जालोर किसानों को रबी फसलों मंे उचित पौध संरक्षण उपाय अपनाने की सलाह
जालोर 19 जनवरी -कृषि विभाग ने जिले में रबी के दौरान बोई गई फसलों में वर्तमान मौसमी परिस्थितियों के मध्यनजर कीट रोग प्रकोप की दशा में किसानों को आवश्यक सावधानी बरतने तथा उचित पौध संरक्षण उपाय अपनाने करने का आग्रह किया हैं।
कृषि विभाग के सहायक निदेशक फूलाराम मेघवाल ने बताया कि रबी के दौरान बोई गई फसलों में अनियमित तापक्रम एवं बादलों भरा मौसम होने पर सरसों जीरा सौंफ आदि में मोयला अर्थात एफिड नामक रस चूसक कीट के प्रकोप की संभावना होती हैं। यह कीट हल्के हरे से गहरे नीले रंग के होते है जो पत्तियों, पुष्पक्रम का रस चूसकर फसल उत्पादन को प्रभावित करते है। सरसों की फसल में इस कीट के नियंत्राण के लिए आर्थिक हानि स्तर अर्थात 50 से 60 मोयला प्रति सेन्टीमीटर पौधें के केन्द्रीय शाखा या 30 प्रतिशत पौधे ग्रसित होने पर थायोंमेथोक्साॅम 25 डब्ल्यू जी या एसिटाप्रिमिड 20 प्रतिशत एस.पी. 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे। जीरे में मोयला प्रकोेप होने पर इम्डिाक्लोप्रिड 200 एस.एल 25 ग्राम सक्रिय तत्व या थायोमिथोक्सोम 25 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करे। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन बाद छिडकाव को दोहरायें।
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक एल.एन. यादव ने बताया कि जीरे में इन दिनों ब्लाईट जिसे स्थानीय भाषा में झुलसा कहते है, इसके प्रकोप की प्रबल संभावना है। इसके प्रकोप से पौधों मुरझायें हुए नजर आते है। पौधों की पत्तियों एवं तनों पर भूरे रंग के धब्बे पड जाते है। इस रोग के लक्षण दिखते ही तुरंत दो ग्राम टोप्सिन एम या मेन्कोजेब प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकंे। छिडकाव को 10 से 15 दिन बाद दोहरायंे। कृषकों को सलाह दी जाती है कि जीरे में छाछ्या रोग के बचाव हेतु तीसरे शेड्युल छिडकाव के 10-15 दिन बाद 25 किलो गन्धक के चूर्ण का प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
पौध संरक्षण रसायनों के प्रयोग में आवश्यक सावधानी अवश्य बरती जावंे तथा इनके प्रयोग से पूर्व स्थानीय कृषि पर्यवेक्षक से उचित तकनीकी सलाह लेनी चाहिए।
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जालोर 19 जनवरी -कृषि विभाग ने जिले में रबी के दौरान बोई गई फसलों में वर्तमान मौसमी परिस्थितियों के मध्यनजर कीट रोग प्रकोप की दशा में किसानों को आवश्यक सावधानी बरतने तथा उचित पौध संरक्षण उपाय अपनाने करने का आग्रह किया हैं।
कृषि विभाग के सहायक निदेशक फूलाराम मेघवाल ने बताया कि रबी के दौरान बोई गई फसलों में अनियमित तापक्रम एवं बादलों भरा मौसम होने पर सरसों जीरा सौंफ आदि में मोयला अर्थात एफिड नामक रस चूसक कीट के प्रकोप की संभावना होती हैं। यह कीट हल्के हरे से गहरे नीले रंग के होते है जो पत्तियों, पुष्पक्रम का रस चूसकर फसल उत्पादन को प्रभावित करते है। सरसों की फसल में इस कीट के नियंत्राण के लिए आर्थिक हानि स्तर अर्थात 50 से 60 मोयला प्रति सेन्टीमीटर पौधें के केन्द्रीय शाखा या 30 प्रतिशत पौधे ग्रसित होने पर थायोंमेथोक्साॅम 25 डब्ल्यू जी या एसिटाप्रिमिड 20 प्रतिशत एस.पी. 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकाव करे। जीरे में मोयला प्रकोेप होने पर इम्डिाक्लोप्रिड 200 एस.एल 25 ग्राम सक्रिय तत्व या थायोमिथोक्सोम 25 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण 100 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से छिडकाव करे। आवश्यकतानुसार 10 से 15 दिन बाद छिडकाव को दोहरायें।
उद्यान विभाग के सहायक निदेशक एल.एन. यादव ने बताया कि जीरे में इन दिनों ब्लाईट जिसे स्थानीय भाषा में झुलसा कहते है, इसके प्रकोप की प्रबल संभावना है। इसके प्रकोप से पौधों मुरझायें हुए नजर आते है। पौधों की पत्तियों एवं तनों पर भूरे रंग के धब्बे पड जाते है। इस रोग के लक्षण दिखते ही तुरंत दो ग्राम टोप्सिन एम या मेन्कोजेब प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिडकंे। छिडकाव को 10 से 15 दिन बाद दोहरायंे। कृषकों को सलाह दी जाती है कि जीरे में छाछ्या रोग के बचाव हेतु तीसरे शेड्युल छिडकाव के 10-15 दिन बाद 25 किलो गन्धक के चूर्ण का प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें।
पौध संरक्षण रसायनों के प्रयोग में आवश्यक सावधानी अवश्य बरती जावंे तथा इनके प्रयोग से पूर्व स्थानीय कृषि पर्यवेक्षक से उचित तकनीकी सलाह लेनी चाहिए।
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