तीखी बात
क्या राजस्थान की चिकित्सा व्यवस्था हांफने लगी है ?
एसएमएस जयपुर में रेजीडेण्ट डॉक्टरों एवं नर्सों के बीच मार-पीट के समाचारों की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि जोधपुर के उम्मेद चिकित्सालय में डॉक्टरों के बीच हुई तू-तू मैं-मैं और नवजात शिशु की मौत का वीडियो पूरे देश के सोशियल, इलैक्ट्रोनिक और प्रिण्ट मीडिया में सुर्खियां बटोरने लगा। अभी इस वीडियो पर सोशियल मीडिया में थू-थू करने का सिलसिला चल ही रहा था कि महात्मा गांधी हॉस्पीटल जोधपुर में बाड़मेर हाईवे से जले हुए लोगों को लाने वाले परिजनों ने हॉस्पीटल के रेजीडेण्ट चिकित्सकों एवं स्टाफ के साथ-मार पीट कर ली और तीन जनों को पुलिस पकड़ कर ले गई। ऐसी सैंकड़ों घटनाएं है जो पिछले कुछ सालों में घटित हुई हैं। साफ अनुभव किया जा सकता है कि रेजीडेण्ट डॉक्टरों के व्यवहार में अचानक तल्खी और चिड़चिड़ाहट में वृद्धि हुई है।
रेजीडेण्ट डॉक्टर्स द्वारा मरीजों एवं उनके परिजनों के साथ किए जा रहे खराब व्यवहार का मनोविज्ञन समझ में आना कोई मुश्किल बात नहीं है। चौबीस-चौबीस घण्टे की ड्यूटी, मरीजों और उनके परिजनों द्वारा रेजीडेण्ट डॉक्टर्स से किए जाने वाले दिन-रात के सवाल, वार्डों में भर्ती मरीजों की फाइलों में लम्बी-लम्बी नोटिंग्स, सीनियर डॉक्टर्स की बेगार, नर्सिंग स्टाफ की बदतमीजियां और भी बहुत कुछ सहना पड़ता है रेजीडेण्ट डॉक्टर्स को। स्वाभाविक है कि उनके स्वभाव में चिड़चिड़ाहट एवं खीझ उत्पन्न हो जाए। रेजीडेण्ट डॉक्टर्स के दिमाग में बन चुकी यह एक ऐसी तंग सुरंग है जिसका अंधेरा मिटने का नाम नहीं ले रहा।
जब से राजस्थान सरकार ने निःशुल्क दवा योजना आरम्भ की, जब से जननी सुरक्षा योजना आरम्भ हुई तथा जब से मुख्यमंत्री निःशुल्क जांच योजना आरम्भ हुई, राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में रोगियों की बाढ़ सी आ गई है। विगत चार सालों में ओपीडी तीन से चार गुना तक बढ़ गई है जबकि डॉक्टरों की संख्या वही की वही है। वार्ड तो पहले भी ठसाठस भरे रहते थे, आज भी हैं। आज राज्य के सीमांत गांव में बैठे व्यक्ति की भी यह कोशिश होती है कि वह जयपुर के एसएमएस हॉस्पिीटल या संभाग मुख्यालय के मेडिकल कॉलेज से संलग्न हॉस्पीटल में पहुंचे। साधारण डिलीवरी के मामले जो कि गांव की एएनएम से लेकर ग्राम पंचायत की पीएचसी, पंचायत समिति की सीएचसी या जिले के जिला अस्पताल में निबटाए जा सकते हैं, उसके लिए भी लोग गर्भवती को लेकर संभाग मुख्यालय के चिकित्सालयों में भागते हैं। मरीजों और प्रसूताओं की इस भीड़ को पीएचसी, सीएचसी अथवा जिला अस्पताल में रोकने के लिए सरकार के पास कोई कार्यक्रम नहीं है।
निःशुल्क दवा योजना की हालत यह है कि निःशुल्क दवा केन्द्रों पर बहुत सी दवाएं उपलब्ध ही नहीं होतीं। जोधपुर में सहकारी बाजार में जो करोड़ों रुपए का घोटाला हुआ, उसके रैकेट का आज तक खुलासा नहीं हुआ। केवल महाप्रबंधक मधूसूदन शर्मा को जेल भेजा गया, उसी के समाचार जनता के पास हैं। इस घोटाले में और कौन लोग लिप्त थे, किसी को कुछ पता नहीं लगा। इस घोटाले को खुले लगभग छः माह का समय हो गया है किंतु आज तक जोधपुर के निःशुल्क दवा केन्द्रों एवं पेंशनर काउंटरों पर पर्याप्त दवाएं उपलब्ध नहीं हैं।
कुल मिलाकर पूरे राज्य का दृश्य ये है कि सरकारी चिकित्सा व्यवस्था हांफती हुई दिखाई दे रही है तथा सरकार की ओर से इस दिशा में कोई कार्यवाही होती हुई दिखाई नहीं दे रही है।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
www.rajasthanhistory.com
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