मंगलवार, 11 सितंबर 2018

बाड़मेर *परिवारों में अविश्वास और बिखराव के कारण आत्महत्याएं बढ़ी,जागरूकता के कोई प्रयास नही।*

बाड़मेर *परिवारों में अविश्वास और बिखराव के कारण आत्महत्याएं बढ़ी,जागरूकता के कोई प्रयास नही।*

*बाड़मेर न्यूज़ ट्रैक के लिए*

बाड़मेर सरहदी जिला बाड़मेर भारत मे आत्महत्या की दर के हिसाब से तो पता नही पर राजस्थान में अव्वल है।प्रत्येक दिन औसतन एक आत्महत्या होती है। आत्महत्या का ट्रेंड बाड़मेर में नया नही है। कई दशकों से आत्महत्याओं के मामले सामने आते रहे मगर गत तीन सालों में सामूहिक आत्महत्याओं के चोंकाने वाले मामले सामने आए।।ऐसे ऐसे मामले सामने आए की लोग सुनकर कर सिहर जाते है। विवाहित चार बच्चों के साथ टांके में कूदी, विवाहिता तीन बेटियों के साथ कुएं में कूदी, महिला ने आत्महत्या की,पुरुष ने पत्नी ,बच्चो की हत्या के बाद आत्महत्या की,प्रेमी युगल खेजड़ी पर फंदे से झूले अमूम्मं ये खबरे आती रहती है।कल की ही घटना है गिड़ा में विवाहिता तीन बच्चों के साथ आत्महत्या कर गई।
बड़ा गंभीर मामला है।।कई बार कारण खोजने के प्रयास किये।।लोगों में जागरूकता का अभाव है। जीवन शैली में बदलाव सबसे बड़ा कारण है। आत्महत्याओं के मामलों में मुख्य कारण जो सामने आए वो ये की इस रेगिस्तानी इलाके में ढाणी कल्चर है।।दूर दूर तक एकांत में फ़ैली ढाणियां, महिलाओ में घरेलू शोषण जो लोक लिहाज से बाहर नही आ पाता,बेमेल विवाह,बेरोजगारी,विवाहेतर संबंध,पतियों का घर से बाहर मजदूरी करने जाना जैसे कई मुद्दे सामने आए। सबसे बड़ा मुद्दा परिवारों में बिखराव और संयुक्त परिवारों के प्रति मोहभंग ।।आपसी संवाद में कमी।।साथ ही पारिवारिक सदस्यों में आपस मे अविश्वास की भावना भी कहीं न कहीं आत्महत्या के कारण बनते है। बाड़मेर के गिड़ा,गुड़ा ,धोरीमन्ना,चोहटन, सेड़वा,आत्महत्याओं के हब बन गए है।इन इलाकों में ही सबसे ज्यादा छोटी उम्र में शादियों का प्रचलन है।।बेरोजगारी के कारण जरूरतें पूरी नही होना।जिसके चलते घरों में अक्सर विवाद होते है।।आजकल विवाहिताओं की रोजमर्रा की जरूरतें समय के हिसाब से बढ़ी है उन जरूरतों का पूरा न होना भी एक कारण है। एक चोंकाने वाला मुद्दा भी सामने आया कि जिन महिलाओं के पति अन्य स्थानों पर रोजगार के लिए जाते है वो महिलाए घर मे ही शारीरिक शोषण की शिकार होती है। लोक लिहाज से आत्महत्या जैसे कदम उठा लेती है।

बाड़मेर में आत्महत्याओं के पुलिस में दर्ज प्रतिवर्ष आंकड़े करीब 175 से अधिक औसत होते है जबकि 2000 तक ये आंकड़े अधिकारिय पोन तीन सौ के करीब थे।कई मामले पुलिस तक नही पहुंच पाते। चार सौ से अधिक लोग आत्महत्या करते है फिर भी जिले में यह कभी कोई बड़ा इश्यू नही बना। स्थानीय लोगो के लिए यह कोई नई बात नही।मगर बाहरी जिलो में बाड़मेर की इस दशा और लोग चिंतित है।।शहरी क्षेत्र में आजकल ट्रेन के आगे आकर कट कर आत्महत्या के मामले भी बढ़े है। बुद्धिजीवी और स्वयं सेवी संस्थाए चुपी साधे है। आखिर इन मुद्दों और कोई क्यों नही बोलता।।

*टांके,खेजड़ी और रेल आत्महत्याओं के पर्याय बन गए।।महिलाए अधिकतर आत्महत्या के लिए टाँका चुनती है तो पुरुष खेजड़ी का पेड़। शहरी क्षेत्र में रेल को आत्महत्या का जरिया बना दिया।।बाड़मेर शहर में अस्तमहत्या पॉइंट को चिन्हित कर सुरक्षा प्रहरी लगा कर इस पे अंकुश लगाया जा सकता है ।


बाड़मेर में आत्महत्याओं को रोकने के लिए भी जिला प्रशासन या पुलिस प्रशासन द्वारा जागरूकता के कोई प्रयास आज तक नही हुए।।लोगो के बीच जाकर आत्महत्याओं के प्रति जागरूक करने की महती आवश्यकता है। जब भी कोई आत्महत्या का बड़ा मामला सामने आता है पुलिस प्रशासन रटा रटाया जवाब देते है कि दो महिला सिपाही हेल्प डेस्क पे है शुरू कर दी।।पुलिस त जिला प्रशासन को काउंसलिंग सेंटर खोलना चाहिए पंचायत समिति स्तर पर पर।जो इन मुद्दों से महिलाए जूझ रही है उन्हें राहत मिल सके।प्रेम प्रसंग के मामलों में भी वृद्धि इन दो सालों में हुई है।।

दिल्ली के सामूहिक आत्महत्या के मामले में पूरे देश मे बहस छिड़ गई जबकि बाड़मेर में सामूहिक आत्महत्याओं की बहस तो दूर कोई चर्चा ही नही करता।रूटीन जैसा अपराध हो गया।।

*आइए आप हम मिलकर इस सामाजिक अपराध को रोकने का प्रण ले*

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