अगर शिवकर लिग्नाइट परियोजना के लिए भूमी की आवप्ती होती है तो ये देश की सबसे महँगी अवप्ती होगी.
ज़मीन के भाव ज़्यादा होने के कारण आरएसएमएमएल की उक्त परियोजना की आर्थिक व्यावहारिकता पर प्रश्नचिन्ह.
परियोजना से निकाले जाने वाले लिग्नाइट की कीमत होगी बिजली की कीमत से चार गुना ज़्यादा.
केंद्रीय सरकार द्वारा पारित नए भूमि अधिग्रहण क़ानून "भूमि अर्जन पुनर्वास एवम् पुनर्स्थापन मे उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम, 2013" की सार्थकता पिछली कुछ दिनो से बाड़मेर के बाड़मेर आगोरे, आदर्श आगोर, कडला, महाबार, शिवकर, अजबनगर किसानो एवम् परियोजना के कारण भूमिधारकों के अलावा अन्य प्रभावित व्यक्तियों के चेहरों पर देखी जा सकती है. गत दो सालों से बाड़मेर शहर के नज़दीक के 7 गावों की कुल 4744 बीघा ख़ातेदारी की भूमि को बहुचर्चित ‘शीवकार लिग्नाइट परियोजना’ के लिए अधिग्रहित किए जाने क लिए कार्यवाही चल रही थी. किसान इस बेशक़ीमती भूमि को छोड़ने के लिए किसान राज़ी नही थे इसी क्रम मे किसानो ने आमजन के अधिकारों क लिए काम करने वाली अग्रणी संस्था लीगलमित्र के साथ अक्टूबर 2012 मे धारणा प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया था. इसी क्रम मे दिनाक 18-11-13 को भूमि अधिग्रहण अधिकारी(आरएसएमएमएल) ने परियोजना के लिए धारा 9 भूमि अधिग्रहण अधिनीयम, 1894 क तहेट नोटीस जारी किए थे तभी से किसानो मे भूमि के अधिग्रहित होने के चिंता सॉफ देखी जा सकती थी. लेकिन नया साल परियोजना से प्रभावित भूमि धारकों, किसानो वा अन्य प्रभावित व्यकतीयो के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए नए क़ानून के रूप मे खुशियो की सौगात ले कर आया. नए क़ानून के एक जनवरी से लागू होते ही किसानो की चिंता काफूर हो गई है. अब किसानो को भूमि जाने का दर नही है क्योंकि नए क़ानून के तहत यदि आरएसएमएमएल इस भूमि का अधिग्रहण करती है तो ये भूमि देश की सबसे महँगी परियोजना साबित होगी जिसमे प्रथम फेज़ के अधिग्रहण क लिए करीब 50,000 करोड रूपयो की आवश्यकता पड़ेगी.
लीगलमित्र संस्था के सचिव रितेश शर्मा जिन्होने इस परियोजना की वैधता को शुरुआत मे ही चुनौती दी थी तथा जिन्होने परियोजना से प्रभावित लोगो के साथ कंधे से कंधा मिला कर इस परियोज्न का विरोध किया था ने बताया की “ नए भूमि अधिग्रहण क़ानून मे भूमि धारकों के साथ अन्य प्रभावित व्यक्तियों को भी शामिल किया जाना प्रस्तावित है जिसके लिए सामाजिक सर्वेक्षण कराया जाकर ही इस भूमि को अधिग्रहित किया जा सकता है. उन्होने यह भी बताया की भूमि अधिग्रहण अधिकारी ने जो धारा 9 (पुराने क़ानून की) मे कार्यवाही की है उस कार्यवाही से किसानो के अधिकारों पर कोई प्रभाव नही पड़ता क्योकि नए क़ानून के आस्तित्व मे आने से परियोजना मे दिया जाने वाला प्रतिकर नए क़ानून के अनुसार दिया जाना चाहिए."
परियोजना से प्रभावित स्वरूप सिंग आगोर ने बताया की "देश मे नए भूमि अधिग्रहण क़ानून लागू होने के बाद इस परियोजना की आर्थिक उपयोगिता समाप्त हो गई है क्योंकि भूमि अधिग्रहण के लिए नए क़ानून की तहत बाजार भाव से चार गुना तक ज़्यादा प्रतिकार दिया जाना प्रस्तावित है इस प्रकार से अधिग्रहण से प्रभावित भूमि मे अधिकतम डी एल सी 25,20,484.00 रुपये है तथा एस डी एम की रिपोर्ट के अनुसार भूमि की बाजार भाव डी एल सी से दस गुना से भी ज़्यादा है ओर नए क़ानून मे बाजार भाव से चार गुना तक प्रतिकार दिया जाना प्रस्तावित है इस प्रकार प्रत्येक बीघा 10,08,19,360.00 रुपये प्रतिकार बनता है जिसकी माँग हम रखेंगे".
लीगल मित्र के बाड़मेर के परियोजना अधिकारी विक्रम सिंग तारातरा ने परियोजना के तहत बिना सामाजिक सर्वेक्षण तथा परियोजना का पर्यावरण पर प्रभाव के बाबत रिपोर्ट नही आने तक अधिग्रहण की कार्यवाही रोके जाने की माँग की तथा ऐसा नही करने पर पुनः आंदोलन करने की चेतावनी दी.
पत्रकारों से बात करते हुए परियोजना से प्रभावित व्यक्तियों दुर्जन सिंग, सोहन सींग, शंभू सिंग, झल्ला राम भील, केवल चंद मेघवाल, देवराम मेघवाल, पदम सिंग शीवकार, मनसाराम, हाजराराम, छगनसिंग, इमाम ख़ान, पदम सिंग कुद्ला, रवीन्द्र सिंग, वीर सिंग, पन्ने सिंग, उत्तम सिंग, जोगराज सिंग, जसवंत सिंग, दचेला राम मेघवाल, पप सिंग, गंभीर सिंग आदि लोगो ने परियोजना का विरोध करते हुए किसी भी कीमत पर ज़मीन नही देने की बात कही.
कुछ भी हो भूमि अधिग्रहण का ये मामला दिलचस्प होता जा रहा है ओर ऐसा लगता है की आरएसएमएमएल के लिए इस भूमि का अधिग्रहण करना नाको चने चबाने से कम नही होगा.
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