शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

रोग और शोक से रक्षा करती हैं मां कूष्मांडा



देवी कूष्मांडा भक्तों को रोग, शोक और विनाश से मुक्त कर आयु, यश, बल और बुद्धि प्रदान करती हैं। अपनी मंद मुस्कान से ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इनका नाम कूष्मांडा पड़ा। यह मां जगदंबा का चतुर्थ स्वरूप है। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब सर्वत्र अंधकार व्याप्त था तब मां ने अपने हास्य से ब्रह्मांड को उत्पन्न किया। मां कूष्मांडा के पूजन से रोग और शोक नष्ट हो जाते हैं। वे साधक को आयु, यश, बल और स्वास्थ्य का वरदान देती हैं। इनकी आठ भुजाएं हैं। मां के सात हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र एवं गदा हैं। आठवें हाथ में सर्वसिद्धियां प्रदान करने वाली जपमाला है। मां कूष्मांडा शिव की तरह ही शीघ्र प्रसन्न होती हैं।

ध्यान- वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

स्तोत्र पाठ- दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥ 

कवच- हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥ 

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