जयपुर। डामर की सड़कों से बेहतर पॉली प्रोपलीन सड़कें,लागत भी कम
जयपुर। सार्वजनिक निर्माण विभाग सूबे में सड़कों की मजबूती के लिए फाइलों में तो खूब प्रस्ताव बनाता है। लेकिन धरातल पर कुछ नहीं होता ऐसा ही हो रहा है सीमेंट-कंक्रीट की सड़कों में पॉली प्रोपलीन फाइबर तकनीक के इस्तेमाल करने को लेकर पिछली सरकार से लेकर अब तक इस मसले पर वार्ताओं और बैठकों को दौर तो खूब चला लेकिन किसी नतीजे पर विभाग अब तक नहीं पहुंच पाया है। आपको बता दें कि इस तकनीक से बनाई गई सड़के करीब 20 साल तक चलती है। डामर का इस्तेमाल नहीं होने से मेटींनेस का भी झंझट नहीं रहता,वहीं बार बार डामर की परत हटाते हुए नई सड़क बनाने का भी लफड़ा नहीं है। ताज्जुब की बात है की डामर की सड़कों की तुलना में इस तकनीक की सड़कों में लागत भी कम आती है, साथ ही बारिश में सड़त क्रेक भी नहीं होती।
अभी कहां कहां है ऐसी सड़कें
जेडीए ने टोंक रोड पर लक्ष्मी नगर चौराहे से लेकर गांधी नगर मोड़ तक इस तकनीक से व्हाइट टॉपिंग सड़क बनाई थी, जो आज तक नहीं टूटी है। इसके अलावा गोवा, दिल्ली और यूपी में लंबे समय से इस तकनीक से सड़के बनाई जा रही है, लेकिन विभाग फिर फी इस फायदेमंद तकनीक को अपनाने का फैसला नहीं कर पा रहे। हालांकि विभाग रिलायंस सहित कई कंपनियों का 4 बार प्रजेटेंशन भी देख चुका है, यहां तक की मामले में एक कमेटी का भी गठन कर रखा है। विभाग बिना अध्यय किए ही लागत औऱ समय ज्यादा लगने की उलझन में उलझा हुआ है, ऐसे में फैसला फाइलों से बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहा अब इस पर अंतिम फैसला सीएम राजे के लेवल पर ही होने की संभावना है।
अभी कहां कहां है ऐसी सड़कें
जेडीए ने टोंक रोड पर लक्ष्मी नगर चौराहे से लेकर गांधी नगर मोड़ तक इस तकनीक से व्हाइट टॉपिंग सड़क बनाई थी, जो आज तक नहीं टूटी है। इसके अलावा गोवा, दिल्ली और यूपी में लंबे समय से इस तकनीक से सड़के बनाई जा रही है, लेकिन विभाग फिर फी इस फायदेमंद तकनीक को अपनाने का फैसला नहीं कर पा रहे। हालांकि विभाग रिलायंस सहित कई कंपनियों का 4 बार प्रजेटेंशन भी देख चुका है, यहां तक की मामले में एक कमेटी का भी गठन कर रखा है। विभाग बिना अध्यय किए ही लागत औऱ समय ज्यादा लगने की उलझन में उलझा हुआ है, ऐसे में फैसला फाइलों से बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहा अब इस पर अंतिम फैसला सीएम राजे के लेवल पर ही होने की संभावना है।
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