गुरुवार, 21 जनवरी 2016

यहां होती है शिव के चार रूपों की पूजा, अर्जी से मिलता है इन्साफ

यहां होती है शिव के चार रूपों की पूजा, अर्जी से मिलता है इन्साफ

भगवान शिव के अनेक रूप और विभिन्न अवतार हैं। भारत भूमि पर ऐसे अनेक देवताओं की पूजा की जाती है जिनके बारे में मान्यता है कि वे शिव के अंश से प्रकट हुए थे। अत: उनमें शिव के समान ही गुण व्याप्त हैं। भगवान शिव का एक प्राचीन परंतु अपनी खास परंपराओं के लिए प्रसिद्ध मंदिर उत्तराखंड में स्थित है।



इसका नाम है- महासू देवता का मंदिर। यहां भगवान की पूजा महासू देवता के रूप में होती है। यहां का दृश्य बहुत सुंदर है। हर साल देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन के लिए आते हैं।



महाूस देवता का यह मंदिर उत्तराखंड में त्यूनी-मोरी रोड के पास है। यहां प्रतिवर्ष राष्ट्रपति भवन की ओर से मंदिर को नमक भेंट करने की परंपरा है। राजधानी देहरादून से इस मंदिर की दूरी करीब 19 किमी है। यह टोंस नदी के तट पर बसा है जो चकराता के पास हनोल गांव में है।



यहां एक अखंड ज्योति जल रही है जिसके बारे में कहा जाता है कि यह कई वर्षों से निरंतर जल रही है। मंदिर के गर्भगृह में अन्य लोगों का प्रवेश वर्जित है। यहां सिर्फ पुजारी को ही प्रवेश करने की अनुमति है।







कहा जाता है कि गर्भगृह से ही पानी की एक धारा निकलती है, परंतु वह आगे कहां जाती है और उसका मूल उद्गम कहां से होता है, यह आज तक अज्ञात है। मंदिर में महासू देवता के नाम का भी गूढ़ अर्थ है। मान्यता है कि महासू का मतलब है- महाशिव, जो अपभ्रंश होकर महासू हो गया।



यहां महासू देवता के रूप में किसी एक देव का पूजन नहीं होता। ये कुल चार देव हैं। इन्हें भाई माना जाता है और इनके नाम हैं- बासिक महासू, पबासिक महासू, बूठिया महासू और चालदा महासू।



उल्लेखनीय है कि महासू देव इस क्षेत्र के लोकदेवता हैं। उनकी पूजा सिर्फ उत्तराखंड में ही नहीं, बल्कि हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में भी होती है। यहां महासू देव को इन्साफ का देवता भी माना जाता है।



इनके देवालयों को न्यायालय के समान समझा जाता है और भक्त उनके समक्ष सिर्फ मनोकामना पूर्ण करने के लिए ही नहीं, न्याय की याचना करने भी आते हैं। मंदिर में विभिन्न स्थानों से आए श्रद्धालुओं का कहना है कि महासू देव के सामने न्याय की अर्जी लगाने से उन्हें चमत्कारिक ढंग से इन्साफ मिला।





 

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