सोमवार, 9 मार्च 2015

अपने हाथों पर कृष्ण ने क्यों किया था कर्ण का अंतिम संस्कार?



महाभारत में कर्ण ऐसे पात्र के रूप में जाने जाते हैं जो बहुत शूरवीर, दानवीर और वादे के पक्के थे, लेकिन उनका संपूर्ण जीवन विभिन्न परिस्थितियों की उलझन में फंसा रहा। दुर्योधन को सबसे ज्यादा किसी पर भरोसा था तो वह कर्ण थे।



उन्हीं के भरोसे वह महाभारत में विजय के सपने देखा करता था। अगर कर्ण पांडवों के पक्ष में होते और उनके जीवन में कुछ घटनाएं अलग तरह से घटित होतीं तो संभवतः महाभारत का युद्ध न होता या पांडवों की विजय बहुत जल्दी हो जाती। इस लेखमाला में जानिए कर्ण के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें।




1- कर्ण कुंती के बेटे थे और उनका जन्म सूर्य के वरदान से हुआ था। लोक मर्यादा का ध्यान रखते हुए कुंती ने कर्ण का त्याग कर दिया था। कर्ण का पालन एक रथ चालक ने किया, इसलिए उन्हें सूतपुत्र भी कहा गया। जो लोग कर्ण को पसंद नहीं करते थे, वे इसी नाम से उनका उपहास उड़ाते थे। जीवन भर कर्ण को वह सम्मान नहीं मिल सका, जिसके वे वास्तविक हकदार थे।




2- कर्ण के पालक पिता ने उनका विवाह रुषाली नामक कन्या से किया था। रुषाली भी एक रथ चालक की बेटी थी। उसके बाद भी कर्ण ने एक विवाह किया था। उनकी दूसरी पत्नी का नाम सुप्रिया था। दोनों शादियों से कर्ण को नौ बेटे हुए थे। उनके सभी बेटे महाभारत युद्ध में शामिल हुए और उनमें से आठ मारे गए थे। सिर्फ वृशकेतु नामक पुत्र युद्ध में जिंदा रहा।




3- कर्ण वध के बाद जब पांडवों को यह मालूम हुआ कि वे उनके बड़े भाई थे तो उन्हें बहुत दुख हुआ। उन्होंने बाद में वृशकेतु का पूरा ख्याल रखा और इंद्रप्रस्थ की गद्दी भी सौंपी थी। वृशकेतु स्वयं भी बहुत अच्छा योद्धा था। उसने अर्जुन के नेतृत्व में कई युद्ध लड़े और विजयी हुआ।




4- कहा जाता है कि स्वयंवर से पूर्व द्रोपदी भी कर्ण से विवाह करना चाहती थी। वह कर्ण की सुंदरता, वीरता और दानशीलता से प्रभावित थी, लेकिन कृष्ण चाहते थे कि वह अर्जुन के गले में ही वरमाला डाले। आखिरकार यही हुआ। कर्ण ने जब धनुष उठा लिया और वे मछली की आंख पर निशाना लगाने जा रहे थे तो द्रोपदी ने उन्हें सूतपुत्र होने के कारण विवाह के लिए खारिज कर दिया।




5- अंतिम समय में कर्ण के पास जब भगवान कृष्ण गए तो उन्होंने कृष्ण से वरदान मांगा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसी जगह पर हो जहां कभी पाप न हुआ हो। पूरी धरती पर ऐसी कोई जगह नहीं थी। तब श्रीकृष्ण ने उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए अपने हाथों पर ही अंतिम संस्कार कर दिया।

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