बाड़मेर शर्मनाक। अनबन हुई तो कह दिया अस्मत लूटी...
बाड़मेर जिले में दुष्कर्म के आधे से ज्यादा मामले झूठ की बुनियाद पर पुलिस थानों में दर्ज हुए और थाना स्तर पर ही निपट गए। फिर भी दुष्कर्म के सही मामलों का आंकड़ा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। बीते तीन वर्ष के आंकड़ों पर गौर करें तो कड़वी सच्चाई यही है कि कठोर कानून के बावजूद दरिंदे बेखौफ हैं और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करते जा रहे हैं।
जिले में वर्ष 2015 में महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित 765 मामले दर्ज हुए। इनमें से 120 मामले दुष्कर्म के हैं। वर्ष 2014 में महिला अत्याचार से संबंधित 726 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें दुष्कर्म के मामलों की संख्या 93 थी। जबकि वर्ष 2013 में महिला अत्याचार के कुल मामलों का आंकड़ा 584 था, जिसमें दुष्कर्म के 55 मामले ही थे। इन तीन वर्षों में महिला अत्याचार व दुष्कर्म के मामलों में लगातार वृद्धि हुई। वर्ष 2015 में दर्ज दुष्कर्म के 120 मामलों में 61 मामले पुलिस जांच में झूठे पाए गए। वहीं 47 मामलों में पुलिस ने चालान किया। ग्यारह मामले अभी अन्वेक्षणाधीन है। वर्ष 2013 में दुष्कर्म के 31 मामलों में चालान किया था। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो वर्ष 2015 में दुष्कर्म के झूठे मामले ज्यादा होने के बावजूद सही मामलों की संख्या भी कम नहीं है। एक तरह से दो वर्ष के अंतराल में ही दुष्कर्म के मामले 80 फीसदी बढ़ गए।
महिलाओं की अस्मिता दांव पर
दुष्कर्म के मामलों में जो झूठी कहानियां निकली है, उनकी हकीकत चौंकाने वाली है। अधिकांश झूठे मामलों की कहानी यह है कि पारिवारिक रंजिशों में महिलाओं की अस्मिता दांव पर लगाई गई है। जमीन-जायदाद के विवादों से लेकर छोटी-बड़ी निजी कलहों को दुष्कर्म के झूठे मामलों में उलझाया गया।
मुफ्त में बदनाम हो गए
दुष्कर्म के जो मामले थानों में दर्ज होते हैं, उसमें महिलाओं की पहचान उजागर नहीं होती। लेकिन दुष्कर्म के आरोपितों की पहचान सार्वजनिक हो जाती है। झूठे मामलों में सबसे ज्यादा तकलीफ आरोपितों को ही हुई। उन्हें मुफ्त में ही बदनामी मिल गई। वे पाक साफ होते हुए भी समाज में बदनाम हुए।
बाड़मेर जिले में दुष्कर्म के आधे से ज्यादा मामले झूठ की बुनियाद पर पुलिस थानों में दर्ज हुए और थाना स्तर पर ही निपट गए। फिर भी दुष्कर्म के सही मामलों का आंकड़ा निरंतर बढ़ता ही जा रहा है। बीते तीन वर्ष के आंकड़ों पर गौर करें तो कड़वी सच्चाई यही है कि कठोर कानून के बावजूद दरिंदे बेखौफ हैं और अस्मिता के साथ खिलवाड़ करते जा रहे हैं।
जिले में वर्ष 2015 में महिलाओं पर अत्याचार से संबंधित 765 मामले दर्ज हुए। इनमें से 120 मामले दुष्कर्म के हैं। वर्ष 2014 में महिला अत्याचार से संबंधित 726 मामले दर्ज हुए थे, जिसमें दुष्कर्म के मामलों की संख्या 93 थी। जबकि वर्ष 2013 में महिला अत्याचार के कुल मामलों का आंकड़ा 584 था, जिसमें दुष्कर्म के 55 मामले ही थे। इन तीन वर्षों में महिला अत्याचार व दुष्कर्म के मामलों में लगातार वृद्धि हुई। वर्ष 2015 में दर्ज दुष्कर्म के 120 मामलों में 61 मामले पुलिस जांच में झूठे पाए गए। वहीं 47 मामलों में पुलिस ने चालान किया। ग्यारह मामले अभी अन्वेक्षणाधीन है। वर्ष 2013 में दुष्कर्म के 31 मामलों में चालान किया था। तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो वर्ष 2015 में दुष्कर्म के झूठे मामले ज्यादा होने के बावजूद सही मामलों की संख्या भी कम नहीं है। एक तरह से दो वर्ष के अंतराल में ही दुष्कर्म के मामले 80 फीसदी बढ़ गए।
महिलाओं की अस्मिता दांव पर
दुष्कर्म के मामलों में जो झूठी कहानियां निकली है, उनकी हकीकत चौंकाने वाली है। अधिकांश झूठे मामलों की कहानी यह है कि पारिवारिक रंजिशों में महिलाओं की अस्मिता दांव पर लगाई गई है। जमीन-जायदाद के विवादों से लेकर छोटी-बड़ी निजी कलहों को दुष्कर्म के झूठे मामलों में उलझाया गया।
मुफ्त में बदनाम हो गए
दुष्कर्म के जो मामले थानों में दर्ज होते हैं, उसमें महिलाओं की पहचान उजागर नहीं होती। लेकिन दुष्कर्म के आरोपितों की पहचान सार्वजनिक हो जाती है। झूठे मामलों में सबसे ज्यादा तकलीफ आरोपितों को ही हुई। उन्हें मुफ्त में ही बदनामी मिल गई। वे पाक साफ होते हुए भी समाज में बदनाम हुए।
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