘मॉडर्न’ बच्चों के बारे में कोई टिप्पणी नहीं कर सकते लेकिन जहाँ तक उनका मानना है तो नई पीढ़ी के मुसलमानों में भी रमजान के प्रति श्रद्धा और आस्था में कोई कमी नहीं आई है।

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