इस लड़की ने बताई 35 लोगों की हत्या की कहानी, हर घर में है एक विधवा
पटना. बिहार का एक गांव ऐसा है जहां अमूमन हर घर में एक विधवायें रहती है। यह गांव है बिहार के अरवल जिला का सेनारी। सेनारी में एक दो नहीं बल्की 35 महिलायें एक साथ एक दिन विधवा हो गई थी।कैसे हुई थी एक साथ 35 महिला विधवा...
17 साल पहले हुए जातीय नरसंहार में इस गांव के 35 पुरुषों की हत्या कर दी गई थी। 40 घर के इस टोला में तब हर घर में सिर्फ विधवा ही रह गई थी। गांव के हर आदमी को हत्यारों ने मार दिया था। 17 साल बाद गुरुवार को सेनारी नरसंहार पर कोर्ट का फैसला आया।
कोर्ट ने 35 लोगों के नरसंहार के 38 आरोपी में 15 को दोषी मानते हुए उन्हें सजा सुनायी, जबकि 23 लोगों को निर्दोश करार देते हुए रिहा कर दिया था। इस नरसंहार में कई ऐसे कई परिवार थे जहां एक साथ चार पांच लाशें निकली थी। ऐसा ही एक परिवार था रिम्मी शर्मा का। जहां एक साथ 6 लोगों की एक साथ लाशें निकली थी।
नरसंहार की कहानी और रिम्मी शर्मा की जुबानी
रिम्मी शर्मा कहती है ये बात 18 मार्च 1999 का है। तब मैं काफी छोटी थी। बोर्ड के एग्जाम के कारण मैं अपने गांव नहीं जा सकी थी। पिताजी के साथ (झारखंड) रामगढ़ में ही थी। मुझे ठीक से याद है तब सुबह सात बजे डीडी न्यूज पर समाचार आया करता था। पिताजी इसे अवश्य सुना करते थे। हर दिन की तरह उस दिन भी टीवी चल रहा था। लेकिन संयोगवश आज टीवी के पास सिर्फ मैं ही थी। न्यूज की हेडलाइन देख मैं दंग रह गई। मैंने पिताजी आवाज लगाई।
घटना पर नहीं हो रहा था विश्वास
न्यूज की हेड लाइन था। सेनारी में नरसंहार। जातीय संघर्ष में 35 लोगों की हत्या। इस सूचना पर किसी को विश्वास नहीं हो रहा था। हम सभी भागकर पड़ोस में रहने वाले रहमान अंकल के घर पहुंच गए। इनके यहां डीस्क थी। रहमान अंकल ने हमारी बेचैनी देख टीवी खोल दिया। हर न्यूज चैनल पर बस यही खबर चल रही थी। जहानाबाद के सेनारी में जातीय संघर्ष में 35 लोगों का नरसंहार। अब तक जो भम्र था वो रहमान अंकल की टीवी ने दूर कर दिया था।
हर ओर लाशें हर घर में विधवा
सेनारी के हर घर में लाशें विखरी थी। हत्यारों ने घर के केवल मर्दो को ही अपना निशाना बनाया था। महिलाओं को उन्होंने छुआ तक नहीं था। गांव की महिलाओं ने अपने सामने अपना सुहाग उजड़ता देखा था। वो अपनी सुहाग के लिए हत्यारों के सामने हड़ी मिन्नतें भी की। लेकिन वे इनकी एक नहीं सुने। विरोध करने पर वे कहते थे कि तुमको मार देंगे तो इनकी लाशों पर कौन रोयेगा। तुमको इनके लाशों पर रोने के लिए छोड़ दिया हूं। तुम जितना रोयेगी हमें उतना ही आनंद आयेगा।
25 वर्षो में 400 लोगों की हुई हत्या
1980 के फरवरी महीने में जहानाबाद के पिछड़े तथा दलित बहुल परसबिगहा गांव को चारो ओर से घेरकर आग लगाने और उसके बाद बाहर घर से बाहर निकलने वाले बीस लोगों को गोलियों से भूनने के बाद जहानाबाद में जातीय और उग्रवादी हिंसा की जो चिंगारी से निकली, आग की लपटें तकरीबन अगले डेढ़ दशक तक पूरे इलाके के सामाजिक शांति को राख करती रही। 1980 के दशक से शुरू हुए नरसंहारों के दौर से 2005 में नीतीश सरकार के अभ्युदय के बीच जहानाबाद तथा अरवल में नक्सली जातीय वर्चस्व को ले हुए खूनी संघर्ष में छोटी-बड़ी तकरीबन चार दर्जन नरसंहार की वारदातें हुईं, जिनमें तकरीबन साढ़े तीन सौ बेगुनाह लोगों के खून से दोनों जिलों की धरती लाल होती रही। पड़ोस के गया जिले में भी मियांपुर में पैंतीस और बारा में 36 लोगों का कत्लेआम किया गया था। इससे जिले के समग्र आर्थिक सेहत पर भी गंभीर असर हुआ। जहानाबाद तथा अरवल जिलों की खेती का इन संघर्षों का प्रतिकूल असर पड़ा।
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