तीखी बात/बुरा न मानो होली है!अखिल भारतीय गर्दभ संघ का भारतीय नेताओं के नाम खुला ज्ञापन
गर्दभ जाति का ये अपमान ! नहीं सहेगा हिन्दुस्तान !!
सारे देश के गधे गुस्से से तमतमाये हुए हैं। यूपी के चुनावी संग्राम में जिस प्रकार गुजरात के गधों की असम्मानपूर्ण चर्चा की गई है यह पूरी वैशाखनंदन जाति का घनघोर अपमान है। जातीय अपमान के इस मुद्दे पर सम्पूर्ण गर्दभ जाति एक है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक के गधे उद्वेलित हैं, विचलित हैं, अपमानित हैं। सौराष्ट्र से लेकर असम तक के गधे एक स्वर में अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं और प्रतिशोध लेने को आतुर हैं।
यदि किसी नेता को यह गुमान हो कि गुजरात के गधों का अपमान करके वह किसी अन्य राज्य के गधों से अपने सम्बन्ध अच्छे बनाये रख सकेगा तो हम उसकी यह गलतफहमी शीघ्र ही दूर कर देंगे। हम राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलायेंगे और शीघ्र ही संसद का घेराव करेंगे। धोबी के गधे, कुम्हार के गधे, पहाड़ी खच्चर, मैदानी टट्टू और यहाँ तक कि हमारे ही बड़े भाई अर्थात् घोड़े भी हमारे साथ आने को तैयार हैं।
जब गिर के शेरों की चर्चा होती है तो नेताओं के पेट में दर्द नहीं होता। जब रणथंभौर के बाघों की चर्चा होती है तो भी किसी के पेट में मरोड़ नहीं उठते। जब काजीरंगा के हाथियों के फोटो छपते हैं तब भी किसी नेता की आंख में सूअर का बाल नहीं उगता। कौन बनेगा करोड़पति में अपने एक-एक सवाल से लोगों को लखपति और खुद को दो हजार करोड़ का मालिक बनाने वाले अमिताभ बच्चन ने हमारा विज्ञापन क्या कर दिया, नेताओं के सीने में जलन हो गई। अब इन तोता-चश्म नेताओं की आंखों में तूफान न ला दिया तो हमें गधा मत कहना!
जिन जंगली जानवरों का नाम लेकर तुम नेता लोग अपने आप को गौरव भरी निगाहों से देखते हो, उन्हें तो तुम पिंजरे में बंद करके दूर से देखते हो और हम जो पूरी निष्ठा से पीढ़ी दर पीढ़ी तुम्हारे गांवों और शहरों में खुले घूमकर मानव जाति की सेवा कर रहे हैं उन पर तुम फिकरे कसते हो !
होली के पावन पर्व पर हम भारत के सभी गधे एक स्वर से मांग करते हैं कि वे सारे नेता हमसे माफी मांगें जिन्होंने हम पर व्यंग्य कसकर चुनावी वैतरणी पार करने की सोची है। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे तो वे कभी भी इस वैतरणी को पार नहीं कर सकेंगे। हम इन्हें बीच मंझधार डुबो देंगे। यदि विश्वास नहीं हो तो ग्यारह मार्च का टीवी देख लेना।
हमारा दावा है और हम छाती ठोक कर कहते हैं कि हम गधों की जमात, तुम नेताओं की जमात से कहीं अधिक श्रेष्ठ, अधिक पवित्र, अधिक राष्ट्रभक्त और सांस्कृतिक मर्यादाओं का अधिक सम्मान करने वाली है।
अखिल भारतीय गर्दभ संघ का ये दावा है कि भारत के तमाम नेताओं ने देश की जितनी सेवा की है, उससे कई लाख गुना सेवा हम कर चुके हैं और इस मुद्दे पर हम, नेताओं से खुली बहस करने को तैयार हैं। देश सेवा के माामले में नेता तो क्या, सम्पूर्ण मानव जाति भी हमारे सामने कहीं टिकी नहीं रह सकती। मैली हो चुकी नेताओं की सफेद खद्दर, तभी उजली दिखाई देती है जब हम उसे अपनी पीठ पर लादकर तालाब तक ले जाते हैं। नेताओं के घरों में मटके का शुद्ध जल भी तभी नसीब होता है जब हम जंगल से मिट्टी खोदकर कुम्हार के घर तक पहुंचाते हैं।
जब कभी भारत ने पाकिस्तान या चीन से युद्ध किया, टैंकों से पहले हम युद्ध सामग्री लेकर सीमा की तरफ रवाना होते हैं। जब नेता युद्ध से डरकर अपने घरों में दुबक जाते हैं तब हम और हमारे भाईबंद अपनी पीठ पर बारूद लादकर पहाड़ों पर चढ़ते हैं। अरे हम तो वो हैं जिन्हें लंकाधिपति रावण ने अपने सिर का मुकुट बनाया तब भी हम घमण्ड से नहीं भरे। सोने की लंका में रहकर भी हम दिल और दिमाग से इतने शीतल बने रहे कि शीतला माता हम पर सवारी करके गौरवान्वित होती हैं। हम 1823 एडी से अमरीका की डैमोक्रेटिक पार्टी का सिम्बल बने हुए हैं। प्रेमचंद ने हम पर कलम चलाई, तब कहीं जाकर वे उपन्यास सम्राट कहलाये। किसी नेता के पास ऐसी शानदार उपलब्धियां हों तो खुले मंच पर आकर हमसे बहस करे।
हमने कभी नोटबंदी का विरोध नहीं किया, कभी आरक्षण की मांग नहीं की, कभी संसद का घेराव नहीं किया। कभी अल्पसंख्यक वर्ग का दर्जा नहीं मांगा। कभी संसद और विधानसभा में जाकर कर एक दूसरे को लातों से नहीं मारा। कभी अपने कम योग्य पुत्रों के लिये किसी धोबी या कुम्हार के यहाँ नौकरी की अर्जी नहीं लगाई। हमने कभी कालाधन इकट्ठा नहीं किया न कभी विदेशी बैंकों में पैसा छिपाया। हमने कभी धर्म, जाति, सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा के नाम पर भाई को भाई से नहीं लड़ाया। हमने ऐसा कभी कुछ नहीं किया जो भारत के नेता लोग आये दिन करते हैं।
इतना सब काला-पीला होने पर भी हमने आंख मूंदकर नेताओं पर विश्वास किया और कोयले की खानों से कोयला ढोते रहे लेकिन नेताओं ने कोयले की दलाली करके अपनी खादी पर कालिख पोत ली। किसी गधे ने कभी भी ऐसा किया हो तो बता दो। अरे ये नेता तो गायों का चारा भी खा गये। क्या कभी किसी गधे ने गायों का चारा खाया, यदि खाया हो तो बता दो, हम अपना आंदोलन वापस ले लेंगे।
काले धंधे करने वाले नेता बुद्धिमान कहलायें और मेहनत-मजदूरी करने वाले गधे व्यंग्य बाण सहें!! नहीं-नहीं, ई ना चोलबे! बहुत सह लिया, अब नहीं सहेंगे। गर्दभ जाति का ये अपमान, नहीं सहेगा हिन्दुस्तान। जो हमसे टकरायेगा, दो दुलत्ती खायेगा। अब भी नेताओं के पास समय है, सुधर जायें, हमसे माफी मांगें। मुकुट पहनने के जमाने तो गये लेकिन नेता लोग अपने कुर्ते पर हमारे चित्र सजायें। वरना, हम क्या कर सकते हैं, यह हम करके ही बतायेंगे। हम नेताओं की तरह कारनामे करने में विश्वास नहीं करते। काम करने में विश्वास करते हैं। हम हॉवर्ड से पढ़े हुए नहीं हैं किंतु हार्डवर्क करते हैं।
-डॉ. मोहनलाल गुप्ता
63, सरदार क्लब योजना, वायुसेना क्षेत्र, जोधपुर
www.rajasthanhistory.com
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