मंगलवार, 26 जुलाई 2011

ये हौसला सलाम के काबिल है।




सीकर. ये हौसला सलाम के काबिल है। तभी तो कारगिल के युद्ध में देश के लिए जान देने वाले पाटन के कल्याण सिंह की पत्नी 12 साल से रात दिन इस इंतजार में थी कि कब उसका बेटा इस काबिल बने कि उसे वह फौजी बना सके। आखिर वो घड़ी आई। वीरांगना मां खुद अपने बेटे को सेना में भर्ती कराने दिल्ली स्थित राजपूताना राइफल्स के रिक्रूटमेंट सेंटर लेकर गई। वीरांगना सुशीला कंवर गर्व से कहती हैं-मेरी तो दिली तमन्ना है, तीनों बेटों को फौजी बनाऊं।

वे बताती हैं, मेरे पति देश सेवा के लिए न्योछावर हो गए। बड़ी कठिनाइयों में तीनों बच्चों को पाला। मैं जानती थी कि बेटों को और नौकरी भी मिल पाएगी। लेकिन, अन्य नौकरी के बारे में कभी विचार ही नहीं आया। बेटे अशोक तंवर की भी यही ख्वाहिश है कि वह सेना में नौकरी करे। यही इंतजार था वह कि कब भर्ती में शामिल होने के काबिल हो। सुशीला कंवर का कहना है कि मौका आते ही अप्रैल में बेटे को लेकर दिल्ली चली गई और अगस्त तक नौकरी की चिट्ठी आने का इंतजार है।

बात इसलिए भी ज्यादा मायने रखती है कि 12 साल पहले इसी समय पति शहीद हुए थे। बकौल शहीद के बेटे प्रेम सिंह, पिता के शहीद होने के बाद जब तीनों भाई समझदार हुए तो पहले तो बार- बार यही ख्याल आता रहा कि खुद का कोई काम देखेंगे। मां के यह शब्द हौसले बढ़ा देते हैं कि हर हाल में सेना ही ज्वाइन करनी है और दूसरा काम करने भी नहीं दूंगी। बड़े भैया मां के साथ दिल्ली गए थे और वहां से पूरा भरोसा मिला कि शहीद के बेटे के नाते सेना में शामिल होने में यूं भी कोई दिक्कत नहीं आएगी। प्रेमसिंह के मुताबिक वह खुद भी सेना में जाने की तैयारी कर रहा है और छोटे भाई को भी सेना में ही नौकरी करवाएंगे। सिंह के दो भतीजे पहले से फौज में हैं। शहीद कल्याण सिंह का परिवार फिलहाल जयपुर में रह रहा है।

ऐसी है फौजी परंपरा

शहीद कल्याण सिंह के चार अन्य भाई सेना से सेवानिवृत्त हैं। इसके अलावा भाई राम सिंह तंवर के दो बेटे सेना में नौकरी कर रहे हैं। शेखावाटी में एक घर से दो से तीन फौजी होना आम बात है। यह कहते हुए कल्याण सिंह के बड़े भाई राम सिंह इसलिए गर्व महसूस करते हैं कि परिवार फौजी परंपरा को निभा रहा है। इसके अलावा कल्याण सिंह के ससुर रामावतार सिंह भी सेना से सेवानिवृत्त हैं।

संभाल कर रखते रहे सेना से मिले पत्र

कल्याण सिंह के शहीद होने के बाद सेना से सिलसिले में लगातार पत्र आते रहे कि बेटे को सेना में भेजना चाहते हैं तो बात करें। सुशीला कंवर इन पत्रों को सहेज कर रखती रही। जब बेटा सेना में जाने के लिए काबिल हुआ तो पत्र लेकर दिल्ली पहुंच गई।

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