मंगलवार, 25 मार्च 2014

एक विवाह ऎसा भी: यहां होते है शादी से पहले बच्चे

वापी। संस्कारों के बिना समाज अधूरा है। किसी भी जाति-समाज मे सभ्यता के मानदंड भी संस्कारों के बिना पूरे नहीं होते। यदि विवाह का खर्च उठाने का सामथ्र्य न हो तब भी युवा साथ रहकर प्राकृतिक आचरण करते हैं, लेकिन सभ्यता का तकाजा है कि वे अंततोगत्वा विवाह अवश्य करें।
यही कारण है कि दक्षिण गुजरात के कई गांवों में आदिवासी समाज के लोग कई वर्षो तक बिना विवाह साथ रहते तो हैं, मगर बिना विवाह सांसारिक जीवन अधूरा मानते हैं।

इसी अधूरेपन को संपूर्ण करने के लिए सोमवार को तुतरखेड़ गांव में आयोजित सामूहिक विवाह मे 101 ऎसे आदिवासी जोड़ों ने विवाह किया जो कई साल से साथ रह रहे थे और कई बच्चों के माता-पिता बन चुके हैं।

सबसे दिलचस्प यह है कि इनमें से कई ऎसे लोग थे जो खुद तो विवाह कर ही रहे थे, उसी मंडप के नीचे उनके बेटों का विवाह भी हो रहा था। शायद ही कोई दुल्हन ऎसी रही हो, जिसकी गोद में संतान न खेल रही हो। सामूहिक विवाह में 30 से लेकर 50 साल तक के लोगों ने विवाह किया।

वलसाड़ जिले के धरमपुर तालुका के तुतरखेड़ गांव में यह अनोखा विवाह आयोजन सोमवार को हुआ। महाराष्ट्र की सीमा से सटे इस गांव में विकास कार्य या उसकी बातें बेमानी है। अधिकांश आबादी कुंआरी है। यह लोग शादी तो करना चाहते हैं, मगर वैवाहिक खर्च वहन करने में अक्षम हैं।

उनकी इस परेशानी को दूर करने के लिए चंपक भाई और नाबटुक भाई मोवलिया और उनके मित्र मंडल की ओर पंचायत के सहयोग से सामूहिक विवाह का आयोजन किया गया था, जिसमें 101 जोड़ों ने हिन्दू विधि से वैवाहिक रस्मों को पूरा कर विधिवत सांसारिक जीवन मे प्रवेश किया। इस बारे मे सरपंच केशव जादव का कहना है कि यह मान्यता है कि बिना शादी के मर जाने पर मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती।

बिना शादी के संसार तो शुरू हो जाता है, मगर शादी की रस्म अदा करने की इच्छा मन में हमेशा रहती है। इसके लिए जागरूकता की जरूरत पर बल देते हुए सरपंच ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा सामाजिक संस्थाएं इस विस्तार में पहुंचकर यदि मदद करे तो आने वाले समय मे दिक्कत कम हो सकती है। 101 जोड़ों को आयोजक मंडल की तरफ जीवन जरूरी वस्तुएं भी भेंट स्वरूप प्रदान की गई। -  

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