मंगलवार, 8 जनवरी 2013

बाड़मेर नगर वधुओ की बदनाम बस्ती ...जहॉ बच्चे मॉ के नाम से जाने जाते हैं





बाड़मेर नगर वधुओ की बदनाम बस्ती ...जहॉ बच्चे मॉ के नाम से जाने जाते हैंसाटिया बस्ती को विकास और सुविधा की दरकार


बाड़मेर सीमावर्ती बाड़मेर जिले के सिवाना क्षैत्र के सांवरड़ा गांव जिले की एक मात्र बदनाम बस्ती हैं।जहॉ सदियों से नगर वधुऐं देह व्यापार में लिप्त हैं।साटिया जाति के लगभग सत्तर परिवार यहा आबाद हैं।पुरुषविहीन इस बस्ती में नगर वधुऐं और उनके बच्चें निवास करते हैं।यहा पैदा हुए बच्चों को कभी पिता का नाम नहीं मिला जिसके कारण ये बच्चे अपनी माताओं के नाम से ही जाने जाते हैं।यहॉ तक की इन बच्चों के विद्यालयों में भी पिता के नाम के स्थान पर माता का नाम दर्ज हैं।बाड़मेर जिले का सांवरडा गांव सदियों से देह व्यापार के धन्धे में लिप्त हे।ंपिच्यासी परिवारों के इस गांव में 132 नगर वधुऐं हैं वहीं 40-45 बच्चे हैं।इस गांव में प्राथमिक स्तर का एक विद्यालय हैं।जिसमें नगर वधुओं के बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं।इन बच्चों के नाम विद्यालय में दर्ज हैं।इस बस्ती में बेटियों से देह व्यापर कराया जाता हें ,घर आने वाली बहुओ को देहव्यापार के धंधे से दूर रखा जा रहा हें ,इस बस्ती में शादी की परंपरा थी चार साल पूर्व ही आरम्भ हुई .कृष्णासंस्था के प्रयासों से पहली बार बारात इस गाँव में आई थी .उस वक्क यह निर्णय लिया की बहुओ से देहव्यापार नहीं करेंगे .यह निर्णय आज भी लागू हें .


इन बच्चों के पिता के नाम के स्थान पर माता का नाम दर्ज हैं।विद्यालय के अध्यापक पुखराज जो इसी बस्ती का बेटा हैं ने बताया कि बस्ती की महिलाऐं देह व्यापार कर दो जून की रोटी का इंतजाम कर अपना और अपने परिवार का पेट पालती हैं।इन परिवारों में शादी का रिवाज नही हैं।जिसके कारण घर पुरुष विहीन हैं।बस्ती के बच्चों को पिता का भान नहीं हैं।बच्चो के लिए उनको जन्म देने वाली मॉ ही मॉबाप का फर्ज अदा करती हैं।देह व्यापार से जुड़ी पेम्पली देवी ने बताया कि बस्ती में परम्परागत रुप से देह व्यापार होता हैं।कुछ नगर वधुऐं पढ़ी लिखी हैं।पहले हम बच्चों को विद्यालय नहीं भेजते थे।कृष्णा संस्था के द्वारा हमें समझाइ्रस कर बच्चो को विद्यालय में भिजवाना आरम्भ किया।


समाज की मुख्य धारा में शामिल होने की चाह के चलते इन नगर वधुओं ने अपना नाम देकर बच्चों को शिक्षित करने का साहस दिखाया।विद्यालय दस्तावेजों में देवा पुत्र छगनी,राजु पुत्र शारदा ,संतोष पुत्री मदनी देवी आदी दर्ज हैं।विद्यालय में इन बच्चो को माकुल सुविधा तो दूर आवश्यक सुविधा तक उपलब्ध नही हैं।इन विद्यार्थियों को नि:शुल्क पुस्तके,पोशाके और पाठय सामग्री तक नहीं मिलती।कृष्णा संस्था द्घारा प्रयास कर इन बच्चो के लिए पानी का एक टेंक बनाया गया था।इसके बाद इनकी तरफ प्रशासन या सरकार ने कभी झांका तक नही॥बस्ती की महिलाओं ने विद्यालय की क्रमोनति की कई र्मतबा प्रशासन से मांग की मगर कोई कार्यवाही नही हुई।इस बस्ती के पुखराज,शांति,और मदन प लिख कर सरकारी सेवा तक पहुॅचने में सफल हुए हैं।इन बच्चों को सम्बल की आवश्यक्ता हैं।पढ लिख कर बच्चे समाज की मुख्य धारा में जुड़ना चाहते हैं।


देहव्यापार से जुडी महिलाओ के बच्चो को शिक्षण सुविधा के लिए राज्य सरकार को जिला प्रशासन के मार्फ़त कई प्रस्ताव भिजवाए मगर कोई कार्यवाही नहीं हुई ,नगर वधुए अपने बच्चो को शिक्षित कर इस दल दल से दूर रखना चाहती हें ,.बस्ती के कई बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हें ,बस्ती का बीटा पुखराज अध्यापक हे ,मदन साटिया ने स्नातक तक शिक्षा ग्रान कर राखी हें ,अभी वह शिक्षा केंद्र संचालित कर रहा हें ,साटिया बस्ती को विकास और सुविधा की दरकार हें .

बाड़मेर का कैमल ब्यूटी पार्लर

बाड़मेर का कैमल ब्यूटी पार्लर

भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे रेगिस्तानी जिले बाड़मेर के ऊंट विश्व भर में अपनी खास पहचान रखते हैं. 'रेगिस्तान' के जहाज के नाम से मशहूर इन ऊंटों की पशुपालक खास देखभाल करते हैं. एक दशक में ऊंटों की संख्या में काफी कमी आई है. कभी ग्रामीण अंचलों में - ऊंट घर घर की जरूरत रहे हैं. रेगिस्तानी धोरों में संचार व यातायात के बेहतर साधनों में ऊंटों का ही उपयोग किया जाता था, तो खेतों में जुताई का कार्य भी ग्रामीण ऊंटों के माध्यम से करते थे. संचार, कृषि के आधुनिक साधनों और संसाधनों के बढ़ते प्रभाव ने ऊंटों का महत्व भले ही कम कर दिया हो लेकिन ऊटों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए अब बाड़मेर विशेष ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं, जहां ऊंटों को सजाया-संवारा जाता है.
डेर्जट ब्यूटी पार्लर ऐसा ही सैलून है, जहां ऊंटों के लिए विशेष कटिंग का प्रावधान है. सैलून संचालक मंगाराम बताते हैं कि ऊंटों की कीमतें अब कम हो जाने के कारण ऊंट पालकों के सामने आजीविका का संकट खडा हो गया है. ऊंट पालक अपने ऊंटों को खास लुक देने के लिए विशेष कटिंग करवा कर खरीदारों का ध्याआन आकर्षित करते हैं. इससे कई मर्तबा ऊंट पालको को अच्छे खरीददार मिल जाते हैं. आजकल ऊंटों के शरीर पर, विशेष तौर से बाल कटिंग कर, तरह - तरह के टैटू बनाए जाते हैं. यह टैटू ऊंटों में विशेष आकर्षण पैदा करते हैं. मगाराम के अनुसार विशेषज्ञ टैटू कटिंग के 500 से 700 स्पये तक लेते हैं.

उधर जैसलमेर में आने - वाले देसी विदेशी पर्यटकों के लिए भी ऐसे ऊंट विशेष आकर्षण का केन्द्र होते हैं. रेगिस्तान 'कैमल सफारी के लिए विशेष कटिंग वाले ऊंटों की बुकिंग हाथोंहाथ हो है जाती' में, साथ ही किराया भी अच्छा मिलता है. 'कैमल सफारी का काम करने वाले सादिक खान ने बताया कि ऊंटों का रूप संवारने के लिए पैसा खर्च करने का लाभ मिलता है. ऊंटों के बालों - पर तरह तरह के कटिंग करा कर फूल - पत्तियां, बेल - बूटे, पक्षी आदि की डिजाईन उकेरते हैं. सैलानियों को इस तरह की डिजाईनें बेहद पसन्द आती 'हैं तथा' कैमल सफारी लिए ऐसे ऊंट पहली पसन्द होते हैं.

पूर्व में इस तरह ऊंटों के सैलून नहीं थे, 'ब्यूवटी पार्लर काफी मात्रा में खुल गए मगर विभिन्न पशु मेलों में इसका प्रचलन देख बाड़मेर और जैसलमेर में' जो रेगिस्तान 'के जहाज ऊंटों को संवारने का काम करते हैं हैं, कैमल. पूर्व में पशुपालक स्वयं ऊंटों के बाल काटते थे. ग्रामीण क्षेत्रों में सभी पशुपालक एक स्थान पर एकत्रित होकर ऊंटों के बाल सामुहिक रूप से काटते थे. अब कैमल सैलूनों का प्रचलन बढ़ गया है.