सोमवार, 18 जुलाई 2016

बीकानेर बीकानेर में अश्व की तीन नस्लों का संवद्र्धन



बीकानेर  बीकानेर में अश्व की तीन नस्लों का संवद्र्धन
बीकानेर में अश्व की तीन नस्लों का संवद्र्धन

बीकानेर में अश्व अनुसंधान केन्द्र में घोड़ों की मुख्यत: तीन नस्लों के संवद्र्धन का कार्य चल रहा है। यह उप केन्द्र राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र हिसार के अधीन 89 में शुरू किया गया।

इसमें अभी विभिन्न नस्लों के 93 घोड़ों पर काम चल रहा है। मुख्यत: मारवाड़ी घोड़ों (राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, हरियाणवी, यूपी) के नस्ल संवद्र्धन के अलावा जान्सकारी एवं मणिपुर नस्लों पर काम हो रहा है।
देश में भार परिवहन करने वाले बाकी पशुओं की संख्या में लगातार गिरावट के बावजूद 2012 की तुलना में घोड़ों की संख्या मं 2.08 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
2012 की पशु गणना में घोड़ों की संख्या 6 लाख 20 हजार है।

अश्व अनुसंधान केन्द्र बीकानेर में घोड़ों के नस्ल संवद्र्धन में कृत्रिम गर्भाधान, बीमारियों की रोकथाम और घोड़ों के बछड़ों का रख-रखाव किया जाता है।


घोड़े देश में रेस, सेना एवं पुलिस में काम आने के अलावा पहाड़ी क्षेत्र में सामान ढोने, मैदानी क्षेत्र में घोड़ा गाड़ी में काम आते हैंं।
पर्यटन और परम्परागत रूप से शौक से घोड़े पाले जाते हैं। आज भी गांवों -कस्बों में घोड़ा रखना स्टेट्स सिब्बल है।

घोड़े के प्रति रुझान

हॉर्स राइडिंग, हार्स रेस जैसे खेलों में घोड़ों का उपयोग होता है। परम्परागत रूप से घोड़ों की सवारी भी पर्यटन विकास के साथ पहाड़ी क्षेत्र में बढ़ी है। शादी-विवाह में भी इनकी उपयोगिता है। वहीं, पर्यटन में भी इनकी उपयोगिता बढ़ाई जा सकती है।

डॉ. आरए लेघा, प्रभारी अश्व अनुसंधान केन्द्र बीकानेर

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