रविवार, 12 जुलाई 2015

विष्णु जी ने शिव को क्यों अर्पित कर दिया था अपना नेत्र?





भगवान की कृपा का दूसरा नाम ही वरदान है। जिस पर उनकी कृपा होती है उसके जीवन में आने वाले शूल भी फूल बन जाते हैं। पुराणों में भगवान के वरदान से संबंधित अनेक कथाएं हैं जो एक भक्त का अपने भगवान पर भरोसा और मजबूत करती हैं।
shiva
सभी देवों में शिवजी सबसे शीघ्र प्रसन्न होने वाले, दयालु और वरदानी हैं। एक बार भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए विष्णुजी ने भी तपस्या की और उन्हें अपना नेत्र तक शिव को भेंट करना पड़ा।बहुत प्राचीन काल की बात है। सृष्टि में दैत्यों का आतंक बहुत बढ़ गया था। तब सभी देवताओं ने उनकी दुष्ट प्रवृत्तियों का अंत करने के लिए विष्णुजी से प्रार्थना की। विष्णुजी देवताओं की करुण पुकार सुनकर कैलाश पर्वत गए। वहां वे शिवजी को यह समस्या बताना चाहते थे।
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शिव की प्रसन्नता के लिए विष्णुजी ने हजार नामों से उनकी स्तुति प्रारंभ की। वे हर नाम पर एक कमल शिव को प्रस्तुत करते रहे। इस बीच शिवजी ने विष्णुजी की परीक्षा के लिए एक पुष्प छिपा दिया। जब अंतिम नाम पर विष्णुजी ने पुष्प चढ़ाना चाहा तो उन्हें वह नहीं मिला। जो सत्य, न्याय, धर्म और जगत के कल्याण के लिए महान त्याग करता है, भगवान भोलेनाथ उस पर कृपा जरूर करते हैं।

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