न्यूयार्क। कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ सबूत लाओ और 20 हजार डालर ईनाम पाओ, ये कोई जुमला या मजाक नहीं बल्कि हकीकत है। सिख विरोधी दंगों के लिए अमरीका की न्यूयार्क अदालत में केस लड़ रही संस्था सिख्स फॉर जस्टिस ने सोनिया के खिलाफ सबूत देने वाले को यह ईनाम देने की घोषणा की है। संस्था ने कुछ समाचार पत्रों में बाकायदा विज्ञापन छपवाया है। सूत्र बताते हैं कि कोर्ट में सोनिया के खिलाफ चल रहा मुकदमा खारिज हो सकता है क्योंकि संस्था अब तक यह साबित नहीं कर पा रही है कि उन्होंने सोनिया गांधी को कोर्ट समन भिजवा दिए थे।
संस्था के वकील गुरपतवंत पानुन का कहना है कि सोनिया के खिलाफ चल रहे केस में उनके इस दावे का महत्व है कयोंकि जब उनको समन दिए गए थे तब वह सितंबर माह में अमरीका में थीं ही नहीं। इसलिए हमने ईनाम की घोषणा की है। इस ईनाम के जरिए इस रहस्य से पर्दा उठ सकेगा कि सोनिया गांधी सितंबर में अमरीका में थी ही नहीं।
पानुन का कहना है कि हमने सोनिया के न्यूयार्क के एक अस्पताल में ईलाज के लिए आने की खबर भारतीय अखबारों में पढ़ी थी इसी आधार पर अस्पताल पहुंचे थे और समन भीतर पहुंचाया था। हमने उन्हें देखा नहीं था। संस्था ने न्यूयार्क के एक अखबार एएम न्यूयार्क में एक विज्ञापन दिया है। इस विज्ञापन में सोनिया गांधी की तस्वीर भी छपी है और नीचे लिखा गया है कि अगर आपने सोनिया गांधी को सितंबर 2, 2013 में और सितंबर 9, 2013 के बीच अमरीका में देखा है और आप अमरीकी अदालत में न्यायाधीश के सामने इस बात की गवाही दे दें तो 20 हजार डालर यानी 12 लाख रूपए ईनाम दिया जाएगा।
मालूम हो कि इस केस में सोनिया गांधी ने बीते साल 28 दिसंबर को अपनी पार्टी के लैटरपैड पर एक पत्र लिख कर अपने वकील के जरिए मामले के देख रहे जज को भेजा था। जिसमें कहा गया था कि मैं साल 2013 के सितंबर माह की 2 और 9 तारीख के बीच न्यूयार्क में मौजूद नहीं थी, मुझे किसी तरह का कोर्ट का समन नहीं दिया गया। इसी पत्र के आधार पर सोनिया गांधी ने के वकील ने बीते 2 जनवरी को कोर्ट से मामला खत्म किए जाने की अपील की थी। उधर, संस्था का कहना है कि महज एक पत्र लिख देने भर से यह साबित नहीं हो जाता कि वे अमरीका में नहीं थीं। सोनिया गांधी को कोर्ट में हलफिया बयान दर्ज कराना चाहिए।
मालूम हो कि अमरीकी कानून के तहत में केस दर्ज कराने वाले को संबंधित तक अदालती समन पहुंचाना होता है। यह केस संस्था और 1984 के दंगा पीडित मोहिंदर और जसबीर द्वारा दायर किया गया था।
संस्था के वकील गुरपतवंत पानुन का कहना है कि सोनिया के खिलाफ चल रहे केस में उनके इस दावे का महत्व है कयोंकि जब उनको समन दिए गए थे तब वह सितंबर माह में अमरीका में थीं ही नहीं। इसलिए हमने ईनाम की घोषणा की है। इस ईनाम के जरिए इस रहस्य से पर्दा उठ सकेगा कि सोनिया गांधी सितंबर में अमरीका में थी ही नहीं।
पानुन का कहना है कि हमने सोनिया के न्यूयार्क के एक अस्पताल में ईलाज के लिए आने की खबर भारतीय अखबारों में पढ़ी थी इसी आधार पर अस्पताल पहुंचे थे और समन भीतर पहुंचाया था। हमने उन्हें देखा नहीं था। संस्था ने न्यूयार्क के एक अखबार एएम न्यूयार्क में एक विज्ञापन दिया है। इस विज्ञापन में सोनिया गांधी की तस्वीर भी छपी है और नीचे लिखा गया है कि अगर आपने सोनिया गांधी को सितंबर 2, 2013 में और सितंबर 9, 2013 के बीच अमरीका में देखा है और आप अमरीकी अदालत में न्यायाधीश के सामने इस बात की गवाही दे दें तो 20 हजार डालर यानी 12 लाख रूपए ईनाम दिया जाएगा।
मालूम हो कि इस केस में सोनिया गांधी ने बीते साल 28 दिसंबर को अपनी पार्टी के लैटरपैड पर एक पत्र लिख कर अपने वकील के जरिए मामले के देख रहे जज को भेजा था। जिसमें कहा गया था कि मैं साल 2013 के सितंबर माह की 2 और 9 तारीख के बीच न्यूयार्क में मौजूद नहीं थी, मुझे किसी तरह का कोर्ट का समन नहीं दिया गया। इसी पत्र के आधार पर सोनिया गांधी ने के वकील ने बीते 2 जनवरी को कोर्ट से मामला खत्म किए जाने की अपील की थी। उधर, संस्था का कहना है कि महज एक पत्र लिख देने भर से यह साबित नहीं हो जाता कि वे अमरीका में नहीं थीं। सोनिया गांधी को कोर्ट में हलफिया बयान दर्ज कराना चाहिए।
मालूम हो कि अमरीकी कानून के तहत में केस दर्ज कराने वाले को संबंधित तक अदालती समन पहुंचाना होता है। यह केस संस्था और 1984 के दंगा पीडित मोहिंदर और जसबीर द्वारा दायर किया गया था।
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