पद्मिनी का जौहर कहा जाता है कि यहां की महारानी पद्मिनी की खूबसूरती और बुद्धि के चर्चे चारों ओर थे, उनकी सुन्दरता की तारीफ जब अलाउद्दीन खिलजी ने सुनी तो वह उस पर मोहित हो गया। उसका मन महारानी को देखने का हुआ तब उसने रावल रतनसिंह को अपनी पत्नी की झलक दिखलाने के बाद दिल्ली लौट जाने के लिए कहा।
कुण्ड में जब उसने महारानी की सुन्दरता देखी तो उसका मन उन्हें वहां से ले जाने का हुआ। उसने धोखे से रावल रतनसिंह को बंदी बना लिया और उसकी मुक्ति के लिए पद्मिनी की मांग की। लेकिन महारानी ने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए और महल की अन्य रानियों के साथ एक- एक कर जौहर किया और अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली।
स्वामिभक्त पन्नाधाय जब मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा का देहान्त हुआ तब उनके पुत्र उदयसिंह बहुत छोटे थे। पन्ना धाय उस समय नन्हे राजकुमार उदयसिंह की धाय मां थी और उनके लालन पालन में व्यस्त थी। साथ ही पन्ना धाय एक बहुत ही स्वाभिमानी, देशभक्त और राणा का एहसान मानने वाली महिला थी। पन्ना धाय का भी एक पुत्र था चंदन जो लगभग उम्र में उदयसिंह के जितना ही था।
उदयसिंह की रक्षा का जिम्मा बनवीर को सौंपा गया था लेकिन उसने नन्हें बालक उदयसिंह का वध करके खुद राजगद्दी हथियाने की सोची। जब पन्ना को बनवीर के गंदे नापाक इरादों का पता चला तो उसने नन्हे बालक उदयसिंह की जगह अपने पुत्र को सुला दिया।
जब बनवीर तलवार लिए कक्ष में पहुंचा और पन्नाधाय से पूछा की कहां है उदयसिंह तो पन्ना धाय ने सिर्फ इशारा किया और तत्काल बनवीर ने पन्ना के पुत्र को मौत के घाट उतार दिया, वह समझ रहा था की उसने मेवाड़ के होने वाले राजा उदयसिंह को मार डाला है पर हकीहत में पन्ना धाय नें अपने पुत्र की कुर्बानी दे दी थी और मेवाड राजवंश के चिराग को बचा लिया था।
हाड़ी रानी का बलिदानसलूम्बर के युवा सामन्त राव चुण्डावत की नवविवाहिता पत्नी का नाम हाड़ी रानी था। मेवाड़ में महाराणा राजसिंह का शासन था। महाराणा राजसिंह का विवाह चारूमती (रूपमती) के साथ होने जा रहा था, उसी समय औरंगजेब ने अपनी सेना लेकर आक्रमण कर दिया। विवाह होने तक मुगल सेना को आगे बढऩे से रोकना आवश्यक था। औरंगजेब की सेना को रोकने का दायित्व नव विवाहित राव चुण्डावत ने स्वीकार किया।
चुण्डावत सरदार ने सेना के साथ युद्ध क्षेत्र के लिए प्रस्थान किया किन्तु जाते समय उन्हें अपनी नव-विवाहिता पत्नी की याद सताने लगी। उन्होंने अपने एक सेवक से रानी की निशानी लेकर आने को कहा। सेवक ने हवेली में जाकर सरदार का संदेश सुनाया। रानी ने सोचा युद्ध क्षेत्र में भी उन्हें मेरी याद सताएगी तो वे कमजोर पड़ जाएंगे, युद्ध कैसे कर पाएंगे। मैं उनके कर्तव्य में बाधक क्यों बनूं?
यह सोचकर हाड़ी रानी ने सेवक के हाथ से तलवार लेकर सेवक को अपना सिर ले जाने का आदेश देते हुए तलवार से अपना सिर काट डाला। सेवक रानी का कटा सिर अपनी थाली में लेकर, सरदार के पास पहुंचा। रानी का बलिदान देखकर चुण्डावत की बिजली बन कर शत्रु-दल पर टूट पड़े और वीर गति को प्राप्त हुए ।
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