शुक्रवार, 30 सितंबर 2016

शहद निर्यातकों के समर्थन के साथ हजारों मध्ुमक्खी पालकों ने जी.एम. सरसांें के विरू( जंतर-मंतर पर विरोध् प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि जी.एम. सरसों का उजागर सही चेहरा उजागर हो गया है।



 
शहद निर्यातकों के समर्थन के साथ हजारों मध्ुमक्खी पालकों ने जी.एम. सरसांें के विरू( जंतर-मंतर पर विरोध् प्रदर्शन किया। उन्होंने कहा कि जी.एम. सरसों का उजागर सही चेहरा उजागर हो गया है।



 
नई दिल्ली 28 सितम्बर 2016: शहद निर्यातकों के साथ हज़ारो मध्ुमक्खी पालकों और किसानों ने जंतर-मतंर नई दिल्ली पर भारत में जी.एम. सरसों की व्यवसायिक खेती के अनुमोदन के विरू( प्रदर्शन किया। उन्होंने जी.ई.ए.सी ;जेनेटिक इंजीनियरिग एपरेजल कमेटीद्ध की टेक्नीकल सब कमेटी के द्वारा किए गए सुरक्षा अनुमोदन पर प्रश्न किया और बताया कि नियामक प्रक्रिया में न तो विभिन्न संबंध्ति पक्षों को सुना गया और न ही निर्धरित वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनाई गई। यहां तक कि सीध्े प्रभावित पक्षों को भी नहीं सुना गया। कार्यक्रम के आरम्भ में शहीद भगत सिंह को याद किया और उनको शत शत नमन अर्पित किया गया।
वर्ष 2002 में बहुराष्ट्रीय कम्पनी की सहयोगी कम्पनी ‘‘प्रो एग्रो’’ की जी.एम. सरसों को जी.ई.ए.सी के द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया था। उसके बाद उसी सरसों को दिल्ली विश्वविद्यालय के सेन्टर पफाॅर जैनेटिक मैनिपुलेशन आॅपफ क्राॅप प्लान्टस ;सी.जी.एम.सी.पी.द्ध का भारतीय चेहरा दे दिया गया है। कहा जा रहा है कि जी.एम. हाईब्रिड ‘‘डीएमएच-11श् ;धरा मस्टर्ड हाईब्रिड-11द्ध डाॅ0 दीपक पेन्टल के निर्देशन में दिल्ली विश्वविद्यालय के सी.जी.एम.सी.पी के द्वारा विकसित की गई है। जबकि आई.पी.आर के ऊपर कोई सूचना उपलब्ध् नहीं है। जी.एम सरसों के प्रस्तुतकर्ता का कहना है कि वातावरण और परागणकर्ताओं के ऊपर इस धरा हाईब्रिड सरसों को कोई कुप्रभाव नहीं पड़ेगा और यह भारतीय दशाओं के अनुकूल है। यह स्पष्ट हो चुका है कि वांछित परीक्षण प्रक्रियाओं का नितांत उल्लंघन हुआ है और जी.ई.ए.सी के स्तर पर अपने ही निर्णयों को बदला गया है। उन्होंने बल देकर कहा कि जी.एम सरसों के सुरक्षा मानको के आंकलन और तत् सम्बन्ध्ी जानकारी के सम्बन्ध् में बिल्कुल भी पारदर्शिता नहीं अपनाई गई।
26 सितम्बर 2016 को भारतीय मध्ुमक्खीपालकों एवं किसानों की संस्था, काॅन्पेफडरेशन आॅपफ बीकीपिंग इण्डस्ट्री की विज्ञाप्ति के तुरंत बाद साऊथ एशिया बायोटेक्नोलाॅजी सेन्टर की ओर से एक प्रैस विवरण, एक तरह से तत्काल प्रतिक्रिया के रूप में आया। इस प्रैस रिपोर्ट में भारतीय मध्ुमक्खीपालकों के इस प्रयास को गलत एवं दुष्प्रेरित बताते हुए अनेक जूठे तथ्यों का विवरण दिया गया। इससे यह निश्चित रूप से स्पष्ट हो गया कि इस जी.एम. सरसों को प्रस्तुत करने वाले दिल्ली विश्वविद्यालय के सी.जी.एम.सी.पी. के भारतीय चेहरे के पीछे सही ताकत विश्व के भारी भरकप बहुर्राष्ट्रीय वायोटेक कम्पनियाँ है।
इस अवसर पर कान्पफेडरेशन के प्रवकताओं ने इस तथ्य पर बल दिया कि जी.एम. सरसों का यह प्रस्ताव बहुर्राष्ट्रीय कम्पनियों, मोनसेन्टो और बेयर का है जो अब एक हो गई हैं। वास्तव में इनकी नज़र भारत की विशाल कृषि व्यवस्था पर है जो उनके लिए बहुत बड़ा बाजार है और इसके माध्यम से भारतीय किसान को अपना बंध्ुआ बनाने का साजिश रच रहे हैं। कमाई का यह तरीका उनके लिए बहुत मीठा है, सरकार तथा पब्लिक को भी ;उत्पादक वृ(ि का लालचद्ध आकर्षक लग रहा है। परन्तु यह भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था, भारतीय किसान की निवेश लागत व्यय बढ़ाने और मध्ुमक्खी पालन जैसे कृषि आधरित ग्रामीण व्यवसाय के विरू( तथा मध्ुमक्खी जैसे उपयोगी प्राणी के विरू( बहुत ही कड़वा और धतक हथियार है।
जी.एम सरसों के सम्बन्ध् में बेचैनी के कारण निम्नलिखि हैं:-
1. पंजाब तथा अन्य कपास के क्षेत्रों में 15 वर्ष पहले आरम्भ की गई बी.टी. कपास की खेती के कड़वे सच सामने आ गए हैं। इस पफसल में कीड़ों का पुनः प्रकोप होने लगा है और किसान को अध्कि कीटनाशक प्रयोग करने की आवश्कता पड़ने लगी है। बी.टी. कपास की पफसल मध्ुमक्ख्यिों के लिए अनाकर्षक हो गई है और सम्बन्ध्ति क्षेत्रों में मध्ुमक्खियांे का घनत्व कम हो रहा है। देश में कोई भी जी.एम. पफसल लाने से पहले बी.टी कपास और उसके दुष्प्रभावों का सही आंकलन किया जाये।
2. उपलब्ध् सूचना के अनुसार जैविक सुरक्षा तथा जौखिम बिन्दुओं का सही वैज्ञानिक प(तियों से आंकलन नहीं किया गया है। प्रजाति के विकासकर्ताओं ने अपनी सुविध के अनुसार प्रक्रिया निर्धरित करके एक औपचारिक आंकलन रिपोर्ट बना दी है। इस सम्बन्ध् में परीक्षण बहुत गहराई से किए जाने की आवश्यकता है और रिपोर्ट को ‘पब्लिक डोमेन’ पर सबकी जानकारी के लिए उपलब्ध् किया जाना चाहिए। इस जी.एम. सरसों के सम्बन्ध् में खरपतवार नाशक सहनशीलता से सम्बन्ध्ति परीक्षण भी नहीं किए गए हैं।
3. जब हमारे पास सरसों एवं तिलहनी पफसलों की पैदावर 30 से 40 प्रतिशत तक बढ़ाने के सुरक्षित तरीके उपलब्ध् हैं तो जी.एम. सरसों की क्या आवश्यकता है। सामान्य शंकर जातियाँ पैदावार वृ(ि के लिए उपलब्ध् हैं। मध्ुमक्खियों का उपयोग परपरागण के लिए करके उपज बढ़ाई जा सकती है। सरसों की पफसल मध्ुमक्खियों के लिए बहुत आकर्षक है और 25 से 40 प्रतिशत तक उपज वृ(ि के प्रमाण उपलब्ध् है। इन बिन्दुओं पर गहनता से अध्ययन एवं बिचार होने की आवश्यकता है।
हमारी मांग है कि सभी बिन्दुओं पर गहन आंकलन हो, आंकलन रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन पर सबकी जानकरी पर रखा जाये और कम से कम 120 दिन का समय देकर सभी पक्षों को अध्यन एवं अपना पक्ष रखने के लिए अवसर दिया जाये।
कार्यक्रम के अंत में विसर्जन से पूर्व उड़ी के शहीद जवानों को श्र(ांजलि दी गई और एक मिनट का सामुहिक मौन रख गया।

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