बुधवार, 2 मार्च 2016

12 जिलों में विलुप्त होने के कगार पर 'रेगिस्तान का राजा'

12 जिलों में विलुप्त होने के कगार पर 'रेगिस्तान का राजा'  
Jodhpur photo
साभार गजेन्द्रसिंह� दहिया.

थार का राजा, प्रदेश का राज्य वृक्ष \'खेजड़ी\' का अस्तित्व संकट में है। आजादी के समय मरुस्थल के 12 जिलों में प्रति हेक्टेयर 80 से 90 खेजड़ी के वृक्ष होते थे। अब इनकी संख्या 15 से 20 तक रह गई है। बाड़मेर से लेकर श्रीगंगानगर तक एेसा कोई बेल्ट नहीं बचा जहां \'खेजड़ी\' पहले की तरह सिर उठा कर खड़ी हो। नागौर, चूरू, झुंझनू और सीकर में तो यह बेहद कम रह गई है।� केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) के वैज्ञानिकों की ओर से वर्ष 2001 से लेकर 2008 के बीच किए गए सर्वे के दौरान प्रति हेक्टेयर खेजड़ी के 35 से 40 वृक्ष थे। बीते सात सालों से इनकी संख्या आधी रह गई। वर्तमान में सीकर के दाताराम गढ़ बेल्ट और बाड़मेर के सिवाणा क्षेत्र को छोड़ खेजड़ी हर जगह सिमटत रही है। �

बड़ा कारण- हल की जगह ट्रैक्टर

काजरी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जीवनचंद्र तिवारी पहले हल से जुताई होती थी तो किसान केवल 6 इंच जमीन खोदता था और खेजड़ी दिखने पर हल को पास से निकाल लेता था। लेकिन ट्रेक्टर ने जमीन को एक से डेढ़ फुट तक खोदकर खेजड़ी को रोंद दिया। खेजड़ी की जड़ें जमीन में 100 से 150 फुट तक गहराई से पानी खींच लेती हैं। भूजल स्तर चार सौ मीटर से अधिक गहराई पर पानी जाने से इसकी जड़ों की अवशोषण क्षमता खत्म हो जाती है। लेकिन कई इलाकों में भू-जल 800 मीटर तक नीचे पहुंच गया है। इसके अलावा कुछ कवक भी खेजड़ी को उजाड़ देते हैं।

जून में भी हरी-भरी रहती है खेजड़ी

खेजड़ी (प्रोसोपिस सिनेरिया) राजस्थान के अलावा गुजरात, हरियाणा और पाकिस्तान में होती है। यह जून में भी हरी भरी रहकर जानवरों को चारा और इंसानों को छाया देती है। इसका चारा पौष्टिक होता है और एक पेड़ से 60 किलो तक चारा मिलता है। इसकी फलियां \'सांगरी\' विश्व प्रसिद्ध हैं।

उस दिन भी मंगलवार ही था

खेजड़ी का महत्व इस बात से आंका जा सकता है कि जोधपुर के खेजड़ली गांव में खेजड़ी को बचाने के लिए सन् 1730 में अमृता देवी सहित 363 लोगों ने प्राण त्याग दिए थे। उस दिन भी मंगलवार ही था।

ऐसे बचा सकते हैं खेजड़ी

किसानों को एक बार फिर खेजड़ी के महत्व से परिचित कराने की जरूरत है। यह वृक्ष जमीन में नाइट्रोजन स्थिरीकरण का काम करता है। इसके नीचे बरसात में बेल वाली सब्जियां जैसे लोकी, तुरई की बुवाई कर वर्ष पर्यन्त उपज ली जा सकती है। इससे होने वाली आय रेगिस्तानी क्षेत्र के किसानों के लिए बोनस का काम कर सकती हैं।�

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