भीलवाड़ा यहां औरतें मर्दों के जूतों से पानी पीने को मजबूर, क्या ऐसा देश है मेरा?
इस इंटरनेट की क्रान्ति से दूर, दक्षिणी राजस्थान के भीलवाड़ा में आज भी पिछड़ापन पसरा हुआ है. वहां कोई महिला-सशक्तिकरण की बात नहीं करता, Feminism के Hashtag लगा कर लोग कुछ लिखते नहीं दिखाई देते. विकास की आंधी वहां अभी पत्ते भी नहीं हिला पायी है.
एक जगह है, जहां आस-पास के गांवों से कई सौ औरतों को हर हफ़्ते लाया जाता है, एक मंदिर में .भूत-बाधा दूर करने के जो तरीके इन औरतों पर आज़माए जाते हैं, वो अमानवीयता की मिसाल बन सकते हैं.
ऐसी प्रतिगामी परम्पराएं आज भी यहां चली आ रही हैं, जो तर्कसंगतता की धज्जियां उड़ा दें.अंधविश्वास पर आधारित इन सभी परम्पराओं में एक चीज़ समान है, ये दम घोंट रही हैं उस औरत का, जो आज भी पितृसत्ता की बेड़ियों में जकड़ी हुई है. उसे अपने विमुक्त होने की शायद उम्मीद भी नहीं है.
झाड़-फूंक करने वाले मंदिर के पुजारी इन औरतों के भूत उतारने के लिए क्रूरता की कोई भी हद पार करने से नहीं चूकते.
औरतों को सिर पर जूते रख कर कई किलोमीटर तक चलते देखा जाना, यहां आम बात है. हर तरह की गंदगी से सने जूते, जिन्हें छूने की भी आप कल्पना नहीं करना चाहेंगे, ये औरतें उन्हें अपने मुंह में दबाकर लाती हैं और इन जूतों में भर कर पानी पीती हैं.
भूत-बाधा जितनी बड़ी हो, इनको दी जाने वाली यातना भी उतनी ही कड़ी होती है. इन्हें 200 सीढ़ियों पर घसीटा जाता है. ये सब कुछ किया जाता है, बस इनका भूत उतारने के लिए.
वो बताते हैं कि औरतों के साथ ऐसी बर्बरता देखना और उन्हें आस्था के नाम पर इन परम्पराओं को मानने पर मजबूर होते देखना रोंगटे खड़े कर देता है. 21 साल पहले जो उन्होंने देखा वो तो हृदयविदारक था ही, पर उससे ज़्यादा दुःख उन्हें ये देता है कि ये परम्पराएं आज भी उस इलाके में जारी हैं. आज भी औरतें जूतों से पानी पी रही हैं.
साभार। https://votergiri.com
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