पंडित दयानन्द शास्त्री
भारत वर्ष में एक मंदिर ऐसा भी है जहा पर पैरालायसिस(लकवे ) का इलाज होता है ! यहाँ पर हर साल हजारो लोग पैरालायसिस(लकवे ) के रोग से मुक्त होकर जाते है यह धाम नागोर जिले के कुचेरा क़स्बे के पास है, अजमेर- नागोर रोड पर यह गावं है !
लगभग 500 साल पहले एक संत होए थे चतुरदास जी वो सिद्ध योगी थे, वो अपनी तपस्या से लोगो को रोग मुक्त करते थे ! आज भी इनकी समाधी पर सात फेरी लगाने से लकवा जड़ से ख़त्म हो जाता है ! नागोर जिले के अलावा पूरे देश से लोग आते है और रोग मुक्त होकर जाते है हर साल वैसाख, भादवा और माघ महीने मे पूरे महीने मेला लगता है !
ये एक महान संत और सिद्ध पुरुष चतुरदास जी का मंदिर है .... ...जय चतुर दास जी ..आस्था को नमन
(यह विचार साभार लिए हैं--गूगल से)----
संत चतुरदास जी का इतिहास उस वक्त मुझे बुटाटी धाम के विषय में कोई जानकारी नहीं थी घर पर तेल मालिश करते रहे फिजियोथेरापी का लाभ लेते रहे। स्वास्थ्य में कोई खास बदलाव नहीं था। उस वक्त मेरे एक पड़ोसी मनोज तंवर ने मुझे बुटाटी धाम के विषय में जानकारी दी। बीकानेर रहवासी उनकी मौसीजी, जोकि लकवा से पीड़ित थी। उन्होंने बाबा की ७-७ फेरी लगायी और उन्हें बहुत ज्यादा फायदा हुआ। मुझे इन बातों पर विश्वास नहीं था परन्तु मेरी धर्मपत्नी ने जिद की आप मुझे एक बार बुटाटी धाम ले चलो आखिर अपने मन से मैंने स्वीकृति दी।
हम दीवाली के पश्चात् कार्तिक सुदी ११ को अहमदाबाद से रवाना होकर नागौर होते हुए कार्तिक सुदी १२ को बुटाटी पहुंचे धाम में काफी भीड़ थी। पता लगा कि कल मेला था। हमें वहां पर एक कमरा दे दिया गया। मेरे साथ में मेरी लड़की आरती थी। हम लोग ७ दिन तक बुटाटी में रहे एक दिन की एक फेरी मानी जाती है। इस तरह हमने ७ दिनों में ७ फेरी लगायी परन्तु इन सात दिनों में मैने अपनी धर्मपत्नी में अभूतपूर्व परिवर्तन देखा। जिससे चला नहीं जा रहा था। अब बिना सहारे ही चलने में समर्थ थी। कोई भी दवा नहीं की थी। केवल एक विश्वास बाबा का विश्वास, दो समय आरती प्रसाद आरती के समय आ रही ज्योति को दिखलाकर सरसों को तेल और इस तेल में मिलाने के लिए बाबा की भभुती। भभुति मिले हुए तेल से मरीज के हाथ, पावं एवं शरीर की मालिश। यही तो किया था। अद्भुत था चमत्कार। कमाल हो गया। सच पूछो तो मैं निहाल हो गया। सात दिन में ५० प्रतिशत से भी ज्यादा फायदा हमें नजर आया। जब वहां से रवाना होने लगे तो मेरी धर्मपत्नी ने बाबा से अरदास भी की कि यदि मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगी। तो बाबा तेरी रात जगाउंगी एवं सवामणी का भोग चढ़ाउंगी। अद्भुत था बाबा का चमत्कार आज मेरी धर्मपत्नी ८० प्रतिशत ठीक है।
आज दिनांक ६-११-२००८ वार गुरुवारमें बुटाटी धाम पहुंचा हूं मेरे साथ मेरी धर्मपत्नी है जो बिना किसी सहारे के चलती है। खाना पकाती है। कपड़े धोती है। घर का सभी कार्य करने में आज सक्षम है। मैं तो कहता हूं कि यह सब बाबा की कृपा होगी। उनका ही चमत्कार है। दिनांक ७-११-२००८ को बाबा का जागरण किया।
८-११-२००८ को सवामणी का भोग लगाया। उस वक्त बाबा के दरबार में मन में यह विचार आया कि बाबा की करूणा पर एक पुस्तक लिखूं। जिसका वितरण पूरे भारत वर्ष में नहीं बल्कि पूरी धरा पर हो और जो लोग इस कष्टप्रद एवं असाध्य बीमारी से पीड़ित है और जिन्होंने लाखों रूपये अपने इलाज पर खर्चा किये है। फिर भी उन्हें कोई फायदा नहीं है, तो भी बाबा के चमत्कार एवं बुटाटी धाम के विषय में जाने यहां आये और इस असाध्य रोग से छुटकारा पायें।
इसी भावना से फलस्वयप मैं यहां पर आये हुए लकवा पीड़ित लोगों से मिला उनको क्या फायदा हुआ, इसका वर्णन में नीचे कर रहा हूं। साथ में उन मरीजों के नाम व फोन नम्बर भी लिख रहा हूं। यदि कोई पाठक चाहें, तो लिखे हुए फोन नम्बर पर फोन करके और विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। सर्वप्रथम मैं चतुरदासजी मंदिर के भूतपूर्व अध्यक्ष श्री रतनसिंह सुपुत्र श्री आनंदसिंह राजपुत गांव बुटाटी धाम (फोन नं. ०१५८७-२४८०३६) के बारे में बताता हूं ये १४ जनवरी १९९७ के दिन प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष बने। इसके पहले प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष श्री अमरसिंह राजपुत थे।
मैं बात कर रहा हूं कि श्री रतनसिंह के विषय में कि उनके साथ क्या घटना घटित हुई और क्या रहा बाबा का चमत्कार उनसे मैं मिला और उनके द्वारा बतलायी हुई जानकारी मैं आपको दे रहा हूं।
श्री रतनसिंह जी सरकारी नौकरी में कार्यरत थे। निवृतिकाल में अभी एक साल की देरी थी। परंतु चमडी अथवा अन्य किसी बीमारी के कारण उनके हाथ एवं पांव से पानी झरने लगा, जिसके कारण वे स्वेच्छा से नौकरी से इस्तीफा देकर अपने गांव बुटाटी आ गये। बाबू के पद से निवृत हुए थे। आपको प्रबन्धन का ज्ञान था। गांव वालों के विशेष आग्रह के कारण आपने कुछ समय के लिए यह कार्य संभाल लिया।
अपनी कुशाग्र बुद्धि एवं कड़ी मेहनत के कारण तथा बाबा चतुरदासजी के आशीर्वाद फलस्वरूप आपने मंदिर की व्यवस्था को एक नया आयाम दिया। मई १९९८ में आपको अचानक सर्दी के उपरांत बुखार हो गया। बुटाटी के नजदीक जो की एक कस्बा है। आपको वहां ले जाया गया डॉक्टर को दिखलाया। डॉक्टर ने पांच पेनीसिलिन के इंजेक्शन लिखे। तीन दिन में तीन इंजेक्शन लग चुके थे। कोई दवा शरीर में रीऐक्ट नहीं हुई। चौथे दिन जो इंजेक्शन लगा वह रीऐक्ट कर गया। श्रीरतनसिंह मृत प्रायः हो गये। उनकी याददाश्त कभी आये कभी चली जाये। उनकी धर्मपत्नि उनकी हालत देखकर बहुत ज्यादा घबरा गयी। परिवार में सभी सदस्य एकत्रित हो गये। निर्णय लिया गया कि उनको जयपुर ले जाया जाए।
श्रीरतनसिंह जी ने उसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि मुझे यहीं रहने दो। मौत आए तो आ जाए उनकी जिद के आगे परिवार झुक गया। १८ घंटे की बेहोशी के बाद जब होश आया, आपने आंखे खोली ओर पास में कोई भी न था। आप उठकर बैठ गये अकेल ही आप नंगे पांव, बाबा चतुरदासजी के मंदिर पहुंच गये आप डायबिटिज के मरीज भी थे। आपने दरबार में जाकर बाबा से कहा कि गांव के लोग क्या कहेंगे कि कोई मंदिर में घपलेबाजी की होगी। जिसका यह परिणाम है। मेरे मुह पर कालीख पुत जायेगी। जिसका यह परिणाम है यदि मैं सच्चा हूं तो मेरीरक्षा कर। उन्होंने पूजारी कर से कहा कि मुझे बाबा का प्रसाद दों आपने तीन दफा प्रसाद के लिए हाथ बढ़ाया पुजारी ने तीनों दफा आपका हाथ (खोबा) प्रसाद से भर दिया। आपने यह प्रसाद जेब में रख लिया। प्रसाद खाते-खाते आप घर के लिए रवाना हो गये।
Present time koi lakwe se sahi hua ho to plz apna number de mujhe baat karni h kyu ki mere nana ji ko lakwa mara h
जवाब देंहटाएंYha par ilaaz karwaane mai kya khrch aata hai
जवाब देंहटाएंकुछ भी खर्च नहीं आता है, सभी व्यवस्था बाबा के ट्रस्ट द्वारा फ्री की जाती है।
हटाएंSahi hI sab
जवाब देंहटाएं4 sal pahile ka thik hoga kya khLi hat me baki raha gaya
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