नई दिल्ली
500 रुपये की रिश्वत के मामले में निचली अदालत ने एमसीडी के एक जेई को 4 साल कैद की सजा सुनाई, लेकिन हाई कोर्ट ने इस जेई को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई के सबूतों को भरोसे लायक नहीं माना। जब केस शुरू हुआ था, तब जेई पी.के. गुप्ता 25 साल के थे। आज वह 50 साल के हो चुके हैं। जिस वक्त सजा हुई थी, गुप्ता को सरकारी नौकरी गंवानी पड़ी थी।
सीबीआई के मुताबिक, अमरनाथ नाम के शख्स ने शिकायत की थी कि वह किशनगंज मार्केट में अपनी दुकान ठीक करवा रहा था, तभी पी. के. गुप्ता के कहने पर वहां फूल सिंह नामक बेलदार पहुंचा और उसने शटर के काम के लिए हजार रुपये की रिश्वत मांगी। गुप्ता ने अमरनाथ से कहा कि वह रुपये फूल सिंह को दे दें। बात 700 रुपये में पक्की हो गई। रुपये फूल सिंह को दिए जाने थे। अमरनाथ ने सीबीआई को इसकी जानकारी दी। जांच एजेंसी ने फूल सिंह को 500 रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार कर लिया गया। फूल सिंह ने कहा कि रुपये गुप्ता को दिए जाने थे। एजेंसी ने फूल सिंह से कहा कि वह रुपये गुप्ता को दे। सिंह ने गुप्ता को 1000 रुपये दिए, इस दौरान सीबीआई ने गुप्ता को भी पकड़ लिया। दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया गया।
जांच एजेंसी ने 25 नवंबर, 1986 को जेई पी. के. गुप्ता के खिलाफ रिश्वतखोरी का केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया था, पर बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी। निचली अदालत ने 31 जनवरी, 2002 को इस मामले में गुप्ता को 4 साल कैद की सजा सुनाई। मामले के सह-अभियुक्त फूल सिंह की ट्रायल के दौरान ही मौत हो गई थी।
बाद में मामला हाई कोर्ट में आया। बचाव पक्ष के वकील सिद्धार्थ लूथरा और नितेश मेहरा ने दलील दी कि पी. के. गुप्ता को फंसाया गया है। अदालत ने कहा कि सीबीआई के मुताबिक फूल सिंह ने गुप्ता को रुपये दिए, लेकिन उनके बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। इस बात के सबूत नहीं हैं कि गुप्ता ने रुपये मांगे। यह भी संभव है कि फूल सिंह ने गुप्ता के नाम पर रुपये लिए हों और गुप्ता के पास से रुपये की रिकवरी ही काफी नहीं है।
500 रुपये की रिश्वत के मामले में निचली अदालत ने एमसीडी के एक जेई को 4 साल कैद की सजा सुनाई, लेकिन हाई कोर्ट ने इस जेई को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है। कोर्ट ने इस मामले में सीबीआई के सबूतों को भरोसे लायक नहीं माना। जब केस शुरू हुआ था, तब जेई पी.के. गुप्ता 25 साल के थे। आज वह 50 साल के हो चुके हैं। जिस वक्त सजा हुई थी, गुप्ता को सरकारी नौकरी गंवानी पड़ी थी।
सीबीआई के मुताबिक, अमरनाथ नाम के शख्स ने शिकायत की थी कि वह किशनगंज मार्केट में अपनी दुकान ठीक करवा रहा था, तभी पी. के. गुप्ता के कहने पर वहां फूल सिंह नामक बेलदार पहुंचा और उसने शटर के काम के लिए हजार रुपये की रिश्वत मांगी। गुप्ता ने अमरनाथ से कहा कि वह रुपये फूल सिंह को दे दें। बात 700 रुपये में पक्की हो गई। रुपये फूल सिंह को दिए जाने थे। अमरनाथ ने सीबीआई को इसकी जानकारी दी। जांच एजेंसी ने फूल सिंह को 500 रुपये की रिश्वत लेते गिरफ्तार कर लिया गया। फूल सिंह ने कहा कि रुपये गुप्ता को दिए जाने थे। एजेंसी ने फूल सिंह से कहा कि वह रुपये गुप्ता को दे। सिंह ने गुप्ता को 1000 रुपये दिए, इस दौरान सीबीआई ने गुप्ता को भी पकड़ लिया। दोनों के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मामला दर्ज किया गया।
जांच एजेंसी ने 25 नवंबर, 1986 को जेई पी. के. गुप्ता के खिलाफ रिश्वतखोरी का केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया था, पर बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी। निचली अदालत ने 31 जनवरी, 2002 को इस मामले में गुप्ता को 4 साल कैद की सजा सुनाई। मामले के सह-अभियुक्त फूल सिंह की ट्रायल के दौरान ही मौत हो गई थी।
बाद में मामला हाई कोर्ट में आया। बचाव पक्ष के वकील सिद्धार्थ लूथरा और नितेश मेहरा ने दलील दी कि पी. के. गुप्ता को फंसाया गया है। अदालत ने कहा कि सीबीआई के मुताबिक फूल सिंह ने गुप्ता को रुपये दिए, लेकिन उनके बीच कोई बातचीत नहीं हुई थी। इस बात के सबूत नहीं हैं कि गुप्ता ने रुपये मांगे। यह भी संभव है कि फूल सिंह ने गुप्ता के नाम पर रुपये लिए हों और गुप्ता के पास से रुपये की रिकवरी ही काफी नहीं है।
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