इंसान में कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो वह किसी भी काम को अंजाम तक पहुंचा सकता है कुछ इसी तरह की मिशाल मध्यप्रदेश के बडवानी जिले के निवाली विकासखंड के गुमडिया खुर्द के पर्वत पुरूष ज्ञान सिंह ने पेश की जिन्होंने स्वयं और ग्रामीणों के श््रमदान से पहाड को काटकर तीन किलोमीटर का रास्ता बना दिया। 50 वर्षीय ज्ञान सिंह के भागीरथी प्रयासों के चलते गुमडिया खुर्द के पहाड पर बसे मेल फलिया से गुराडपानी फलिया के पहाडी घुमावदार क्षेत्र में तीन वर्ष के श््रमदान से करीब तीन किलोमीटर की क च्ची सडक निर्मित कर ग्रामीणों ने विभिन्न समस्याओं से मुक्ति पा ली है। बिहार के पर्वत पुरूष दशरथ मांझी की बीमार पत्नि ने 70 किलोमीटरदूर चिकित्सक होने के चलते उपचार न मिलने की वजह से दम तोड़ दिया था। इस पीडा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने 22 वर्ष की अथक मेहनत से पहाड में रास्ता काट कर गंतव्य की दूरी नाम मात्र को कर दी थी।
ज्ञान सिंह की प्रेरणा स्त्रोत उनकी चोट थी। वे बताते हैं कि करीब चार वर्ष पूर्व खेत में काम करने के दौरान उनके पेट में बैल ने सींग मार दी। तब ग्रामीणों ने कोई साधन न होने से उन्हें कपडे की झोली में टांग कर अस्पताल पहुंचाया था। ज्ञान सिंह ने कहा, यही बात मुझे चुभ गई और मैंने निश्चय कर लिया कि पहाड काटकर रास्ता बनाएंगे ताकि वाहन अथवा बैलगाडी इस पर चल सके और किसी बीमार को उनकी तरह परेशानी न हो। वे पारम्परिक औजारों से ग्रामीणों की कौतूहल और अविश्वास भरी नजरों के बीच पहाड़ से रास्ता बनाने में जुट गए। पहले वर्ष वे अकेले ही काम करते रहे बाद में उनकी पत्नि सालूबाई भी उनका साथ देने आ जुटीं।
काम की धीमी गति के चलते कई बार वे हतोत्साहित हुए लेकिन ध्येय प्राप्ति और पत्नि की हिम्मत बढाने के चलते वे अडिग रहे। दूसरे वर्ष कुछ ग्रामीण भी उनकी मदद के लिए आगे आए और उन्होंने काफी लम्बा रास्ता तय कर लिया। इस वर्ष जन अभियान परिषद् के सदस्यों की नजर ज्ञान सिंह के काम पर पड़ी और उन्होंने ग्रामीणों को संगठित कर ढास प्रथा के माध्यम से सड़क बनाने के लिए प्रेरित किया। इसके चलते करीब 70 से 80 ग्रामीण महीने में 10 से 15 दिन श््रमदान करने लगे। ज्ञान सिंह ने बताया कि मेल फलिया की पहाड़ी जहाँ उनका 35 अन्य परिवारों के साथ घर है उस समय गुलजार हो गई जब उनके पुत्र और पुत्री के विवाह में तीन टैंकर पानी ट्रेक्टरों की मदद से पहुँच गया।
परिषद् के जिला समन्वयक विजय शर्मा ने बताया कि इतने लम्बे पहाड़ी मार्ग को निर्मित करने का पूरा श््रेय ज्ञान सिंह को जाता है। परिषद् ने इस वर्ष आदिवासी क्षेत्र में प्रचलित ढास प्रथा का सहारा लेकर सडक निर्माण कराया। हालांकि आम तौर पर इसके तहत एक गाँव के ग्रामीण सम्मिलित होकर किसी एक व्यक्ति के लिए काम कर उसका सहयोग करते हैं। इसमें उसका मकान कुआं बनाने से लेकर खेत की जुताई बोवनी और कटाई अदि कार्य शामिल हैं। उन्होंने बताया कि ज्ञान सिंह और अन्य ग्रामीण अब इस मार्ग को श््रमदान से आठ किलोमीटर दूर नाले तक बढाना चाहते हैं।
गर्व से भरे ज्ञान सिंह के भाई आशाराम ने बताया कि जहाँ पैदल चलना मुश्किल होता था अब वहां दुपहिया वाहन, ट्रैक्टर और जीप आसानी से पहुँच जाते हैं। एक अन्य ग्रामीण कैलाश आर्य ने बताया कि बिना किसी सरकारी मदद के तैयार हुआ मार्ग न केवल रोगियों को आसानी से अस्पताल और बच्चों को स्कूल पहुंचाने में मददगार सिद्ध हो रहा है बल्कि पहाडी के नीचे स्थित खेतों से पहाड पर बने मकानों तक कृषि उपज तथा अन्य वस्तुएं भी लाना ले जाना आसान हो गया है। उल्लेखनीय है कि निवाली विकासखंड के मोजाला ग्राम में भी गतवर्ष ग्रामीणों ने श््रमदान से पहाड काट कर करीब 200 फीट लम्बा मार्ग बनाया था।
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