सीकर/दांतारामगढ़। सरकार शिक्षा पर करोड़ों रूपयों खर्च कर रही है। जगह-जगह स्कूल खोल रखे हैं। शिक्षकों को हर माह मोटी तनख्वाह दी जा रही है। एक भी बच्चे को शिक्षा से वंचित नहीं रखने के प्रयास हो रहे हैं।
प्रयास किस कदर किए जा रहे हैं, इसका अंदाजा दांतारामगढ़ के पास गांव गौरिया-भारीजा के एक परिवार को देख सहज लगाया जा सकता है। यहां के मंगला बावरिया व उसकी पत्नी सामरी के 21 बेटे-बेटी हैं।
पोते-पोतियों की संख्या मिलाने पर परिवार में सदस्यों की संख्या तीस से अधिक पहुंचती है। मगर विडम्बना है कि सारे सदस्य निरक्षर हैं। शिक्षा का उजाला इस परिवार तक चार दशक में भी नहीं पहुंच पाया।
परिवार का कोई भी सदस्य ना खुद कभी स्कूल गया और ना ही इन्हें कोई पढ़ाने यहां आया। मंगला के बच्चे गांव के सरकारी स्कूल के पास से रोज पानी लेकर आते हैं, मगर इन्हें कभी किसी ने स्कूल की राह नहीं बताई।
ना ही पढ़ने का जज्बा पैदा किया। यह परिवार सदस्यों की संख्या के लिहाज से संभवतया सीकर जिले का सबसे बड़ा परिवार है। -
प्रयास किस कदर किए जा रहे हैं, इसका अंदाजा दांतारामगढ़ के पास गांव गौरिया-भारीजा के एक परिवार को देख सहज लगाया जा सकता है। यहां के मंगला बावरिया व उसकी पत्नी सामरी के 21 बेटे-बेटी हैं।
पोते-पोतियों की संख्या मिलाने पर परिवार में सदस्यों की संख्या तीस से अधिक पहुंचती है। मगर विडम्बना है कि सारे सदस्य निरक्षर हैं। शिक्षा का उजाला इस परिवार तक चार दशक में भी नहीं पहुंच पाया।
परिवार का कोई भी सदस्य ना खुद कभी स्कूल गया और ना ही इन्हें कोई पढ़ाने यहां आया। मंगला के बच्चे गांव के सरकारी स्कूल के पास से रोज पानी लेकर आते हैं, मगर इन्हें कभी किसी ने स्कूल की राह नहीं बताई।
ना ही पढ़ने का जज्बा पैदा किया। यह परिवार सदस्यों की संख्या के लिहाज से संभवतया सीकर जिले का सबसे बड़ा परिवार है। -
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