सोमवार, 9 जून 2014

बाड़मेर निर्जला एकादशी पर शहर मे हुआ दान -पुण्य

बाड़मेर निर्जला एकादशी पर शहर मे हुआ दान -पुण्य
 छगन सिंह चौहान द्वारा 
 

Photo - निर्जला एकादशी व्रत की महिमा
बाड़मेर . निर्जला एकादशी पर सोमवार को बाड़मेर शहर में अनेक आयोजन हुये। लोग दिनभर भगवान की आराधना और दान पुण्य के कार्यों में लगे रहें। बादमेर शहर के मुख्य मार्गो पर समाज सेवी संस्थाओं द्वारा जल और ज्यूस आदि पिलाया गया । लोगो ने निर्जला एकादशी पर आम, शक्कर के ओले,मटकी, पंखी, ठंडा जल और अन्य पेय पदार्थो का दान किया । निर्जला एकादशी आज, दिन भर चला दान पुण्य और बाड़मेर के कई मंदिरो में दिनभर भजन कीर्तन चला ।



निर्जला एकादशी व्रत की महिमा
 

आज निर्जला एकादशी व्रत है। हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत को महत्वपूर्ण माना गया है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती हैं। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। निर्जला एकादशी को सबसे पुण्यदायिनी माना गया है। इस दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत करने का विधान हैइस एकादशी पर बिना जल के रहकर उपवास करना होता है, इसी वजह से इस एकादशी का नाम निर्जला एकादशी पड़ा है। कहते हैं यह व्रत काफी कठिन और सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला माना गया है।कहते हैं इस दिन सुबह उठकर दांतों को साफ करने के लिए ब्रश-पेस्ट की जगह दातून का इस्तेमाल करना चाहिए। नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की मन से पूजा-अर्चना करें। भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करें। चूंकि, इस दिन तुलसी तोड़ना सही नहीं माना जाता, इसलिए आप एक दिन पहले ही सूर्य डूबने से पहले 108 दल तोड़कर रख लें और एकादशी के दिन यह भगवान पर चढ़ाएं।मन में किसी के लिए भी क्लेश न आने दें और अपने मन को पवित्र रखने की भरसक कोशिश करें। रात्रि में भगवान की पूजा-अर्चना के बाद ही सोएं। सुबह उठकर सर्वप्रथम नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान की पूजा-अर्चना करें। इसके बाद शर्बत से भरे बर्तन, मिश्री और खरबूजा, आम, पंखा, मिष्ठान्न आदि चीजों का दान करना चाहिए।दान के बाद मुंह में सर्वप्रथम तुलसी का दल लेकर फिर पानी पीएं और इसके बाद भोजन करना चाहिए। कहते हैं विधि-विधान के अनुसार जो यह व्रत करता है उसे साल भर के एकादशी जितना पुण्य मिल जाता है। यह व्रत अक्षय पुण्य देने वाला और सभी इच्छाओं की पूर्ति करता है यह।मांसाहार वालों के लिए इस दिन से एक दिन पहले और एक दिन बाद ऐसे भोजन का सेवन साफ वर्जित है। यहां तक कि मान्यता के अनुसाल लोग एक दिन पहले चावल तक खाना छोड़ देते हैं, ताकि शरीर में इस आनाज के दाने को कोई अंश न रह जाए।नर्जला एकादशी के पीछे महाभारत से जुड़ी एक कहानी प्रचलित है। बात उन दिनों की है, जब ऋषि वेदव्यास अपने आश्रम में पांडवों को शिक्षा-दीक्षा दे रहे थे। एक दिन मुनिवर एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। पांडव उनकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे, लेकिन...इन बातों में भीम का मन नहीं लग रहा था। आखिरकार, इन बातों पर अपनी उदासी जताते हुए उन्होंने ऋषि से कहा कि एक माह में दो एकादशी आती है औऱ मैं दो दिन तो क्या एक समय भी बिना भोजन ग्रहण किए रह ही नहीं सकता। तो बताएं मुनिवर कि क्या एकादशी के पुण्य से वंचित रह जाऊंगा।

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