जयपुर नाकारा हो चुकी सरकार .हाईकोर्ट
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नाकारा बताते हुए मौखिक टिप्पणी की है कि शर्म की बात है सरकार ने आयोगों में नियुक्ति नहीं की इसलिए हाईकोर्ट को स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेना पड़ा। सरकार में रिसर्जेंट राजस्थान के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। मुख्य सचिव को बुलाकर दिनभर खड़ा रखेंगे तब पता चलेगा।
न्यायाधीश अजय रस्तोगी व एएस ग्रेवाल की पीठ ने स्वप्रेरणा से दर्ज याचिका पर गुरुवार को यह टिप्पणी की। फिर सुनवाई 26 अक्टूबर तक टाल दी। कोर्ट में सुबह मामला लगते ही सरकार से खाली आयोगों पर जवाब मांगा।
उत्तर नहीं मिलने पर सुनवाई चार बजे रखी। इसमें दिए सरकार के जवाब को न्यायमित्र प्रतीक कासलीवाल ने गोलमोल व अस्पष्ट बताया। कहा-जवाब चार आयोगों तक सीमित है। कोर्ट ने सभी खाली आयोग और न्यायाधिकरणों की जानकारी मांगी थी।
मालूम हो, अल्पसंख्यक आयोग, सूचना आयोग, राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, सफाई कर्मचारी आयोग व राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय न्यायाधिकरण में अध्यक्ष-सदस्यों के पद खाली हैं। कई आयोग के बारे में वेबसाइट पर जानकारी नहीं है। राज्य मानवाधिकार आयोग में पांच साल से अध्यक्ष नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट हर्जाना लगाने को कह चुका है।
नाकारा...
डीजे स्तर के न्यायिक अधिकारी को अध्यक्ष का कार्य दिया हुआ है। दो में नियुक्ति जल्द, दो की प्रक्रिया शुरू आयोग में खाली पदों के बारे में गुरुवार को पेश जवाब में सरकार ने कहा है कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चयन की प्रक्रिया चल रही है, इसके लिए चयन कमेटी बनाई है। कमेटी ने तीन नामों की सिफारिश की है।
अध्यक्ष की नियुक्ति अंतिम चरण में है। अनुसूचित जाति आयोग अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्य नियुक्ति का कार्य भी अंतिम चरण में है। मानवाधिकार आयोग तथा महिला आयोग अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष के लिए मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, गृहमंत्री व नेता प्रतिपक्ष की चयन कमेटी की बैठक होने वाली है।
एेसे बरसा कोर्ट
मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष पद पर नियुक्ति पर कोर्ट ने कहा, यह शर्मनाक है कि हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर केवल न्यायिक अधिकारी को चार्ज दे रखा है।
सरकार के काम को लेकर कोर्ट को स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेना पड़ रहा है, यह शर्म की बात है। सरकार नाकारा हो चुकी है, रिसर्जेंट राजस्थान के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है।
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को नाकारा बताते हुए मौखिक टिप्पणी की है कि शर्म की बात है सरकार ने आयोगों में नियुक्ति नहीं की इसलिए हाईकोर्ट को स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेना पड़ा। सरकार में रिसर्जेंट राजस्थान के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। मुख्य सचिव को बुलाकर दिनभर खड़ा रखेंगे तब पता चलेगा।
न्यायाधीश अजय रस्तोगी व एएस ग्रेवाल की पीठ ने स्वप्रेरणा से दर्ज याचिका पर गुरुवार को यह टिप्पणी की। फिर सुनवाई 26 अक्टूबर तक टाल दी। कोर्ट में सुबह मामला लगते ही सरकार से खाली आयोगों पर जवाब मांगा।
उत्तर नहीं मिलने पर सुनवाई चार बजे रखी। इसमें दिए सरकार के जवाब को न्यायमित्र प्रतीक कासलीवाल ने गोलमोल व अस्पष्ट बताया। कहा-जवाब चार आयोगों तक सीमित है। कोर्ट ने सभी खाली आयोग और न्यायाधिकरणों की जानकारी मांगी थी।
मालूम हो, अल्पसंख्यक आयोग, सूचना आयोग, राज्य उपभोक्ता संरक्षण आयोग, सफाई कर्मचारी आयोग व राजस्थान सिविल सेवा अपीलीय न्यायाधिकरण में अध्यक्ष-सदस्यों के पद खाली हैं। कई आयोग के बारे में वेबसाइट पर जानकारी नहीं है। राज्य मानवाधिकार आयोग में पांच साल से अध्यक्ष नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट हर्जाना लगाने को कह चुका है।
नाकारा...
डीजे स्तर के न्यायिक अधिकारी को अध्यक्ष का कार्य दिया हुआ है। दो में नियुक्ति जल्द, दो की प्रक्रिया शुरू आयोग में खाली पदों के बारे में गुरुवार को पेश जवाब में सरकार ने कहा है कि बाल अधिकार संरक्षण आयोग के चयन की प्रक्रिया चल रही है, इसके लिए चयन कमेटी बनाई है। कमेटी ने तीन नामों की सिफारिश की है।
अध्यक्ष की नियुक्ति अंतिम चरण में है। अनुसूचित जाति आयोग अध्यक्ष, उपाध्यक्ष व सदस्य नियुक्ति का कार्य भी अंतिम चरण में है। मानवाधिकार आयोग तथा महिला आयोग अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है। मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष के लिए मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष, गृहमंत्री व नेता प्रतिपक्ष की चयन कमेटी की बैठक होने वाली है।
एेसे बरसा कोर्ट
मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष पद पर नियुक्ति पर कोर्ट ने कहा, यह शर्मनाक है कि हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर केवल न्यायिक अधिकारी को चार्ज दे रखा है।
सरकार के काम को लेकर कोर्ट को स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान लेना पड़ रहा है, यह शर्म की बात है। सरकार नाकारा हो चुकी है, रिसर्जेंट राजस्थान के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है।
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