*थार रेगिस्तान की गोद में सहेजी जा रही रजत बूंदें!*

 22 मार्च- 'विश्व जल दिवस' पर विशेष


 *थार रेगिस्तान की गोद में सहेजी जा रही रजत बूंदें!*



 *बाड़मेर, 21 मार्च* । तपती धूप और मीलों तक रेतीले विस्तार के बीच थार रेगिस्तान में पीने के पानी को अनमोल माना जाता है। भारत पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा के नज़दीक बसे बाड़मेर के रोहिड़ी गांव में जीवन अमृत, यानि रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी का इंतजाम करना एक कठिन काम था। अब नवाचारों के चलते मानव और पशुओं को पेयजल सहज उपलब्ध हो रहा है।


वेदांता की नॉन एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रिया अग्रवाल ने दो साल पूर्व बाड़मेर प्रवास के दौरान जब रोहिडी गांव का दौरा किया तो उन्हें ज्ञात हुआ कि यहाँ बसे परिवारों की महिलायें लगभग हर दिन 2 से 4 किलोमीटर पैदल चल कर, सैकड़ो फ़ीट गहरे कुए से पानी खींच कर पेयजल का इंतजाम करती हैं। यह उनके दैनिक जीवन का हिस्सा बन चुका था।


उसके पश्चात जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, राजस्थान सरकार के साथ मिल कर केयर्न ऑयल एंड गैस ने इस स्थिति को बेहतर बनाने का प्रयास किया। जल उपस्थिति की मैपिंग की गई और नई तकनीक के समन्वय से गांव के मुहाने तक पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की गई।


सरकारी एजेंसियों और केयर्न के संयुक्त प्रयासों ने अब ग्रामीणों के साथ-साथ मवेशियों के लिए भी जल सहज रूप से उपलब्ध है। इस अभियान के बाड़मेर जिले में अब तक 16 बोरवेल बनाए जा चुके हैं, जिससे 3,200 से अधिक घरों को जलापूर्ति हो रही है।काउ का खेड़ा, बांदरा, नेहरो का वास, निम्बलकोट और दौलतपुरा जैसे गाँवों में अब स्थायी जल स्रोत उपलब्ध हैं। इससे न केवल महिलाओं का श्रम कम हुआ है, बल्कि पशुओं को भी पर्याप्त जल मिलने लगा है।


केयर्न ने बोरवेल के अलावा 25 खडीनों का निर्माण कर बाड़मेर की पारंपरिक जल संरक्षण प्रणाली को पुनर्जीवित किया है, जिससे भूमि की नमी बनी रहती है और भूजल स्तर में सुधार हो रहा है। इस पहल से किसानों को अधिक उपजाऊ मिट्टी और फसल उगाने के बेहतर अवसर मिलते है।


यह सुखद कदम केवल पानी की उपलब्धता के लिए नहीं, बल्कि ग्रामीणों के जीवट और परंपरागत साधनों और तकनीकी समन्वय की सफलता की कहानी है।


फोटो waterday

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