मंगलवार, 15 जून 2010
सोमवार, 14 जून 2010
बारमेर न्यूज़ track
आवश्यकता है रक्तदान क्रांति की
ND
दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों के मुताबिक आती सर्दियों में स्वाइन फ्लू वायरस का पलटवार और जोरदार ढंग से होगा। देश में इस समय डेंगू का प्रकोप जोरों पर है जिसे स्वाइन फ्लू के 'प्रचार' ने पीछे ढकेल रखा है। इन दोनों बीमारियों में मरीज के रक्त में 'प्लेटलेट' का स्तर खतरनाक ढंग से नीचे गिर जाता है।हर साल देश की कुल 2433 ब्लड बैंकों में 70 लाख यूनिट रक्त इकट्ठा होता है। जबकि जरूरत है 90 लाख यूनिट की। इसका भी केवल 20 प्रतिशत ही रक्त बफर स्टॉक में रखा जाता है। शेष का इस्तेमाल कर लिया जाता है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की गाइडलाइंस के मुताबिक दान में मिले हुए रक्त का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। एक यूनिट रक्त 450 मिलीलीटर होता है। आसन्न संकट के मद्देनजर देश को एक रक्तदान क्रांति की सख्त जरूरत है। मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शरीर के बाहर रक्त किसी भी परिस्थिति में 'पैदा' नहीं किया जा सकता। जाहिर है, इसे केवल रक्तदान से हासिल किया जा सकता है। रक्तदान दो तरह का होता हैः एक, जिसमें मरीज को चढ़ाए गए रक्त की भरपाई उसके स्वस्थ परिजन से लेकर की जाती है तथा दूसरे, 'स्वैच्छिक' रक्तदान से। फिलहाल माँग का केवल 53 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से हासिल होता है। शेष की पूर्ति 'रिप्लेसमेंट' से होती है। 1998 में सर्वोच्च न्यायायल के निर्देश पर देश में पेशेवर रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। न्यायालय की मंशा यह थी कि मरीज के परिजनों से लिए गए रक्त की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी लेकिन इससे बचने के भी रास्ते निकल आए हैं। जिन मरीजों के परिजन रक्तदान करने की स्थिति में नहीं होते वे ऐसे पेशेवरों का सहारा लेते हैं जो रिश्तेदार तो नहीं हैं लेकिन ब्लडबैंक में 'रिश्तेदार' बनकर ही पहुँचते हैं। यही वजह है कि अब पेशेवर रक्तदाताओं का एक ऐसा वर्ग खड़ा हो गया जो पैसा लेकर ब्लड बैंक पहुँचने लगा है। बावजूद इसके रक्त की कमी हमेशा बनी रहती है।इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो-हिमेटोलॉजी (आईएसबीटीआई) के मुताबिक स्थिति इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में अब भी पूर्ण रक्त चढ़ाने का चलन है। विशेषज्ञों का मानना है कि रक्त को एक जीवनरक्षक औषधि के तौर पर देखा जाना चाहिए। अधिकांश मामलों में पूर्ण रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती बल्कि रक्त के अवयव (प्लेटलेट, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी) चढ़ाने से ही मरीज ठीक हो जाता है। दुनिया भर में 90 प्रतिशत मामलों में रक्त के अवयवों का प्रयोग होता है जबकि हमारे देश में केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही इनका प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण रक्त चढ़ा दिया जाता है। इस विसंगति की दूसरी वजह यह भी है कि हमारे देश में ब्लड कंपोनेन्ट सेपरेटर मशीनें बहुत ही कम ब्लड बैंकों में लगी हैं। इसके अलावा कंपोनेन्ट्स को अलग करने में लागत बढ़ जाती है। रक्त की कमी के कारण देश में हर साल 15 लाख मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन बच्चों की है जिन्हें थेलेसीमिया के कारण जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। हादसों के शिकार घायलों, मलेरिया के मरीजों, कुपोषणग्रस्त बच्चों के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को कई कारणों से रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। संक्रमित रक्त का जोखिम दरअसल हमारे देश में स्वैच्छिक रक्तदान अब भी जीवनशैली का हिस्सा नहीं हो सका है। आज भी ऐसे नवधनाढ्यों की कमी नहीं है जो अस्पतालों के इमरजेंसी रूम्स या ऑपरेशन थिएटरों में पड़े अपने रिश्तेदारों को रक्तदान करने के बजाए मुँहमाँगी कीमत पर खून खरीद लेने की पेशकश करते हैं। ऐसे में पेशेवर रक्तदाता 'रिश्तेदार' बनकर सामने आते हैं। 47 प्रतिशत रक्त की जरूरत इन्हीं लोगों से पूरी होती है। ऐसे 'स्वैच्छिक' रक्तदाता के खून की गुणवत्ता तो निश्चित ही गिरी हुई होती है, साथ ही संक्रमित है या नहीं इसकी भी जाँच नहीं हो पाती। आज देश में हजार में से तीन लोगों को दूषित रक्त चढ़ाने के कारण एचआईवी का संक्रमण होता है। हर रक्तदाता को नियमानुसार पहले तीन महीनों के लिए निगरानी (विंडो पीरियड) में रखा जाना चाहिए। रक्तदाता के खून में एचआईवी का संक्रमण है या नहीं, यह जाँचने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। आज जिसने रक्तदान किया हो और परीक्षण में एचआईवी वायरस की रिपोर्ट नेगेटिव आई हो, उसका तीन महीने बाद पुनः परीक्षण होना चाहिए। इसमें संक्रमण नहीं आने पर ही रक्त किसी मरीज को चढ़ाने के योग्य समझा जाता है। हमारे यहाँ ऐसा नहीं हो पाता। यही वजह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ स्वयंसेवकों को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए। क्या है स्थिति रक्तदान की देश में फिलहाल केवल 500 ब्लड बैंक ही ऐसी हैं जिन्हें बड़ी ब्लड बैंक कहा जा सकता है। यहाँ हर साल 10 हजार यूनिट्स से अधिक रक्त जमा होता है। करीब 600 ऐसी ब्लड बैंकें हैं जो हर साल 600 यूनिट्स ही इकट्ठा कर पाती हैं। शेष 2433 ब्लड बैंक्स ऐसी हैं जो 3 से 5 हजार यूनिट्स हर साल इकट्ठा कर लेती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश में एबी प्लस प्लाज्मा, ओ-पॉजिटिव, ओ-नेगेटिव का स्टॉक रहना बहुत जरूरी है। किसी भी आपातस्थिति में (जैसे मुंबईClick here to see more news from this city पर आतंकवादी हमला) जब घायलों को रक्त चढ़ाने के लिए परिजनों की राह नहीं देखी जा सकती हो, उन परिस्थितियों में उपरोक्त रक्त समूह का प्रयोग किया जाता है।देश में लगभग 25 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। सबसे अधिक ब्लड बैंक महाराष्ट्र (270) में हैं। इसके बाद तमिलनाडु (240) और आंध्रप्रदेश (222) का स्थान आता है। दान में मिला हुआ आधा लीटर रक्त तीन मरीजों की जान बचा सकता है। सबसे दुखद स्थिति उत्तर पूर्व के सात राज्यों की है। सातों राज्यों में कुल मिलाकर 29 अधिकृत ब्लड बैंक्स हैं।
ND
कैसा होना चाहिए रक्त इंडियन फार्माकोपिया के मुताबिक मानव रक्त एक औषधि है। इसके लिए कुछ शर्तें और नियम लागू किए गए हैं। मरीज को चढ़ाने के लिए प्राप्त रक्त को एचआईवी एंटीबॉडीज संक्रमण से मुक्त होना चाहिए। इसे हिपेटाईटिस बी और सी नामक वायरसों के अलावा सिफलिस, मलेरिया आदि से भी मुक्त होना चाहिए। कौन कर सकता रक्तदान कोई भी ऐसा व्यक्ति रक्तदान कर सकता है, जो1. 18-60 वर्ष की उम्र का हो,2. तीन साल से जिसे मलेरिया का संक्रमण न हुआ हो,3. एक साल से पीलिया न हुआ हो,4. उच्च रक्तचाप और डायबिटीज का रोगी न हो। स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ करें नया देश में स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए अब तक जो कुछ भी किया गया है वह अपर्याप्त साबित हुआ है। दरअसल जितनी बड़ी मात्रा में हमें शुद्ध रक्त चाहिए उसके लिए एक महा-आंदोलन की जरूरत है।
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दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों के मुताबिक आती सर्दियों में स्वाइन फ्लू वायरस का पलटवार और जोरदार ढंग से होगा। देश में इस समय डेंगू का प्रकोप जोरों पर है जिसे स्वाइन फ्लू के 'प्रचार' ने पीछे ढकेल रखा है। इन दोनों बीमारियों में मरीज के रक्त में 'प्लेटलेट' का स्तर खतरनाक ढंग से नीचे गिर जाता है।हर साल देश की कुल 2433 ब्लड बैंकों में 70 लाख यूनिट रक्त इकट्ठा होता है। जबकि जरूरत है 90 लाख यूनिट की। इसका भी केवल 20 प्रतिशत ही रक्त बफर स्टॉक में रखा जाता है। शेष का इस्तेमाल कर लिया जाता है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की गाइडलाइंस के मुताबिक दान में मिले हुए रक्त का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। एक यूनिट रक्त 450 मिलीलीटर होता है। आसन्न संकट के मद्देनजर देश को एक रक्तदान क्रांति की सख्त जरूरत है। मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शरीर के बाहर रक्त किसी भी परिस्थिति में 'पैदा' नहीं किया जा सकता। जाहिर है, इसे केवल रक्तदान से हासिल किया जा सकता है। रक्तदान दो तरह का होता हैः एक, जिसमें मरीज को चढ़ाए गए रक्त की भरपाई उसके स्वस्थ परिजन से लेकर की जाती है तथा दूसरे, 'स्वैच्छिक' रक्तदान से। फिलहाल माँग का केवल 53 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से हासिल होता है। शेष की पूर्ति 'रिप्लेसमेंट' से होती है। 1998 में सर्वोच्च न्यायायल के निर्देश पर देश में पेशेवर रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। न्यायालय की मंशा यह थी कि मरीज के परिजनों से लिए गए रक्त की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी लेकिन इससे बचने के भी रास्ते निकल आए हैं। जिन मरीजों के परिजन रक्तदान करने की स्थिति में नहीं होते वे ऐसे पेशेवरों का सहारा लेते हैं जो रिश्तेदार तो नहीं हैं लेकिन ब्लडबैंक में 'रिश्तेदार' बनकर ही पहुँचते हैं। यही वजह है कि अब पेशेवर रक्तदाताओं का एक ऐसा वर्ग खड़ा हो गया जो पैसा लेकर ब्लड बैंक पहुँचने लगा है। बावजूद इसके रक्त की कमी हमेशा बनी रहती है।इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो-हिमेटोलॉजी (आईएसबीटीआई) के मुताबिक स्थिति इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में अब भी पूर्ण रक्त चढ़ाने का चलन है। विशेषज्ञों का मानना है कि रक्त को एक जीवनरक्षक औषधि के तौर पर देखा जाना चाहिए। अधिकांश मामलों में पूर्ण रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती बल्कि रक्त के अवयव (प्लेटलेट, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी) चढ़ाने से ही मरीज ठीक हो जाता है। दुनिया भर में 90 प्रतिशत मामलों में रक्त के अवयवों का प्रयोग होता है जबकि हमारे देश में केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही इनका प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण रक्त चढ़ा दिया जाता है। इस विसंगति की दूसरी वजह यह भी है कि हमारे देश में ब्लड कंपोनेन्ट सेपरेटर मशीनें बहुत ही कम ब्लड बैंकों में लगी हैं। इसके अलावा कंपोनेन्ट्स को अलग करने में लागत बढ़ जाती है। रक्त की कमी के कारण देश में हर साल 15 लाख मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन बच्चों की है जिन्हें थेलेसीमिया के कारण जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। हादसों के शिकार घायलों, मलेरिया के मरीजों, कुपोषणग्रस्त बच्चों के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को कई कारणों से रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। संक्रमित रक्त का जोखिम दरअसल हमारे देश में स्वैच्छिक रक्तदान अब भी जीवनशैली का हिस्सा नहीं हो सका है। आज भी ऐसे नवधनाढ्यों की कमी नहीं है जो अस्पतालों के इमरजेंसी रूम्स या ऑपरेशन थिएटरों में पड़े अपने रिश्तेदारों को रक्तदान करने के बजाए मुँहमाँगी कीमत पर खून खरीद लेने की पेशकश करते हैं। ऐसे में पेशेवर रक्तदाता 'रिश्तेदार' बनकर सामने आते हैं। 47 प्रतिशत रक्त की जरूरत इन्हीं लोगों से पूरी होती है। ऐसे 'स्वैच्छिक' रक्तदाता के खून की गुणवत्ता तो निश्चित ही गिरी हुई होती है, साथ ही संक्रमित है या नहीं इसकी भी जाँच नहीं हो पाती। आज देश में हजार में से तीन लोगों को दूषित रक्त चढ़ाने के कारण एचआईवी का संक्रमण होता है। हर रक्तदाता को नियमानुसार पहले तीन महीनों के लिए निगरानी (विंडो पीरियड) में रखा जाना चाहिए। रक्तदाता के खून में एचआईवी का संक्रमण है या नहीं, यह जाँचने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। आज जिसने रक्तदान किया हो और परीक्षण में एचआईवी वायरस की रिपोर्ट नेगेटिव आई हो, उसका तीन महीने बाद पुनः परीक्षण होना चाहिए। इसमें संक्रमण नहीं आने पर ही रक्त किसी मरीज को चढ़ाने के योग्य समझा जाता है। हमारे यहाँ ऐसा नहीं हो पाता। यही वजह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ स्वयंसेवकों को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए। क्या है स्थिति रक्तदान की देश में फिलहाल केवल 500 ब्लड बैंक ही ऐसी हैं जिन्हें बड़ी ब्लड बैंक कहा जा सकता है। यहाँ हर साल 10 हजार यूनिट्स से अधिक रक्त जमा होता है। करीब 600 ऐसी ब्लड बैंकें हैं जो हर साल 600 यूनिट्स ही इकट्ठा कर पाती हैं। शेष 2433 ब्लड बैंक्स ऐसी हैं जो 3 से 5 हजार यूनिट्स हर साल इकट्ठा कर लेती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश में एबी प्लस प्लाज्मा, ओ-पॉजिटिव, ओ-नेगेटिव का स्टॉक रहना बहुत जरूरी है। किसी भी आपातस्थिति में (जैसे मुंबईClick here to see more news from this city पर आतंकवादी हमला) जब घायलों को रक्त चढ़ाने के लिए परिजनों की राह नहीं देखी जा सकती हो, उन परिस्थितियों में उपरोक्त रक्त समूह का प्रयोग किया जाता है।देश में लगभग 25 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। सबसे अधिक ब्लड बैंक महाराष्ट्र (270) में हैं। इसके बाद तमिलनाडु (240) और आंध्रप्रदेश (222) का स्थान आता है। दान में मिला हुआ आधा लीटर रक्त तीन मरीजों की जान बचा सकता है। सबसे दुखद स्थिति उत्तर पूर्व के सात राज्यों की है। सातों राज्यों में कुल मिलाकर 29 अधिकृत ब्लड बैंक्स हैं।
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कैसा होना चाहिए रक्त इंडियन फार्माकोपिया के मुताबिक मानव रक्त एक औषधि है। इसके लिए कुछ शर्तें और नियम लागू किए गए हैं। मरीज को चढ़ाने के लिए प्राप्त रक्त को एचआईवी एंटीबॉडीज संक्रमण से मुक्त होना चाहिए। इसे हिपेटाईटिस बी और सी नामक वायरसों के अलावा सिफलिस, मलेरिया आदि से भी मुक्त होना चाहिए। कौन कर सकता रक्तदान कोई भी ऐसा व्यक्ति रक्तदान कर सकता है, जो1. 18-60 वर्ष की उम्र का हो,2. तीन साल से जिसे मलेरिया का संक्रमण न हुआ हो,3. एक साल से पीलिया न हुआ हो,4. उच्च रक्तचाप और डायबिटीज का रोगी न हो। स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ करें नया देश में स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए अब तक जो कुछ भी किया गया है वह अपर्याप्त साबित हुआ है। दरअसल जितनी बड़ी मात्रा में हमें शुद्ध रक्त चाहिए उसके लिए एक महा-आंदोलन की जरूरत है।
शुक्रवार, 11 जून 2010
बारमेर न्यूज़ track
Cong MLA accused of servant's murder, no case filed
Barmer: A domestic help succumbed to burns in Jodhpur hospital, where he was admitted after Congress MLA from Chohtan, Padmaram Neghwal, allegedly slapped him and he fell into a huge pan which contained steaming tea. The police said that the post-mortem report confirmed death due to shock and burns. However, the MLA has gone "scotfree" as no case has been registered. To make things murkier, the MLA did not even inform the police about the death. According to reports, preparations were on for the marriage of the MLA's daughter. A grand ceremony was organised at Fagalia village in Barmer on June 7. During the ceremony, delay in serving tea annoyed MLA. When domestic help, Nagji Ram (20), brought tea, he was allegedly slapped by Meghwal so hard that fell into the huge vessel which contained the brew. However, Meghwal claimed that when the incident occured (near the kitchen), he was at the entrance to welcome guests. He claimed Nagji suffered an epileptic fit after which he was sent back home. However, after some time he returned to the venue. "I was not even aware of the incident. In fact when I came to know of the incident, I sent Nagji to Chohtan hospital in my car," he said. He also said he was referred to Sanchore government hospital in Jalore but the authorities there referred him to Jodhpur Hospital. While undergoing treatment at the hospital in Jodhpur, Nagji succumbed to his injuries late on Wednesday night. Meghwal said his political rivals spread this rumour to tarnish his image. SP Barmer, Santosh Kumar Chalke, said that victim's sister was present at the spot but she did not confirm the incident. The victim's father confirmed that Nagji suffered from epilepsy and often had attacks. His family members have not complained against the MLA.
Barmer: A domestic help succumbed to burns in Jodhpur hospital, where he was admitted after Congress MLA from Chohtan, Padmaram Neghwal, allegedly slapped him and he fell into a huge pan which contained steaming tea. The police said that the post-mortem report confirmed death due to shock and burns. However, the MLA has gone "scotfree" as no case has been registered. To make things murkier, the MLA did not even inform the police about the death. According to reports, preparations were on for the marriage of the MLA's daughter. A grand ceremony was organised at Fagalia village in Barmer on June 7. During the ceremony, delay in serving tea annoyed MLA. When domestic help, Nagji Ram (20), brought tea, he was allegedly slapped by Meghwal so hard that fell into the huge vessel which contained the brew. However, Meghwal claimed that when the incident occured (near the kitchen), he was at the entrance to welcome guests. He claimed Nagji suffered an epileptic fit after which he was sent back home. However, after some time he returned to the venue. "I was not even aware of the incident. In fact when I came to know of the incident, I sent Nagji to Chohtan hospital in my car," he said. He also said he was referred to Sanchore government hospital in Jalore but the authorities there referred him to Jodhpur Hospital. While undergoing treatment at the hospital in Jodhpur, Nagji succumbed to his injuries late on Wednesday night. Meghwal said his political rivals spread this rumour to tarnish his image. SP Barmer, Santosh Kumar Chalke, said that victim's sister was present at the spot but she did not confirm the incident. The victim's father confirmed that Nagji suffered from epilepsy and often had attacks. His family members have not complained against the MLA.
बारमेर न्यूज़ track
खिल उठा है सौन्दर्य ऎतिहासिक गड़ीसर तालाब कास्वर्णनगरी में रविवार की रात्रि में हुई झमाझम बारिश से ऎतिहासिक गड़ीसर तालाब में पानी की अच्छी आवक हुई है। लंबे समय से सूखे पड़े एवं मछलियां मरने के कारण दुर्गन्धयुक्त वातावरण से यह ऎतिहासिक सरोवर उपेक्षा का दंश झेल रहा था। अच्छी बारिश से तालाब में पानी की आवक हुई है और सरोवर का सौन्दर्य एक बार फिर से खिल उठा है। पानी से भरा होने के कारण स्थानीय लोग यहां घूमने, प्राकृतिक वातावरण का लुत्फ उठाने और पिकनिक व सैर सपाटे के लिए पहुंच रहे हैं। काफी इंतजार के बाद तालाब में पानी की अच्छी आवक होने से यहां फिर से चहल-पहल दिखाई देने लगी है। खिल उठा सौन्दर्यगड़ीसर तालाब पानी की आवक से एक बार फिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बारिश के बाद अब यहां पानी की आवक से पर्यटक यहां कलात्मक छतरियों व सुन्दर घाटों के बीच सुखद अनुभूति महसूस करने लगे हैं। स्थानीय लोग प्राकृतिक वातावरण में घंटों तक बैठे रहते हंै। पानी की आवक होने से यहां नौकायन व्यवसाय को नवजीवन मिलने एवं पर्यटकों का यहां रूझान बढ़ने की उम्मीद जगने लगी है। स्वर्णनगरी में मेहरबान हुए इन्द्रदेव के कारण यहां लंबे समय बाद सौंदर्य का साम्राज्य स्थापित हो गया है। बढ़ा स्वीमिंग का शौकलबालब हुए तालाबों में तैरना सीखने व तैरने के शौकीन लोगों की चहल-पहल यहां काफी देखने को मिल रही है। छोटे बच्चे अपने परिजनों की देखरेख में यहां तैरना सीख रहे हैं, वहीं किशोर व वयस्क घंटो तक पानी में नहाते हैं। पिकनिक व गोठों का दौरस्वर्णनगरी में पिकनिक व गोठों का दौर एक बार फिर शुरू हो गया है। बारिश के बाद से ही यह दौर शुरू हो गया है। तालाब के किनारे बड़ी संख्या में लोग यहां पिकनिक व गोठों के लिए पहुंच रहे हैं।
बुधवार, 9 जून 2010
बारमेर न्यूज़ track
चित्तोड़ की महारानी पद्यमिनी दुर्ग शिरोमणि चित्तोडगढ का नाम इतिहास में स्वर्णिम प्रष्टों पर अंकित केवल इसी कारण है कि वहां पग-पग पर स्वतंत्रता के लिए जीवन की आहुति देने वाले बलिदानी वीरों की आत्मोसर्ग की कहानी कहने वाले रज-कण विद्यमान है राजस्थान में अपनी आन बान और मातृभूमि के लिए मर मिटने की वीरतापूर्ण गौरवमयी परम्परा रही है और इसी परम्परा को निभाने के लिए राजस्थान की युद्ध परम्परा में जौहर और शाको का अपना विशिष्ठ स्थान रहा है ! चित्तोड़ के दुर्ग में इतिहास प्रसिद्ध तीन जौहर और शाके हुए है दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तोड़ की महारानी पद्मिनी के रूप और सोंदर्य के बारे में सुन उसे पाने की चाहत में विक्रमी संवत १३५९ में चितोड़ पर चढाई की चित्तोड़ के महाराणा रतन सिंह को जब दिल्ली से खिलजी की सेना के कूच होने की जानकारी मिली तो उन्होंने अपने भाई-बेटों को दुर्ग की रक्षार्थ इकट्ठा किया समस्त मेवाड़ और आप-पास के क्षत्रों में रतन सिंह ने खिलजी का मुकाबला करने की तैयारी की किले की सुद्रढ़ता और राजपूत सैनिको की वीरता और तत्परता से छह माह तक अलाउद्दीन अपने उदेश्य में सफल नही हो सका और उसके हजारों सैनिक मरे गए अतः उसने युक्ति सोच महाराणा रतन सिंह के पास संधि प्रस्ताव भेजा कि मै मित्रता का इच्छुक हूँ ,महारानी पद्मिनी के रूप की बड़ी तारीफ सुनी है, सो मै तो केवल उनके दर्शन करना चाहता हूँ कुछ गिने चुने सिपाहियों के साथ एक मित्र के नाते चित्तोड़ के दुर्ग में आना चाहता हूँ इससे मेरी बात भी रह जायेगी और आपकी भी भोले भाले महाराणा उसकी चाल के झांसे में आ गए २०० सैनिको के साथ खिलजी दुर्ग में आ गया महाराणा ने अतिथि के नाते खिलजी का स्वागत सत्कार किया और जाते समय खिलजी को किले के प्रथम द्वार तक पहुँचाने आ गए धूर्त खिलजी मीठी-मीठी प्रेम भरी बाते करता- करता महारणा को अपने पड़ाव तक ले आया और मौका देख बंदी बना लिया राजपूत सैनिको ने महाराणा रतन सिंह को छुड़ाने के लिए बड़े प्रयत्न किए लेकिन वे असफल रहे और अलाउद्दीन ने बार-बार यही कहलवाया कि रानी पद्मिनी हमारे पड़ाव में आएगी तभी हम महाराणा रतन सिंह को मुक्त करेंगे अन्यथा नही अतः रानी पद्मिनी के काका गोरा ने एक युक्ति सोच बादशाह खिलजी को कहलाया कि रानी पद्मिनी इसी शर्त पर आपके पड़ाव में आ सकती है जब पहले उसे महाराणा से मिलने दिया जाए और उसके साथ उसकी दासियों का पुरा काफिला भी आने दिया जाए जिसे खिलजी ने स्वीकार कर लिया योजनानुसार रानी पद्मिनी की पालकी में उसकी जगह स्वयम गोरा बैठा और दासियों की जगह पालकियों में सशत्र राजपूत सैनिक बैठे उन पालकियों को उठाने वाले कहारों की जगह भी वस्त्रों में शस्त्र छुपाये राजपूत योधा ही थे बादशाह के आदेशानुसार पालकियों को राणा रतन सिंह के शिविर तक बेरोकटोक जाने दिया गया और पालकियां सीधी रतन सिंह के तम्बू के पास पहुँच गई वहां इसी हलचल के बीच राणा रतन सिंह को अश्वारूढ़ कर किले की और रवाना कर दिया गया और बनावटी कहार और पालकियों में बैठे योद्धा पालकियां फैंक खिलजी की सेना पर भूखे शेरों की तरह टूट पड़े अचानक अप्रत्याशित हमले से खिलजी की सेना में भगदड़ मच गई और गोरा अपने प्रमुख साथियों सहित किले में वापस आने में सफल रहा महाराणा रतन सिंह भी किले में पहुच गए छह माह के लगातार घेरे के चलते दुर्ग में खाद्य सामग्री की भी कमी हो गई थी इससे घिरे हुए राजपूत तंग आ चुके थे अतः जौहर और शाका करने का निर्णय लिया गया गोमुख के उतर वाले मैदान में एक विशाल चिता का निर्माण किया गया पद्मिनी के नेतृत्व में १६००० राजपूत रमणियों ने गोमुख में स्नान कर अपने सम्बन्धियों को अन्तिम प्रणाम कर जौहर चिता में प्रवेश किया थोडी ही देर में देवदुर्लभ सोंदर्य अग्नि की लपटों में स्वाहा होकर कीर्ति कुंदन बन गया जौहर की ज्वाला की लपटों को देखकर अलाउद्दीन खिलजी भी हतप्रभ हो गया महाराणा रतन सिंह के नेतृत्व केसरिया बाना धारण कर ३०००० राजपूत सैनिक किले के द्वार खोल भूखे सिंहों की भांति खिलजी की सेना पर टूट पड़े भयंकर युद्ध हुआ गोरा और उसके भतीजे बादल ने अद्भुत पराक्रम दिखाया बादल की आयु उस वक्त सिर्फ़ बारह वर्ष की ही थी उसकी वीरता का एक गीतकार ने इस तरह वर्णन किया - बादल बारह बरस रो,लड़ियों लाखां साथ सारी दुनिया पेखियो,वो खांडा वै हाथ इस प्रकार छह माह और सात दिन के खुनी संघर्ष के बाद १८ अप्रेल १३०३ को विजय के बाद असीम उत्सुकता के साथ खिलजी ने चित्तोड़ दुर्ग में प्रवेश किया लेकिन उसे एक भी पुरूष,स्त्री या बालक जीवित नही मिला जो यह बता सके कि आख़िर विजय किसकी हुई और उसकी अधीनता स्वीकार कर सके उसके स्वागत के लिए बची तो सिर्फ़ जौहर की प्रज्वलित ज्वाला और क्षत-विक्षत लाशे और उन पर मंडराते गिद्ध और कौवे
शनिवार, 5 जून 2010
बुधवार, 2 जून 2010
बारमेर न्यूज़ track
दहेज दानव के कहर से कराह रही है रेखा
बाडमेर। दहेज के दानव ने रेखा के तन-मन को जख्मी को कर दिया है। अस्पताल में दर्द से कराह रही रेखा के हाथों की दोनों कोहनियों व छाती पर पॉलीथिन से जलाने के निशान स्थाई हो चुके हैं। ससुराल के नाम से ही उसे कंपकंपी होने लगती है। पीहर वाले उसके जख्मों पर मरहम लगाने की हरसंभव कोशिश कर रहे हैं।
शहर कोतवाली थाने में दर्ज एफआईआर के अनुसार जूना किराडू मार्ग बाडमेर निवासी रेखा का विवाह आठ वर्ष पहले खत्रियों का ऊपरला वास (बाडमेर) निवासी रविन्द्र पुत्र नथमल के साथ हुआ। रेखा के पिता अनंतलाल ने दस तोला सोना, एक किलो चांदी के गहने व घरेलू सामान दहेज में दिया। विवाह के बाद करीब तीन वर्ष तक उसका गृहस्थ जीवन हंसी-खुशी से गुजरता रहा। इस दौरान उसे संतान का सुख नहीं मिला। फिर दहेज प्रताडना का दौर शुरू हो गया। तीन वर्ष से वह घर से बाहर नहीं निकली।
उसे खाना भी एक ही समय दिया गया। उसके पीने के पानी की मटकी अलग कर दी गई। उसे जबरन नींद की गोलियां दी जाती और शारीरिक यातानाएं दी जाती। पति, सास व ससुर ने उस पर पीहर से पांच तोला सोना लाने के लिए दवाब बनाया। रेखा ने अपनी पीडा पीहर वालों को बताई। रेखा के पिता व चाचाओं ने उसके ससुराल वालों से समझाइश की और बात आई गई हो गई। लेकिन प्रताडना का दौर जारी रहा।
चिल्लाते हुए चाचा को आवाज दी
रेखा ने बताया कि तीन दिन पहले उसके भाई की शादी का निमंत्रण देने के लिए चाचा चेतनकुमार उसके ससुराल आए। तब उसके पति, सास व ससुर ने उसे भेजने से मना किया। चाचा की आवाज सुनकर रेखा चिल्लाते हुए घर के चौक में आई। चेतनकुमार ने देखा कि रेखा की हालत बहुत खराब है और उसके शरीर पर जलने के निशान हैं। रेखा ने चाचा से अनुरोध किया कि वह उसे यहां से ले जाएं अन्यथा उसे मार दिया जाएगा।
अस्पताल में भर्ती करवाया
पीहर वाले रेखा को ससुराल से घर लाए और उसे राजकीय चिकित्सालय में भर्ती करवाया। रेखा के पिता ने शहर कोतवाली थाने में दहेज प्रताडना व मारपीट का मामला भी दर्ज कराया है। पुलिस ने आरोपी ससुर नथमल व पति रविन्द्रकुमार को गिरफ्तार कर लिया है।
जांच की जा रही है
आरोपी ससुर व पति को गिरफ्तार किया गया है। मामले की जांच सब-इंस्पेक्टर निरंजनप्रतापसिंह को सौंपी गई है।
बुधाराम विश्नोई, शहर कोतवाल बाडमेर
बाडमेर जसवंतपुरा (जालोर)। जालोर एसीबी टीम ने मंगलवार को कस्बे स्थित एमजीबी बैंक के मैनेजर को दो हजार रूपए की रिश्वत लेते रंगे हाथों पकडा। मैनेजर ने यह रकम पुराने ऋण के मामले को सस्ते में निपटाने की एवज में मांगी थी।
एसीबी के पुलिस उप अधीक्षक तुलछाराम ने बताया कि डोरडा निवासी हकमाराम ने एमजीबी बैंक से करीब पांच साल पहले 95 हजार रूपए का ऋण लिया था। इसकी किश्तें समय पर अदा नहीं करने पर बैंक की ओर से उसे नोटिस जारी किया गया था। इस पर उसने बैंक मैनेजर पेपसिंह से इस बारे में सम्पर्क किया।
इस पर उन्होंने दो हजार रूपए की मांग करते हुए मामला सस्ते में निपटाने तथा भविष्य में नोटिस नहीं देने की बात कही। इसके बाद हकमाराम ने इसकी शिकायत जालोर एसीबी चौकी में कर दी। एसीबी की ओर से शिकायत का सत्यापन किया गया। इसके बाद योजना के तहत मंगलवार को साढे ग्यारह बजे हकमाराम दो हजार रूपए लेकर बैंक गया तथा मैनेजर को दे दिए। इशारा पाते ही एसीबी टीम ने बैंक मैनेजर के कब्जे से राशि बरामद कर उन्हें रंगे हाथों पकड लिया। इधर, बैंक मैनेजर का कहना है कि हकमाराम ने जबरदस्ती उसकी जेब में रूपए डाले हैं।
नहर में डूबने से दो भाइयों की मौत
बाडमेर। थाना क्षेत्र के धनेरिया की सरहद में नर्मदा मुख्य नहर पर पांव फिसलने पर नहर में डूबने से दो सगे भाइयों की मौत हो गई। धनेरिया निवासी कृष्णकुमार(22) व प्रहलादराम (20) पुत्र नरींगाराम रेबारी शाम को करीब साढे पांच बजे घर से नहर पर पानी का पाइप भरने आए थे। पाइप में पानी भरते समय एक भाई का पैर फिसलने से वह नहर में डूबने लगा।
उसके चिल्लाने पर दूसरे भाई ने उसको बचाने के लिए अपना हाथ बढाया। लेकिन वह भी नहर में गिर गया। नहर में पानी अघिक होने से दोनो भाई नहर में डूब गए। आस-पास के लोगों के हल्ला मचाने पर गांव के काफी लोग नहर पर इकटे हो गए। बाद में गांव के तैराकों ने रस्सी की सहायता से करीब डेढ घंटे की मशक्कत के बाद उनके शव बाहर निकाले। सूचना मिलने पर थानाप्रभारी सहदेव चौधरी व 108 एम्बुलेंस भी मौके पर पहुंची।
अलग-अलग हादसों में दो मरे
बाडमेर चौहटन कस्बे से एक किलोमीटर दूर स्थित धर्मपुरीजी के मंदिर में मंगलवार को एक निजी बस बेकाबू होकर दीवार तोडकर अन्दर घुस गई। मन्दिर के पुजारी व उसका पुत्र गंभीर रूप से घायल हो गए। पुजारी ने उपचार के लिए जोधपुर ले जाते समय रास्ते में दम तोड दिया। पुलिस के अनुसार चौहटन से मिठडाऊ जा रही एक निजी बस बेकाबू होकर धर्मपुरीजी के मंदिर में घुस गई।
इससे मçन्इर में सो रहे पुजारी रमेश (55)पुत्र मेहराराम व पुजारी का सत्ताइस वर्षीय पुत्र अशोक घायल हो गए। यहां से पुजारी को चौहटन में प्राथमिक उपचार के बाद जोधपुर रैफर किया गया। रास्ते में पचपदरा के पास उनका निधन हो गया। वहीं घायल युवक अशोक का बाडमेर में उपचार चल रहा है। पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए बस को कब्जे में ले लिया जबकि चालक रतनसिंह पुत्र चतरसिंह निवासी चौहटन मौके से फरार हो गया। पुलिस थाने में इस आशय का मामला कमलेश पुत्र जयरामदास ने दर्ज करवाया।
सिणधरी.भूंका भगतसिंह गांव में बस स्टेण्ड के पास मोटर साइकिल के पास खडे एक जने को सोमवार शाम एक ट्रक ने चपेट में लिया जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। पुलिस के मुताबिक मानाराम (45) पुत्र पूनमाराम निवासी भूंका भगतसिंह मेगा हाइवे के किनारे स्वयं की मोटर साइकिल लेकर बस स्टेण्ड के पास खडा था। इतने में बालोतरा की ओर से तेज गति से आ रहे ट्रक ने मानाराम को चपेट में ले लिया जिससे उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गई। ट्रक चालक सांवलाराम पुत्र वेलाराम निवासी गांधव के खिलाफ मामला दर्ज किया।
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