सोमवार, 1 मई 2017

भोपागढ़/जोधपुर दुष्कर्म के आरोपी तांत्रिक को सुनाई दस साल की सजा



भोपागढ़/जोधपुर दुष्कर्म के आरोपी तांत्रिक को सुनाई दस साल की सजा


नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी तांत्रिक को सुनाई दस साल की सजा

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भोपालगढ़ क्षेत्र की नायकों की ढाणी के बाहर धूणे पर झाड़-फूंक एवं तंत्र विद्या से इलाज करने के नाम पर चौदह वर्षीय नाबालिग बच्ची से दुष्कर्म करने के आरोपित तांत्रिक को शनिवार को जोधपुर स्थित जिला सत्र न्यायालय ग्रामीण की अदालत ने दस साल के कठोर कारावास एवं पांच हजार रुपए के अर्थदण्ड की सजा सुनाई है।

भोपालगढ़ कस्बे के बाहर स्थित नायकों की ढाणी के निकट ओस्तरा निवासी कथित तांत्रिक शक्ताराम ऊर्फ हरीदास पुत्र घेंवरराम का धूणा था।

वह वहां कथित झाड़-फूंक व तंत्र-मंत्र से भूत भगाने का ढोंगी इलाज करता था।




24 मई 2013 को बिलाड़ा थानान्तर्गत एक गांव से व्यक्ति चौदह वर्षीय बच्ची को उसके पास इलाज के लिए लेकर गया था और उसका साला व बच्ची का मामा भी साथ था।

वहां रात्रि में करीब नौ बजे उस तांत्रिक की हैवानियत जाग उठी और वह बच्ची को तंत्र-मंत्र से इलाज करने के लिए पहाड़ी से बहने वाले बाळे में ले गया तथा वहां उससे दुष्कर्म किया।




बाद में पीडि़त बच्ची के पिता की रिपोर्ट पर पुलिस ने मामला दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ न्यायालय में चालान पेश किया था।

करीब चार साल बाद शनिवार को जिला सत्र न्यायालय ग्रामीण के न्यायधीश डॉ. सूर्यप्रकाश पारीक की अदालत ने दस साल के कठोर कारावास एवं पांच हजार रुपए के अर्थदण्ड की सजा सुनाई है।

यहां है गणेशजी का वह मस्तक जो त्रिशूल के वार से हुआ था देह से अलग, पढ़िए यह पौराणिक कथा

यहां है गणेशजी का वह मस्तक जो त्रिशूल के वार से हुआ था देह से अलग, पढ़िए यह पौराणिक कथा
जयपुर. भगवान गणपति प्रथम पूज्य हैं। उन्हें गजानन भी कहा जाता है जिसका अर्थ है हाथी जैसे मुख वाला। गणेशजी का मुख हाथी जैसा क्यों है? इस संबंध में पौराणिक कथा आपने जरूर पढ़ी होगी। गणेशजी को हाथी का मस्तक लगाया गया लेकिन उनका पूर्व मस्तक कहां गया?इसके बारे में भी एक पौराणिक कथा में उल्लेख किया गया है। कहा जाता है कि जब गणेशजी का जन्म हुआ तो सभी देवी-देवता उनके दर्शन के लिए एकत्रित हुए। उस समय शनिदेव भी वहां आ गए। चूंकि शनि की दृष्टि मंगलकारी नहीं मानी जाती।इसलिए जब शनिदेव ने गणेश का मुख देखा तो उनका मस्तक धड़ से अलग हो गया। माना जाता है कि वह मुख चंद्र मंडल में विलीन हो गया।दूसरी कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं तब गणेशजी पहरा दे रहे थे। उसी दौरान शिवजी का आगमन हुआ। गणेशजी ने शिवजी को अंदर जाने से रोक दिया। क्रुद्ध होकर शिवजी ने गणेश का मस्तक काट दिया जो बाद में चंद्रलोक चला गया।बाद में उन्हें हाथी का मस्तक लगाया गया। माना जाता है कि गणेशजी का असली मस्तक आज भी चंद्रलोक में ही विद्यमान है। दार्शनिकाें ने गणपति के गजमुख को भी बहुत सुंदर और मंगलकारी माना है। कहते हैं कि गजमुख में सफलता के कई सूत्र छिपे हैं। गणपति के दर्शन करने से मन को प्रसन्नता प्राप्त होती है।दूसरी कथा के अनुसार, जब देवी पार्वती स्नान कर रही थीं तब गणेशजी पहरा दे रहे थे। उसी दौरान शिवजी का आगमन हुआ। गणेशजी ने शिवजी को अंदर जाने से रोक दिया। क्रुद्ध होकर शिवजी ने गणेश का मस्तक काट दिया जो बाद में चंद्रलोक चला गया।