वे महीने में एक बार अपवित्र हो जाती हैं!
"मैं अब अपनी बेटियों को चौपदी के लिए नहीं भेजूंगी।" 22 साल की मुना देवी सौद पश्मिची नेपाल के अछम जिले के एक गांव में अपने घर की देहरी पर यह बात जोर देते हुए कहती हैं। उनका गांव लेगुड्सेन अछम की पहाड़ियों की तलहटी में बसी एक छोटी बस्ती की तरह है। इस तरह के सुदूर इलाकों में चौपदी की प्रथा सदियों से चली आ रही है। नेपाल के शहरों में भी या बाहरी दुनिया में इस लफ़्ज़ के बारे में ज्यादा जानकारी शायद ही किसी को होगी। धुना देवी को माहवारी के वक्त घर से बाहर वाले कमरे में सोने में दिक्कत होती है, क्योंकि वहां बहुत ठंड रहती है। तंग कमरे में कोई खिड़की तक नहीं है, एक छोटा सा दरवाजा है और इतनी-सी जगह जिसमें बमुश्किल एक बिस्तर आ पाए। आइए, जानते हैं इस प्रथा के बारे में।
लेगुड्सेन जैसे इलाकों में महिलाओं को माहवारी के दौरान घरों में जाने की इजाजत नहीं दी जाती। उन्हें मंदिरों से भी दूर रहने के लिए कहा जाता है। वह पानी के सार्वजनिक स्रोतों का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं, जानवरों का चारा भी नहीं छू सकतीं, शादी जैसे सामाजिक उत्सवों में शरीक नहीं हो सकतीं।
ये रिवाज यहीं खत्म नहीं होते। माहवारी वाली महिलाओं को जो व्यक्ति खाना देता है, वह भी इस बात का ख्याल रखता है कि भोजन तक का उसे स्पर्श न हो। माहवारी वाली महिलाओं को घर के भीतर सोने की इजाजत नहीं दी जाती। इसके बदले उन्हें घर के बाहर अमानवीय परिस्थितियों में रहना पड़ता है। नेपाल के सुदूर पश्चिमी इलाकों में कमोबेश हर जगह ऐसे ही हालात हैं।
वे महीने में एक बार अपवित्र हो जाती हैं!
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस जैसे किसी आयोजन के बारे में यहां की महिलाओं ने शायद ही सुना होगा। हालांकि, इन महिलाओं को परिवार, संस्कृति, समुदाय और ईश्वर के भय के बारे में ज़रूर मालूम है और इसी वजह से वे इस परंपरा को तोड़ने से हिचकती रही हैं। भले ही महिलाएं चौपदी को नापसंद करती हों, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने इस परंपरा को अपनी जिंदगी के एक हिस्से के तौर पर अपनाया हुआ है।
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