शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

ख्यात्कार मुन्ह्नोत नैनसी की ४०० वीं जयंती पर स्वर्ण नगरी जैसलमेर मैं दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार जैसलमेर न्यूज़- जैसलमेर न्यूज़- राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर तथा साहित्य अकादमी दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान मैं ख्यात्कार मुन्ह्नोत नैनसी की ४०० वीं जयंती पर स्वर्ण नगरी जैसलमेर मैं दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का उदघाटन सत्र जिला कलेक्टर गिरिराज सिंह कुशवाहा के मुख्या आतिथ्य, साहित्य कार घनश्याम देवड़ा, प्रोफ़ेसर दिलबाग सिंह के विशिष्ठ आतिथ्य तथा पदमश्री चन्द्र प्रकाश देवल की अध्यक्षता मैं आरम्भ हुआ. इस अवसर पर साहित्य अकादमी बीकानेर के अध्यक्ष डा. महेंद्र खडगावत, नन्द भारद्वाज, नगर पालिका के चेयर मैन अशोक तंवर , श्याम सिंह राजपुरोहित के साथ साथ पूरे राजस्थान और भारत के इतिहासकार और साहित्यकार उपस्थित रहे. उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए पदम् श्री चन्द्र प्रकाश देवल ने कहा की मुन्ह्नौत नेनसी की ख्यातें अमर इतिहास है. जिस पर विभिन्न आयामों पर शोध की आवश्यकता है. राजस्थानी भाषा के विकास मैं नेनसी की महती भूमिका थी. सेमीनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए इतिहासकार घश्यम देवड़ा ने कहा की मुन्ह्नोत नेनसी की ख्यातों मैं राजस्थानी शब्दों की महानतम व्याख्या की गयी है. उनकी ख्यातों मैं सरल भाषा, शब्दों का नापा तुला चयन राजस्थानी भाषा को नया आयाम प्रदान करता है. उन्होंने कहा की नेनसी की ख्यातें मारवाड़ परगने की संस्कृति को उल्लेखित करती है. १८ वीं शताब्दी मैं राजस्थानी भाषा के विकास की शुरुआत कर नेनसी ने राजस्थानी भाषा के विकास के बीज बोये. सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथी जिला कलेक्टर गिरिराज सिंह कुशवाहा ने कहा की मुन्ह्नोत नेनसी की ४०० वीं जयन्ती पर उनके सम्मान मैं डाक टिकट जारी कराने के संयुक्त प्रयास किये जाने चाहिए तथा जोधपुर मैं उनको समर्पित शोध संसथान का गठन कर राजस्थानी भाषा के शोधार्थीयों को छात्रवृति देने के प्रयास किये जाने चाहिए. उन्होंने आगे कहा की जैसलमेर मैं लिट्रे चर फेस्टिवल के आयोजन की पहल की जायेगी. सत्र को वरिष्ठ इतिहासकार पोफ्फेसर डा. दिलबाग सिंह तथा शिव प्रकाश भनोत ने भी संबोधित किया. ध्यान रहे की ये सेमीनार जैसलमेर मैं २ दिन के लिए हो रहा है और दोनों ही दिन राजस्थानी साहित्य और इतिहास पर चर्चा के अलावा राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए भी किये जा रहे प्रयासों पर विचार कर उसे पुख्ता किया जाएगा ताकि जल्द से जल्द राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल सके.

ख्यात्कार मुन्ह्नोत नैनसी की ४०० वीं जयंती पर स्वर्ण नगरी जैसलमेर मैं दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार
जैसलमेर न्यूज़-
जैसलमेर न्यूज़- राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर तथा साहित्य अकादमी दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान मैं ख्यात्कार मुन्ह्नोत नैनसी की ४०० वीं जयंती पर स्वर्ण नगरी जैसलमेर मैं दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का उदघाटन सत्र जिला कलेक्टर गिरिराज सिंह कुशवाहा के मुख्या आतिथ्य, साहित्य कार घनश्याम देवड़ा, प्रोफ़ेसर दिलबाग सिंह के विशिष्ठ आतिथ्य तथा पदमश्री चन्द्र प्रकाश देवल की अध्यक्षता मैं आरम्भ हुआ. इस अवसर पर साहित्य अकादमी बीकानेर के अध्यक्ष डा. महेंद्र खडगावत, नन्द भारद्वाज, नगर पालिका के चेयर मैन अशोक तंवर , श्याम सिंह राजपुरोहित के साथ साथ पूरे राजस्थान और भारत के इतिहासकार और साहित्यकार  उपस्थित रहे.
उदघाटन समारोह को संबोधित करते हुए पदम् श्री चन्द्र प्रकाश देवल ने कहा की मुन्ह्नौत नेनसी की ख्यातें अमर इतिहास है. जिस पर विभिन्न आयामों पर शोध की आवश्यकता है. राजस्थानी भाषा के विकास मैं नेनसी की महती भूमिका थी. सेमीनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए इतिहासकार घश्यम देवड़ा ने कहा की मुन्ह्नोत नेनसी की ख्यातों मैं राजस्थानी शब्दों की महानतम व्याख्या की गयी है. उनकी ख्यातों मैं सरल भाषा, शब्दों का नापा तुला चयन राजस्थानी भाषा को नया आयाम प्रदान करता है. उन्होंने कहा की नेनसी की ख्यातें मारवाड़ परगने की संस्कृति को उल्लेखित करती है. १८ वीं शताब्दी मैं राजस्थानी भाषा के विकास की शुरुआत कर नेनसी ने राजस्थानी भाषा के विकास के बीज बोये.
सत्र को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथी जिला कलेक्टर गिरिराज सिंह कुशवाहा ने कहा की मुन्ह्नोत नेनसी की ४०० वीं जयन्ती पर उनके सम्मान मैं डाक टिकट जारी कराने के संयुक्त प्रयास किये जाने चाहिए तथा जोधपुर मैं उनको समर्पित शोध संसथान का गठन कर राजस्थानी भाषा के शोधार्थीयों को छात्रवृति देने के प्रयास किये जाने चाहिए. उन्होंने आगे कहा की जैसलमेर मैं लिट्रे चर फेस्टिवल के आयोजन की पहल की जायेगी.
सत्र को वरिष्ठ इतिहासकार पोफ्फेसर डा. दिलबाग सिंह तथा शिव प्रकाश भनोत ने भी संबोधित किया.
ध्यान  रहे की ये सेमीनार जैसलमेर मैं २ दिन के लिए हो रहा है  और दोनों ही दिन राजस्थानी साहित्य और इतिहास पर चर्चा के अलावा राजस्थानी भाषा की मान्यता के लिए भी किये जा रहे प्रयासों  पर विचार कर उसे पुख्ता किया जाएगा ताकि जल्द से जल्द राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल सके.

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