*राजस्थानी की सर्वप्रथम ग़ज़ल का म्युजिकल कंपोजिशन का होगा कल लोकार्पण*
हैदराबाद,जयपुर, गांधीनगर
राजस्थानी भाषा, संस्कृति, और
संगीत प्रेमीयों के लिए एक खुश खबर । राजस्थानी भाषा का संगीत वैसे तो किसी परिचय का महोताज नहीं । इस के कई कलाकारों संगीतकारों गायकों नें अपनी प्रतिभा का परचम देश विदेश में लहराया है। पर गीत संगीत की इतनी समृद्ध विरासत संजोए हुए भी राजस्थानी संगीत में किसी संगीतकार द्वारा ग़ज़ल के कंपोज़िशन की कमी महसूस की जाती थी। उसी कमी को पूरा किया है हैदराबाद के संगीत निर्देशक रामावतार दायमा साहब ने। आप ने राजस्थानी भाषा में नरपत वैतालिक द्वारा लिखी खुब सूरत ग़ज़ल का स्वरांकन किया है। जयपुर की कोकिलकंठी गायिका शिखा माथुर नें इस ग़ज़ल को अपना सुंदर स्वर दिया है। साथ ही मयंक शर्मा ने इस.में संगीत दिया है। संगीत संयोजन ऋषिकेश सोनी ने किया है। इस गीत का सुंदर विड़ियो फिरोज मीरज़ा ने निर्देशित किया है। *इस ग़ज़ल का उद्भव नरपत आसिया द्वारा हमारे राजस्थानी भाषा के पहले व्हाटसप ग्रुप थार थळी में किया गय था।।थार थळी में अब तक कई नए प्रयोग राजस्थानी साहित्य को लेकर हो चुके है।*
मूल राजस्थान निवासी और हैदराबाद के ग़ज़ल कंपोजर रामावतार दायमा ने बताया कि ग़ज़ल इरान और अरबस्तान की धरती से हजारों साल पहले निकली थी । और आज लगभग हर ज़ुबान बोली में रम सी गई है। हर भाषा में कवियों नें इसे कहा है और संगीतिक स्वरांकन भी होते रहे है।पर अरबस्तान के रेगिस्तान और राजस्थान के रेतीले धोरों में समानता होते हुए भी इस का सांगितीक प्रचलन राजस्थानी भाषा में अब तक नहीं.है।सो कल यह आधिकारिक रूप में youtube पर लोंच होगी। और हमें गौरव है कि हम सब इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी है। कवि नरपत वैतालिक जिन्होंने इसे अपने शब्दों से संजोया है, ने बताया कि वैसे तो कवि सम्मेलनों मंचो पर राजस्थानी कवि राजस्थानी ग़ज़लें.खूब सुनाते है और वाहवाही लूटते है पर इसका अबतक किसी संगीतकार द्वारा स्वरांकन देखने में नहीं आया है। इस लिए इस विरल घटना का राजस्थानी संगीत और भाषा में दुरोगामी सकारात्मक परिणाम आने की आशा है और दुसरे संगीतकार भी राजस्थानी भाषा की मीठास से भरी ग़ज़ल को स्वरांकित करेंगे।और राजस्थानी भाषा की सांस्कृतिक और महान संगीत की धरोहर को संजोने आगे आएँगे।
हैदराबाद,जयपुर, गांधीनगर
राजस्थानी भाषा, संस्कृति, और
संगीत प्रेमीयों के लिए एक खुश खबर । राजस्थानी भाषा का संगीत वैसे तो किसी परिचय का महोताज नहीं । इस के कई कलाकारों संगीतकारों गायकों नें अपनी प्रतिभा का परचम देश विदेश में लहराया है। पर गीत संगीत की इतनी समृद्ध विरासत संजोए हुए भी राजस्थानी संगीत में किसी संगीतकार द्वारा ग़ज़ल के कंपोज़िशन की कमी महसूस की जाती थी। उसी कमी को पूरा किया है हैदराबाद के संगीत निर्देशक रामावतार दायमा साहब ने। आप ने राजस्थानी भाषा में नरपत वैतालिक द्वारा लिखी खुब सूरत ग़ज़ल का स्वरांकन किया है। जयपुर की कोकिलकंठी गायिका शिखा माथुर नें इस ग़ज़ल को अपना सुंदर स्वर दिया है। साथ ही मयंक शर्मा ने इस.में संगीत दिया है। संगीत संयोजन ऋषिकेश सोनी ने किया है। इस गीत का सुंदर विड़ियो फिरोज मीरज़ा ने निर्देशित किया है। *इस ग़ज़ल का उद्भव नरपत आसिया द्वारा हमारे राजस्थानी भाषा के पहले व्हाटसप ग्रुप थार थळी में किया गय था।।थार थळी में अब तक कई नए प्रयोग राजस्थानी साहित्य को लेकर हो चुके है।*
मूल राजस्थान निवासी और हैदराबाद के ग़ज़ल कंपोजर रामावतार दायमा ने बताया कि ग़ज़ल इरान और अरबस्तान की धरती से हजारों साल पहले निकली थी । और आज लगभग हर ज़ुबान बोली में रम सी गई है। हर भाषा में कवियों नें इसे कहा है और संगीतिक स्वरांकन भी होते रहे है।पर अरबस्तान के रेगिस्तान और राजस्थान के रेतीले धोरों में समानता होते हुए भी इस का सांगितीक प्रचलन राजस्थानी भाषा में अब तक नहीं.है।सो कल यह आधिकारिक रूप में youtube पर लोंच होगी। और हमें गौरव है कि हम सब इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी है। कवि नरपत वैतालिक जिन्होंने इसे अपने शब्दों से संजोया है, ने बताया कि वैसे तो कवि सम्मेलनों मंचो पर राजस्थानी कवि राजस्थानी ग़ज़लें.खूब सुनाते है और वाहवाही लूटते है पर इसका अबतक किसी संगीतकार द्वारा स्वरांकन देखने में नहीं आया है। इस लिए इस विरल घटना का राजस्थानी संगीत और भाषा में दुरोगामी सकारात्मक परिणाम आने की आशा है और दुसरे संगीतकार भी राजस्थानी भाषा की मीठास से भरी ग़ज़ल को स्वरांकित करेंगे।और राजस्थानी भाषा की सांस्कृतिक और महान संगीत की धरोहर को संजोने आगे आएँगे।
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