रविवार, 22 अगस्त 2010
शनिवार, 21 अगस्त 2010
विश्व पर्यटन दिवस विशेष .स्वर्ण नगरी जैसलमेर 'रेगिस्तान का गुलाब' और 'राजस्थान का अंडमान'
स्वर्ण नगरी के नाम से मशहूर जैसलमेर की खूबसूरती देखते ही बनती है। ऎतिहासिक विरासत खुद में समेटे जैसलमेर की यदुवंशी भाटी राजपूत महारावल जैसल ने श्रावण शुक्ला 12, संवत् 1212 को एक त्रिकूट पहाडी पर नींव रखी थी। इसका प्राचीन नाम माडधरा व वल्ल मंडल भी था। यूं तो और भी कई शहरों में हवेलियां हैं लेकिन जैसलमेर की हवेलियों का कोई सानी नहीं है। इसलिए जैसलमेर को हवेलियों व झरोखों की नगरी भी कहा जाता है। यही नहीं इसे 'रेगिस्तान का गुलाब' और 'राजस्थान का अंडमान' भी कहा जाता है। भारत की सीमा पर थार मरूस्थल में बसा जैसलमेर जिला क्षेत्रफल की दृष्टि से देश में 'लेह' और 'कच्छ' के बाद तीसरा सबसे बडा जिला है। क्षेत्रफल के आधार पर राजस्थान का सबसे बडा जिला जैसलमेर (38,401 वर्ग किलोमीटर) है।
जैसलमेर के प्रमुख स्थान और कस्बे
रामदेवरा: जैसलमेर-बीकानेर मार्ग पर जैसलमेर से 125 किलोमीटर दूर स्थित रूणेचा गांव में लोक देवता बाबा रामदेव का मंदिर, रामदेव सरोवर, गुरूद्वारा, परचा बावडी आदि दर्शनीय स्थल हैं। रामदेवजी की शिष्या डालीबाई का समाघि स्थल भी स्थित है। रामदेव अन्न क्षेत्र समिति कोढियों व अपंगों की सेवा करती हंै।
तनोट : इसे पूर्व रियासत के शासकों की प्राचीनतम राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। यहां तनोट देवी का मंदिर है, जो जैसलमेर के पूर्व भाटी शासकों की कुल देवी मानी जाती है। इस मंदिर में सेना तथा सीमा सुरक्षा बल के जवान पूजा करते हैं। तनोट से 9 किलोमीटर दूर घटियाली माता का मंदिर है। तनोट में देवी मंदिर के सामने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की जीत का प्रतीक विजय स्तंभ भी स्थापित है। कटरा गांव- पश्चिमी छोर का अंतिम गांव, जो जैसलमेर जिले में स्थित है।
कुलधरा : यहां कैक्टस गार्डन का निर्माण किया जा रहा है। जैसलमेर के दीवान सालिमसिंह के कथित अत्याचारों से तंग आकर 84 गांवों में बसे पालीवाल ब्राह्मण जैसलमेर से पलायन कर गए थे। कुलधरा इन्हीं 84 गांवों में से सबसे महžवपूर्ण कस्बा था।
पर्यटन स्थल
पटवों की हवेली : यह पांच हवेलियों का समूह है, जिन्हें पांच भाइयों ने मिल कर बनाया था। इनका निर्माण सन् 1800 से 1860 के मध्य करवाया गया। सालिम सिंह की हवेली-जैसलमेर के प्रधानमंत्री सालिम सिंह ने सन् 1825 में इस हवेली का निर्माण करवाया। नीली गुंबददार छत और नक्काशी किए मोर की आकृति अत्यन्त आकर्षक है। नथमल की हवेली -इस हवेली के दाईं व बाईं ओर की गई नक्काशी देखने में एक-सी हैं, लेकिन ऎसा है नहीं।
सम के टीले: जैसलमेर के पश्चिम में 42 कि.मी. दूर थार मरूस्थल में विशाल रेतीले टीलों का क्षेत्र शुरू होता है। सम गांव में ऊंट सफारी तथा सूर्यास्त दर्शन पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। वनस्पति विहीन रेत के टीलो को सम के टीले भी कहा जाता है।
आकल वुड फॅासिल पार्क : भू-पर्यटन के लिहाज से यह क्षेत्र महžवपूर्ण है। जैसलमेर से बाडमेर की ओर जाने वाले मार्ग पर 17 किलोमीटर दूर आकल गांव में फॉसिल पार्क (जीवाश्म उद्यान) है। राष्ट्रीय मरू उद्यान-जैसलमेर व बाडमेर जिले के 3,162 किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह राज्य का सबसे बडा अभयारण्य है। जैसलमेर में इसका करीब 1,900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र है। 8 मई, 1981 को अघिसूचित इस अभयारण्य में दुर्लभ राज्य पक्षी गोडावण पाया जाता है।
बादल विलास व जवाहर विलास: जैसलमेर के महारावलों के निवास जवाहर तथा बादल विलास 19 वीं शताब्दी की अद्भुत कलाकृतियों में से एक हैं। इन्हें मुस्लिम सिलावटों ने तराशा था। बादल विलास में बना ताजिया टावर पांच मंजिला है और शिल्प कला का बेजोड नमूना है। जवाहर विलास में झरोखों व छतरियों के साथ ही दीवारों पर की गई खुदाई देखते ही बनती है। इसका निर्माण 20 वीं शताब्दी में महारावल जवाहर सिंह ने कराया था।
बडा बाग : जैसलमेर से सात किलोमीटर उत्तर में एक खूबसूरत बाग है, जिसके साथ ही एक विशाल बांध बना हुआ है। यहां राजघराने से संबंघित स्मारक और पुराने शासकों की मूर्तियां भी दर्शनीय हैं।
जैसलमेर दुर्ग : जैसलमेर के दुर्ग को रावल जैसल ने 1155 ई. में बनवाया था। पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण यह उषा व सांध्यकाल में स्वर्ण के समान चमकता है। इसीलिए जैसलमेर दुर्ग को सोनारगढ या सोनगढ भी कहा जाता है। राव जैसल के बाद के शासकों ने इसमें अन्य निर्माण करवाए। यह किला सात वर्षो में पूर्ण हुआ।
सातलमेर : इसे पोकरण की प्राचीन राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। बाबा रामदेव ने इसी के पास एक गुफा में भैरव राक्षस का वध किया था।
लोद्रवा : जैसलमेर से 15 किमी. उत्तर पश्चिम में स्थित लोद्रवा किसी जमाने में जैसलमेर की राजधानी थी। खूबसूरत जैन मंदिर और कृत्रिम कल्पवृक्ष ( द डिवाइन ट्री) यहां के मुख्य आकर्षण हैं। लोद्रवा जैनियों का प्रमुख तीर्थस्थल है।
गडसीसर सरोवर : जैसलमेर शहर के प्रवेश मार्ग पर स्थित पवित्र गडसीसर सरोवर का निर्माण रावल गडसीसिंह ने सन् 1340 में कराया था। यह सरोवर न केवल अपने कलात्मक प्रवेश द्वार, जलाशय के मध्य में स्थित सुन्दर छतरियाें व इसके किनारे बने बगीचों के कारण प्रसिद्ध है। 1965 से पहले तक यह जैसलमेर वासियों का प्रमुख पेयजल स्रोत भी था।
मेले व उत्सव
बाबा रामदेव का मेला
यह प्रसिद्ध लक्खी मेला माघ और भाद्रपद महीनों के शुक्ल पक्ष में दूज से एकादशी तक लगता है। घोटारू में गैस के भंडार-जैसलमेर जिले का घोटारू क्षेत्र तेल गैस के भंडारों के लिए चर्चित हैं। सबसे पहले गैस के भण्डार यहीं पर मिले थे। यहां 1500 से 2000 मीटर की गहराई पर गैस एवं तेल के भंडार उपलब्ध हैं।
शाहगढ बल्ज
इस क्षेत्र में 60 खरब क्यूबिक फीट उच्च गुणवत्ता की प्राकृतिक गैस मिलने का दावा फोकस एनर्जी ने किया है। 3,161 मीटर की गहराई पर मिली गैस में 91 फीसदी तक हाइड्रोकार्बन का आकलन किया गया है। तनोट-जैसलमेर से करीब 120 किलोमीटर दूर स्थित तनोट में भी प्राकृतिक गैस के भंडार मिले हैं। सादेवाला- जैसलमेर से 145 किमी. दूर सादेवाला में सन् 1984 में तेल के विशाल भंडार मिले हैं, तेल और प्राकृतिक गैस आयोग की देखरेख में यहां खुदाई का काम चल रहा है।
डेजर्ट फेस्टिवल (मरू मेला)
माघ सुदी 13 से पूर्णिमा तक शीत ऋतु (जनवरी- फरवरी) में यहां लगने वाला डेजर्ट फेस्टिवल सैलानियों का प्रमुख आकर्षण है। यह मेला पर्यटन विभाग की ओर से सन् 1979 से निरंतर आयोजित किया जा रहा है। इस मेले के दौरान शोभा यात्रा निकाली जाती है जो गडसीसर तालाब से शहर में होते हुए पूनम स्टेडियम पर सम्पन्न होती है। ऊंट पोलो, ऊंट की सवारी, कठपुतली नृत्य, सपेराें का कला प्रदर्शन मुख्य आकर्षण रहते हैं। मिस्टर डेजर्ट प्रतियोगिता में विजेता चुनने का मुख्य आधार मूंछों की लंबाई होता है।
गुरुवार, 5 अगस्त 2010
बुधवार, 4 अगस्त 2010
मंगलवार, 3 अगस्त 2010
सोमवार, 2 अगस्त 2010
रविवार, 1 अगस्त 2010
मंगलवार, 15 जून 2010
सोमवार, 14 जून 2010
बारमेर न्यूज़ track
आवश्यकता है रक्तदान क्रांति की
ND
दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों के मुताबिक आती सर्दियों में स्वाइन फ्लू वायरस का पलटवार और जोरदार ढंग से होगा। देश में इस समय डेंगू का प्रकोप जोरों पर है जिसे स्वाइन फ्लू के 'प्रचार' ने पीछे ढकेल रखा है। इन दोनों बीमारियों में मरीज के रक्त में 'प्लेटलेट' का स्तर खतरनाक ढंग से नीचे गिर जाता है।हर साल देश की कुल 2433 ब्लड बैंकों में 70 लाख यूनिट रक्त इकट्ठा होता है। जबकि जरूरत है 90 लाख यूनिट की। इसका भी केवल 20 प्रतिशत ही रक्त बफर स्टॉक में रखा जाता है। शेष का इस्तेमाल कर लिया जाता है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की गाइडलाइंस के मुताबिक दान में मिले हुए रक्त का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। एक यूनिट रक्त 450 मिलीलीटर होता है। आसन्न संकट के मद्देनजर देश को एक रक्तदान क्रांति की सख्त जरूरत है। मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शरीर के बाहर रक्त किसी भी परिस्थिति में 'पैदा' नहीं किया जा सकता। जाहिर है, इसे केवल रक्तदान से हासिल किया जा सकता है। रक्तदान दो तरह का होता हैः एक, जिसमें मरीज को चढ़ाए गए रक्त की भरपाई उसके स्वस्थ परिजन से लेकर की जाती है तथा दूसरे, 'स्वैच्छिक' रक्तदान से। फिलहाल माँग का केवल 53 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से हासिल होता है। शेष की पूर्ति 'रिप्लेसमेंट' से होती है। 1998 में सर्वोच्च न्यायायल के निर्देश पर देश में पेशेवर रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। न्यायालय की मंशा यह थी कि मरीज के परिजनों से लिए गए रक्त की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी लेकिन इससे बचने के भी रास्ते निकल आए हैं। जिन मरीजों के परिजन रक्तदान करने की स्थिति में नहीं होते वे ऐसे पेशेवरों का सहारा लेते हैं जो रिश्तेदार तो नहीं हैं लेकिन ब्लडबैंक में 'रिश्तेदार' बनकर ही पहुँचते हैं। यही वजह है कि अब पेशेवर रक्तदाताओं का एक ऐसा वर्ग खड़ा हो गया जो पैसा लेकर ब्लड बैंक पहुँचने लगा है। बावजूद इसके रक्त की कमी हमेशा बनी रहती है।इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो-हिमेटोलॉजी (आईएसबीटीआई) के मुताबिक स्थिति इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में अब भी पूर्ण रक्त चढ़ाने का चलन है। विशेषज्ञों का मानना है कि रक्त को एक जीवनरक्षक औषधि के तौर पर देखा जाना चाहिए। अधिकांश मामलों में पूर्ण रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती बल्कि रक्त के अवयव (प्लेटलेट, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी) चढ़ाने से ही मरीज ठीक हो जाता है। दुनिया भर में 90 प्रतिशत मामलों में रक्त के अवयवों का प्रयोग होता है जबकि हमारे देश में केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही इनका प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण रक्त चढ़ा दिया जाता है। इस विसंगति की दूसरी वजह यह भी है कि हमारे देश में ब्लड कंपोनेन्ट सेपरेटर मशीनें बहुत ही कम ब्लड बैंकों में लगी हैं। इसके अलावा कंपोनेन्ट्स को अलग करने में लागत बढ़ जाती है। रक्त की कमी के कारण देश में हर साल 15 लाख मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन बच्चों की है जिन्हें थेलेसीमिया के कारण जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। हादसों के शिकार घायलों, मलेरिया के मरीजों, कुपोषणग्रस्त बच्चों के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को कई कारणों से रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। संक्रमित रक्त का जोखिम दरअसल हमारे देश में स्वैच्छिक रक्तदान अब भी जीवनशैली का हिस्सा नहीं हो सका है। आज भी ऐसे नवधनाढ्यों की कमी नहीं है जो अस्पतालों के इमरजेंसी रूम्स या ऑपरेशन थिएटरों में पड़े अपने रिश्तेदारों को रक्तदान करने के बजाए मुँहमाँगी कीमत पर खून खरीद लेने की पेशकश करते हैं। ऐसे में पेशेवर रक्तदाता 'रिश्तेदार' बनकर सामने आते हैं। 47 प्रतिशत रक्त की जरूरत इन्हीं लोगों से पूरी होती है। ऐसे 'स्वैच्छिक' रक्तदाता के खून की गुणवत्ता तो निश्चित ही गिरी हुई होती है, साथ ही संक्रमित है या नहीं इसकी भी जाँच नहीं हो पाती। आज देश में हजार में से तीन लोगों को दूषित रक्त चढ़ाने के कारण एचआईवी का संक्रमण होता है। हर रक्तदाता को नियमानुसार पहले तीन महीनों के लिए निगरानी (विंडो पीरियड) में रखा जाना चाहिए। रक्तदाता के खून में एचआईवी का संक्रमण है या नहीं, यह जाँचने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। आज जिसने रक्तदान किया हो और परीक्षण में एचआईवी वायरस की रिपोर्ट नेगेटिव आई हो, उसका तीन महीने बाद पुनः परीक्षण होना चाहिए। इसमें संक्रमण नहीं आने पर ही रक्त किसी मरीज को चढ़ाने के योग्य समझा जाता है। हमारे यहाँ ऐसा नहीं हो पाता। यही वजह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ स्वयंसेवकों को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए। क्या है स्थिति रक्तदान की देश में फिलहाल केवल 500 ब्लड बैंक ही ऐसी हैं जिन्हें बड़ी ब्लड बैंक कहा जा सकता है। यहाँ हर साल 10 हजार यूनिट्स से अधिक रक्त जमा होता है। करीब 600 ऐसी ब्लड बैंकें हैं जो हर साल 600 यूनिट्स ही इकट्ठा कर पाती हैं। शेष 2433 ब्लड बैंक्स ऐसी हैं जो 3 से 5 हजार यूनिट्स हर साल इकट्ठा कर लेती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश में एबी प्लस प्लाज्मा, ओ-पॉजिटिव, ओ-नेगेटिव का स्टॉक रहना बहुत जरूरी है। किसी भी आपातस्थिति में (जैसे मुंबईClick here to see more news from this city पर आतंकवादी हमला) जब घायलों को रक्त चढ़ाने के लिए परिजनों की राह नहीं देखी जा सकती हो, उन परिस्थितियों में उपरोक्त रक्त समूह का प्रयोग किया जाता है।देश में लगभग 25 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। सबसे अधिक ब्लड बैंक महाराष्ट्र (270) में हैं। इसके बाद तमिलनाडु (240) और आंध्रप्रदेश (222) का स्थान आता है। दान में मिला हुआ आधा लीटर रक्त तीन मरीजों की जान बचा सकता है। सबसे दुखद स्थिति उत्तर पूर्व के सात राज्यों की है। सातों राज्यों में कुल मिलाकर 29 अधिकृत ब्लड बैंक्स हैं।
ND
कैसा होना चाहिए रक्त इंडियन फार्माकोपिया के मुताबिक मानव रक्त एक औषधि है। इसके लिए कुछ शर्तें और नियम लागू किए गए हैं। मरीज को चढ़ाने के लिए प्राप्त रक्त को एचआईवी एंटीबॉडीज संक्रमण से मुक्त होना चाहिए। इसे हिपेटाईटिस बी और सी नामक वायरसों के अलावा सिफलिस, मलेरिया आदि से भी मुक्त होना चाहिए। कौन कर सकता रक्तदान कोई भी ऐसा व्यक्ति रक्तदान कर सकता है, जो1. 18-60 वर्ष की उम्र का हो,2. तीन साल से जिसे मलेरिया का संक्रमण न हुआ हो,3. एक साल से पीलिया न हुआ हो,4. उच्च रक्तचाप और डायबिटीज का रोगी न हो। स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ करें नया देश में स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए अब तक जो कुछ भी किया गया है वह अपर्याप्त साबित हुआ है। दरअसल जितनी बड़ी मात्रा में हमें शुद्ध रक्त चाहिए उसके लिए एक महा-आंदोलन की जरूरत है।
ND
दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों के मुताबिक आती सर्दियों में स्वाइन फ्लू वायरस का पलटवार और जोरदार ढंग से होगा। देश में इस समय डेंगू का प्रकोप जोरों पर है जिसे स्वाइन फ्लू के 'प्रचार' ने पीछे ढकेल रखा है। इन दोनों बीमारियों में मरीज के रक्त में 'प्लेटलेट' का स्तर खतरनाक ढंग से नीचे गिर जाता है।हर साल देश की कुल 2433 ब्लड बैंकों में 70 लाख यूनिट रक्त इकट्ठा होता है। जबकि जरूरत है 90 लाख यूनिट की। इसका भी केवल 20 प्रतिशत ही रक्त बफर स्टॉक में रखा जाता है। शेष का इस्तेमाल कर लिया जाता है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की गाइडलाइंस के मुताबिक दान में मिले हुए रक्त का 25 प्रतिशत बफर स्टॉक में जमा किया जाना चाहिए, जिसे सिर्फ आपातस्थिति में ही इस्तेमाल किया जा सके। एक यूनिट रक्त 450 मिलीलीटर होता है। आसन्न संकट के मद्देनजर देश को एक रक्तदान क्रांति की सख्त जरूरत है। मरीज की जान बचाने के लिए रक्त चढ़ाना एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। शरीर के बाहर रक्त किसी भी परिस्थिति में 'पैदा' नहीं किया जा सकता। जाहिर है, इसे केवल रक्तदान से हासिल किया जा सकता है। रक्तदान दो तरह का होता हैः एक, जिसमें मरीज को चढ़ाए गए रक्त की भरपाई उसके स्वस्थ परिजन से लेकर की जाती है तथा दूसरे, 'स्वैच्छिक' रक्तदान से। फिलहाल माँग का केवल 53 प्रतिशत रक्त ही स्वैच्छिक रक्तदान से हासिल होता है। शेष की पूर्ति 'रिप्लेसमेंट' से होती है। 1998 में सर्वोच्च न्यायायल के निर्देश पर देश में पेशेवर रक्तदान पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया गया था। न्यायालय की मंशा यह थी कि मरीज के परिजनों से लिए गए रक्त की गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सकेगी लेकिन इससे बचने के भी रास्ते निकल आए हैं। जिन मरीजों के परिजन रक्तदान करने की स्थिति में नहीं होते वे ऐसे पेशेवरों का सहारा लेते हैं जो रिश्तेदार तो नहीं हैं लेकिन ब्लडबैंक में 'रिश्तेदार' बनकर ही पहुँचते हैं। यही वजह है कि अब पेशेवर रक्तदाताओं का एक ऐसा वर्ग खड़ा हो गया जो पैसा लेकर ब्लड बैंक पहुँचने लगा है। बावजूद इसके रक्त की कमी हमेशा बनी रहती है।इंडियन सोसायटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन एंड इम्यूनो-हिमेटोलॉजी (आईएसबीटीआई) के मुताबिक स्थिति इसलिए भी गंभीर हो जाती है क्योंकि हमारे देश में अब भी पूर्ण रक्त चढ़ाने का चलन है। विशेषज्ञों का मानना है कि रक्त को एक जीवनरक्षक औषधि के तौर पर देखा जाना चाहिए। अधिकांश मामलों में पूर्ण रक्त चढ़ाने की जरूरत नहीं होती बल्कि रक्त के अवयव (प्लेटलेट, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी) चढ़ाने से ही मरीज ठीक हो जाता है। दुनिया भर में 90 प्रतिशत मामलों में रक्त के अवयवों का प्रयोग होता है जबकि हमारे देश में केवल 15 प्रतिशत मामलों में ही इनका प्रयोग होता है। 85 प्रतिशत मरीजों को पूर्ण रक्त चढ़ा दिया जाता है। इस विसंगति की दूसरी वजह यह भी है कि हमारे देश में ब्लड कंपोनेन्ट सेपरेटर मशीनें बहुत ही कम ब्लड बैंकों में लगी हैं। इसके अलावा कंपोनेन्ट्स को अलग करने में लागत बढ़ जाती है। रक्त की कमी के कारण देश में हर साल 15 लाख मरीज जान से हाथ धो बैठते हैं। इनमें सबसे बड़ी संख्या उन बच्चों की है जिन्हें थेलेसीमिया के कारण जल्दी-जल्दी रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। हादसों के शिकार घायलों, मलेरिया के मरीजों, कुपोषणग्रस्त बच्चों के अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को कई कारणों से रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। संक्रमित रक्त का जोखिम दरअसल हमारे देश में स्वैच्छिक रक्तदान अब भी जीवनशैली का हिस्सा नहीं हो सका है। आज भी ऐसे नवधनाढ्यों की कमी नहीं है जो अस्पतालों के इमरजेंसी रूम्स या ऑपरेशन थिएटरों में पड़े अपने रिश्तेदारों को रक्तदान करने के बजाए मुँहमाँगी कीमत पर खून खरीद लेने की पेशकश करते हैं। ऐसे में पेशेवर रक्तदाता 'रिश्तेदार' बनकर सामने आते हैं। 47 प्रतिशत रक्त की जरूरत इन्हीं लोगों से पूरी होती है। ऐसे 'स्वैच्छिक' रक्तदाता के खून की गुणवत्ता तो निश्चित ही गिरी हुई होती है, साथ ही संक्रमित है या नहीं इसकी भी जाँच नहीं हो पाती। आज देश में हजार में से तीन लोगों को दूषित रक्त चढ़ाने के कारण एचआईवी का संक्रमण होता है। हर रक्तदाता को नियमानुसार पहले तीन महीनों के लिए निगरानी (विंडो पीरियड) में रखा जाना चाहिए। रक्तदाता के खून में एचआईवी का संक्रमण है या नहीं, यह जाँचने के लिए ऐसा करना आवश्यक है। आज जिसने रक्तदान किया हो और परीक्षण में एचआईवी वायरस की रिपोर्ट नेगेटिव आई हो, उसका तीन महीने बाद पुनः परीक्षण होना चाहिए। इसमें संक्रमण नहीं आने पर ही रक्त किसी मरीज को चढ़ाने के योग्य समझा जाता है। हमारे यहाँ ऐसा नहीं हो पाता। यही वजह है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ स्वयंसेवकों को रक्तदान के लिए आगे आना चाहिए। क्या है स्थिति रक्तदान की देश में फिलहाल केवल 500 ब्लड बैंक ही ऐसी हैं जिन्हें बड़ी ब्लड बैंक कहा जा सकता है। यहाँ हर साल 10 हजार यूनिट्स से अधिक रक्त जमा होता है। करीब 600 ऐसी ब्लड बैंकें हैं जो हर साल 600 यूनिट्स ही इकट्ठा कर पाती हैं। शेष 2433 ब्लड बैंक्स ऐसी हैं जो 3 से 5 हजार यूनिट्स हर साल इकट्ठा कर लेती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक देश में एबी प्लस प्लाज्मा, ओ-पॉजिटिव, ओ-नेगेटिव का स्टॉक रहना बहुत जरूरी है। किसी भी आपातस्थिति में (जैसे मुंबईClick here to see more news from this city पर आतंकवादी हमला) जब घायलों को रक्त चढ़ाने के लिए परिजनों की राह नहीं देखी जा सकती हो, उन परिस्थितियों में उपरोक्त रक्त समूह का प्रयोग किया जाता है।देश में लगभग 25 लाख लोग स्वैच्छिक रक्तदान करते हैं। सबसे अधिक ब्लड बैंक महाराष्ट्र (270) में हैं। इसके बाद तमिलनाडु (240) और आंध्रप्रदेश (222) का स्थान आता है। दान में मिला हुआ आधा लीटर रक्त तीन मरीजों की जान बचा सकता है। सबसे दुखद स्थिति उत्तर पूर्व के सात राज्यों की है। सातों राज्यों में कुल मिलाकर 29 अधिकृत ब्लड बैंक्स हैं।
ND
कैसा होना चाहिए रक्त इंडियन फार्माकोपिया के मुताबिक मानव रक्त एक औषधि है। इसके लिए कुछ शर्तें और नियम लागू किए गए हैं। मरीज को चढ़ाने के लिए प्राप्त रक्त को एचआईवी एंटीबॉडीज संक्रमण से मुक्त होना चाहिए। इसे हिपेटाईटिस बी और सी नामक वायरसों के अलावा सिफलिस, मलेरिया आदि से भी मुक्त होना चाहिए। कौन कर सकता रक्तदान कोई भी ऐसा व्यक्ति रक्तदान कर सकता है, जो1. 18-60 वर्ष की उम्र का हो,2. तीन साल से जिसे मलेरिया का संक्रमण न हुआ हो,3. एक साल से पीलिया न हुआ हो,4. उच्च रक्तचाप और डायबिटीज का रोगी न हो। स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ करें नया देश में स्वैच्छिक रक्तदान को प्रोत्साहित करने के लिए अब तक जो कुछ भी किया गया है वह अपर्याप्त साबित हुआ है। दरअसल जितनी बड़ी मात्रा में हमें शुद्ध रक्त चाहिए उसके लिए एक महा-आंदोलन की जरूरत है।
शुक्रवार, 11 जून 2010
बारमेर न्यूज़ track
Cong MLA accused of servant's murder, no case filed
Barmer: A domestic help succumbed to burns in Jodhpur hospital, where he was admitted after Congress MLA from Chohtan, Padmaram Neghwal, allegedly slapped him and he fell into a huge pan which contained steaming tea. The police said that the post-mortem report confirmed death due to shock and burns. However, the MLA has gone "scotfree" as no case has been registered. To make things murkier, the MLA did not even inform the police about the death. According to reports, preparations were on for the marriage of the MLA's daughter. A grand ceremony was organised at Fagalia village in Barmer on June 7. During the ceremony, delay in serving tea annoyed MLA. When domestic help, Nagji Ram (20), brought tea, he was allegedly slapped by Meghwal so hard that fell into the huge vessel which contained the brew. However, Meghwal claimed that when the incident occured (near the kitchen), he was at the entrance to welcome guests. He claimed Nagji suffered an epileptic fit after which he was sent back home. However, after some time he returned to the venue. "I was not even aware of the incident. In fact when I came to know of the incident, I sent Nagji to Chohtan hospital in my car," he said. He also said he was referred to Sanchore government hospital in Jalore but the authorities there referred him to Jodhpur Hospital. While undergoing treatment at the hospital in Jodhpur, Nagji succumbed to his injuries late on Wednesday night. Meghwal said his political rivals spread this rumour to tarnish his image. SP Barmer, Santosh Kumar Chalke, said that victim's sister was present at the spot but she did not confirm the incident. The victim's father confirmed that Nagji suffered from epilepsy and often had attacks. His family members have not complained against the MLA.
Barmer: A domestic help succumbed to burns in Jodhpur hospital, where he was admitted after Congress MLA from Chohtan, Padmaram Neghwal, allegedly slapped him and he fell into a huge pan which contained steaming tea. The police said that the post-mortem report confirmed death due to shock and burns. However, the MLA has gone "scotfree" as no case has been registered. To make things murkier, the MLA did not even inform the police about the death. According to reports, preparations were on for the marriage of the MLA's daughter. A grand ceremony was organised at Fagalia village in Barmer on June 7. During the ceremony, delay in serving tea annoyed MLA. When domestic help, Nagji Ram (20), brought tea, he was allegedly slapped by Meghwal so hard that fell into the huge vessel which contained the brew. However, Meghwal claimed that when the incident occured (near the kitchen), he was at the entrance to welcome guests. He claimed Nagji suffered an epileptic fit after which he was sent back home. However, after some time he returned to the venue. "I was not even aware of the incident. In fact when I came to know of the incident, I sent Nagji to Chohtan hospital in my car," he said. He also said he was referred to Sanchore government hospital in Jalore but the authorities there referred him to Jodhpur Hospital. While undergoing treatment at the hospital in Jodhpur, Nagji succumbed to his injuries late on Wednesday night. Meghwal said his political rivals spread this rumour to tarnish his image. SP Barmer, Santosh Kumar Chalke, said that victim's sister was present at the spot but she did not confirm the incident. The victim's father confirmed that Nagji suffered from epilepsy and often had attacks. His family members have not complained against the MLA.
बारमेर न्यूज़ track
खिल उठा है सौन्दर्य ऎतिहासिक गड़ीसर तालाब कास्वर्णनगरी में रविवार की रात्रि में हुई झमाझम बारिश से ऎतिहासिक गड़ीसर तालाब में पानी की अच्छी आवक हुई है। लंबे समय से सूखे पड़े एवं मछलियां मरने के कारण दुर्गन्धयुक्त वातावरण से यह ऎतिहासिक सरोवर उपेक्षा का दंश झेल रहा था। अच्छी बारिश से तालाब में पानी की आवक हुई है और सरोवर का सौन्दर्य एक बार फिर से खिल उठा है। पानी से भरा होने के कारण स्थानीय लोग यहां घूमने, प्राकृतिक वातावरण का लुत्फ उठाने और पिकनिक व सैर सपाटे के लिए पहुंच रहे हैं। काफी इंतजार के बाद तालाब में पानी की अच्छी आवक होने से यहां फिर से चहल-पहल दिखाई देने लगी है। खिल उठा सौन्दर्यगड़ीसर तालाब पानी की आवक से एक बार फिर आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। बारिश के बाद अब यहां पानी की आवक से पर्यटक यहां कलात्मक छतरियों व सुन्दर घाटों के बीच सुखद अनुभूति महसूस करने लगे हैं। स्थानीय लोग प्राकृतिक वातावरण में घंटों तक बैठे रहते हंै। पानी की आवक होने से यहां नौकायन व्यवसाय को नवजीवन मिलने एवं पर्यटकों का यहां रूझान बढ़ने की उम्मीद जगने लगी है। स्वर्णनगरी में मेहरबान हुए इन्द्रदेव के कारण यहां लंबे समय बाद सौंदर्य का साम्राज्य स्थापित हो गया है। बढ़ा स्वीमिंग का शौकलबालब हुए तालाबों में तैरना सीखने व तैरने के शौकीन लोगों की चहल-पहल यहां काफी देखने को मिल रही है। छोटे बच्चे अपने परिजनों की देखरेख में यहां तैरना सीख रहे हैं, वहीं किशोर व वयस्क घंटो तक पानी में नहाते हैं। पिकनिक व गोठों का दौरस्वर्णनगरी में पिकनिक व गोठों का दौर एक बार फिर शुरू हो गया है। बारिश के बाद से ही यह दौर शुरू हो गया है। तालाब के किनारे बड़ी संख्या में लोग यहां पिकनिक व गोठों के लिए पहुंच रहे हैं।
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