जैसलमेर में खिली कश्मीरी केसर
जैसलमेर। कहतें है कि मन में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो हर राह आसान हो जाती है इसी राह को डेलासर गाँव के एक किसान छतरसिंह ने तपते धोरों में केसर की खेती कर इसकी संभावना को मजबूती दी है। जी हां मामला है जैसलमेर का जहाँ एक किसान ने वो कर दिखाया जो कश्मीर के खेतों में पैदा होने वाला केसर अब प्रदेश के रेतीले के धोरों में भी महकने लगा है।ठंडे प्रदेश में पनपने वाली केसर की खेती अब जैसलमेर के धोरों में होने लगी है। जहां इस केसर की खेती को लेकर स्थानीय किसानों में कौतुहल है कि इस इलाके में अगर केसर हो सकती है तो वह किसानों का भाग्य बदल सकती है वहीं केसर की इस उपज ने कृषि वैज्ञानिकों को भी असमंजस में डाल दिया है।
इस तरह मुमकिन हुई धोरों में केसर की खेती
आमतौर पर जैसलमेर का पारा 40 डिग्री पार रहता और इस गर्मी में केसर की खेती केवल सपना देखना होता है इस सपने को हकीकत में बदला जिले के एक किसान छतरसिंह ने। जी,हां मरूप्रदेश मे अब केसर की महक बिखरने लगी है। जैसलमेर में खजूर, अनार के स्वाद के बाद अब केसर की खेती का दौर भी शुरू हो गया है। किसानों को अब केसर की खेती रास आने लगी है।जिले के डेलासर गांव में इन दिनों एक किसान ने अपने नलकूप पर जब केसर की बुवाई की थी, तब उसे पूरा विश्वास नहीं था कि केसर अपनी महक जैसलमेर में भी बिखेरेगी देगी।
किसान ने अपनी मेहनत के बल पर केसर के पौधे तैयार कर उनसे उत्पादन भी लेना शुरू कर दिया है। जैसलमेर के डेलासर में 6 महीने पहले बोए गए केसर के पौधे अब उत्पादन देने लगे हैं। छत्तरसिंह भाटी की 6 महीने की मेहनत अब रंग लाने लगी है। उन्होंने अक्टूबर में केशर के बीज की बुवाई की थी।वर्तमान में पौधे की लंबाई 4 से 5 फीट की है। पौधों में केसर के डोडे लगने के बाद केसरिया रंग की पखुडियां लग गई हैं। गांव में आम तौर पर अमरीकन या विदेशी नाम से जानी जाने वाली केसर की खेती आस्ट्रेलिया, अमरीका, जम्मू-कश्मीर में की जाती है। इस खेती के लिए बीस डिग्री से पच्चीस डिग्री तक सामान्य तापमान में पैदावार अच्छी होती है, वहीं गर्मी व लू से बचाव के लिए ग्रीन छाया की व्यवस्था करनी पड़ती है। लेकिन जैसलमेर में विपरीत जलवायु में भी केसर लहलहा रही है।
हंसते थे लोग
किसान छतरसिंह के घर इस केसर को देखने आस-पास ग्रामीणो का डेरा लगा रहता है और मरुस्थल में इस केसर को देख आस्चर्य्यचकित हो रहे है।छतरसिंह के परिवार वाले केसर की उत्पादन कर बेहद खुश दिखाई देते है।
ग्रामीणो का कहना है की पहले जब छतरसिंह को केसर के उत्पादन देख हसी उड़ाते थे और छतरसिंह को पागल कहते थे लेकिन केसर की पैदावार हुई तो हमें वह सीख मिली की अगर कुछ मन में ठान लो तो हर राह आसान हो जाती है। जो केसर आखो से नहीं देखी वह खेत में हो रही है ग्रामीणो का भी मन हो गया की अगली बार वह भी केसर की खेती करेंगे।
पर...कृषि विभाग ने मानने से किया इनकारसमाचार पत्रों के माध्यम से फैली इन खबरों के बीच जब कृषि विभाग के अधिकारी इस केसर की फसल का जायजा लेने और जैसलमेर जैसे इलाके में इस फसल के सफलतापूर्व पैदा होने की जांच के लिये पहुंचे तब उन्होंने इस केसर पर सवाल खड़े कर दिये।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि डेलासर में हुए इस केसरनुमा पौधे को केसर कहना उचित नहीं होगा हालांकि उन्होंने इस पैदावार को जांच के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं में भेजा है और जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पायेगा कि यह पौधा केसर है या फिर कुछ और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि केसर को जिस तापमान और जलवायु की आवश्यता होती है वह जैसलमेर में संभव नहीं है वहीं जिस किसान ने अपने खेत में केसर की उपज की है वह इस बात पर अड़ा है कि यह सौ प्रतिशत केसर ही है।
इस तरह मुमकिन हुई धोरों में केसर की खेती
आमतौर पर जैसलमेर का पारा 40 डिग्री पार रहता और इस गर्मी में केसर की खेती केवल सपना देखना होता है इस सपने को हकीकत में बदला जिले के एक किसान छतरसिंह ने। जी,हां मरूप्रदेश मे अब केसर की महक बिखरने लगी है। जैसलमेर में खजूर, अनार के स्वाद के बाद अब केसर की खेती का दौर भी शुरू हो गया है। किसानों को अब केसर की खेती रास आने लगी है।जिले के डेलासर गांव में इन दिनों एक किसान ने अपने नलकूप पर जब केसर की बुवाई की थी, तब उसे पूरा विश्वास नहीं था कि केसर अपनी महक जैसलमेर में भी बिखेरेगी देगी।
किसान ने अपनी मेहनत के बल पर केसर के पौधे तैयार कर उनसे उत्पादन भी लेना शुरू कर दिया है। जैसलमेर के डेलासर में 6 महीने पहले बोए गए केसर के पौधे अब उत्पादन देने लगे हैं। छत्तरसिंह भाटी की 6 महीने की मेहनत अब रंग लाने लगी है। उन्होंने अक्टूबर में केशर के बीज की बुवाई की थी।वर्तमान में पौधे की लंबाई 4 से 5 फीट की है। पौधों में केसर के डोडे लगने के बाद केसरिया रंग की पखुडियां लग गई हैं। गांव में आम तौर पर अमरीकन या विदेशी नाम से जानी जाने वाली केसर की खेती आस्ट्रेलिया, अमरीका, जम्मू-कश्मीर में की जाती है। इस खेती के लिए बीस डिग्री से पच्चीस डिग्री तक सामान्य तापमान में पैदावार अच्छी होती है, वहीं गर्मी व लू से बचाव के लिए ग्रीन छाया की व्यवस्था करनी पड़ती है। लेकिन जैसलमेर में विपरीत जलवायु में भी केसर लहलहा रही है।
हंसते थे लोग
किसान छतरसिंह के घर इस केसर को देखने आस-पास ग्रामीणो का डेरा लगा रहता है और मरुस्थल में इस केसर को देख आस्चर्य्यचकित हो रहे है।छतरसिंह के परिवार वाले केसर की उत्पादन कर बेहद खुश दिखाई देते है।
ग्रामीणो का कहना है की पहले जब छतरसिंह को केसर के उत्पादन देख हसी उड़ाते थे और छतरसिंह को पागल कहते थे लेकिन केसर की पैदावार हुई तो हमें वह सीख मिली की अगर कुछ मन में ठान लो तो हर राह आसान हो जाती है। जो केसर आखो से नहीं देखी वह खेत में हो रही है ग्रामीणो का भी मन हो गया की अगली बार वह भी केसर की खेती करेंगे।
पर...कृषि विभाग ने मानने से किया इनकारसमाचार पत्रों के माध्यम से फैली इन खबरों के बीच जब कृषि विभाग के अधिकारी इस केसर की फसल का जायजा लेने और जैसलमेर जैसे इलाके में इस फसल के सफलतापूर्व पैदा होने की जांच के लिये पहुंचे तब उन्होंने इस केसर पर सवाल खड़े कर दिये।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि डेलासर में हुए इस केसरनुमा पौधे को केसर कहना उचित नहीं होगा हालांकि उन्होंने इस पैदावार को जांच के लिये विभिन्न प्रयोगशालाओं में भेजा है और जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चल पायेगा कि यह पौधा केसर है या फिर कुछ और कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि केसर को जिस तापमान और जलवायु की आवश्यता होती है वह जैसलमेर में संभव नहीं है वहीं जिस किसान ने अपने खेत में केसर की उपज की है वह इस बात पर अड़ा है कि यह सौ प्रतिशत केसर ही है।