सोमवार, 9 नवंबर 2015

हार पर भाजपा में बढ़ा अंसतोष, सांसदों ने पार्टी और संघ पर उठाए सवाल

हार पर भाजपा में बढ़ा अंसतोष, सांसदों ने पार्टी और संघ पर उठाए सवाल

बिहार में भाजपा को मिली करारी हार के बाद पार्टी के भीतर ही असंतोष और खीझ के स्वर सुनाई देने लगे। तीन सांसदों ने तो जमकर भाजपा और संघ पर जमकर निशाना साधते हुए सवाल खड़े किए हैं। इनमें से तो दो बिहार के ही हैं।

मधुबनी के सांसद हुक्मदेव नारायण यादव और बक्सर के सांसद अश्विनी कुमार चौबे ने हार का आरोप आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत पर लगाते हुए कहा कि आरक्षण नीति पर भागवत का बयान 'असमय' दिया गया बयान था।

लोगों में यह संदेश चला गया कि 'भाजपा संघ की गुलामÓ है। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांगड़ा से सांसद शांता कुमार ने भी नेतृत्व को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 'भाजपा ने ईमानदारी और गंभीरता से आत्मालोकन नहीं किया।'

हुक्मदेव नारायण यादव ने कहा कि लोग बिहार की मिट्टी के बारे में नहीं जानते। बिहार के लोग आर्थिक असमानता से ज्यादा जातीय असमानता के खिलाफ संघर्ष करते रहे हैं।

लालू ने लोगों को समझाया कि यदि आतंक (भाजपा) का राज्य का राज आ गया तो आपकी प्रतिष्ठा मिट्टी में मिल जाएगी। लालू और नीतीश ने भागवत के आरक्षण वाले बयान का जमकर प्रचार किया और इसका लाभ लिया।इसी तरह भाजपा के राज्यसभा सदस्य और पत्रकार चंदन मित्रा ने भी पार्टी की कायज़्शैली की निंदा की है। मित्रा ने कहा कि जब भी उत्तर भारतीय राज्यों में जाति से वोटिंग तय होती है, भाजपा को पराजय का मुंह देखना पड़ता है।

जाति से जाति की बराबरी की कोशिश में पार्टी के रणनीतिकारों ने अपने आकलन में गलती की। चंदन मित्रा ने कहा कि ऐसा लगता है कि महागठबंधन का बिना शोर-शराबे वाला चुनाव प्रचार और मृदभाषी नीतीश कुमार को सीएम उम्मीदवार बनाने का फैसला सफल रहा, जबकि वोटरों ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के शोर-शराबे वाले बीजेपी के कैंपेन को खारिज कर दिया। मित्रा ने कहना है कि बिहार में पार्टी को स्थानीय नेतृत्व भी तैयार करने की जरूरत है।

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