बुधवार, 22 जनवरी 2014

वीरता पुरस्कार का हकदार कौन?

बाड़मेर।छह वर्ष पहले गुर्जर आरक्षण आंदोलन के दौरान बूंदी जिले में शहीद हुए बाड़मेर जिले के कांस्टेबल बाबूलाल के वीरता पुरस्कार को लेकर शहीद की पत्नी व माता-पिता के बीच ठन गई है। पांच दिन बाद गणतंत्र दिवस पर राज्यपाल के हाथों यह पुरस्कार दिया जाना है। बाबूलाल के दस्तावेजों में उनकी पत्नी मालूदेवी नॉमिनी (नामित) है, लेकिन उसका दूसरा विवाह हो जाने के कारण वीरता पुरस्कार पर शहीद के माता-पिता हक जता रहे हैं।

राजस्थान पुलिस में कार्यरत बाड़मेर जिले के चौखोणियों की ढाणी भीमडा निवासी कांस्टेबल बाबूलाल पुत्र जैसाराम 29 मई 2007 को गुर्जर आरक्षण आंदोलन में बूंदी जिले में डयूटी के दौरान शहीद हो गया।

तत्पश्चात बाबूलाल की पत्नी मालूदेवी को जोधपुर जिला ग्रामीण पुलिस अधीक्षक कार्यालय में कनिष्ठ लिपिक के पद पर अनुकम्पात्मक नियुक्ति मिली। बाबूलाल व मालूदेवी के एक पुत्री थी, जिसकी मृत्यु हो गई। फिलहाल बाड़मेर के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में कार्यरत मालूदेवी ने नौकरी मिलने के बाद एक बार फिर घर बसाया। पुनर्विवाह के पश्चात उसे फिर से मातृत्व सुख मिला है। उसे ढाई माह का पुत्र है।


उधर शहीद बाबूलाल के पिता जैसाराम का आरोप है कि मालूदेवी ने दूसरा विवाह करने के पश्चात उनसे नाता तोड़ दिया है। वह उनका भरण पोषण नहीं कर रही है। साथ ही शहीद को मरणोपरान्त मिलने वाले पुरस्कार व अन्य भत्तों का अकेले ही उपयोग व उपभोग कर रही है।



इधर, मालूदेवी ने इस तरह के सभी आरोपों को नकारते हुए बताया कि बाबूलाल के शहीद होने के पांच वर्ष बाद उसने पुन: घर बसाया। इस दौरान वह ससुराल में पूरे परिवार के साथ ही रही। यह तो वही जानती है कि इन पांच वर्षाें में उसका जीवन किस तरह चला।

हम भी हैं हकदार


बाबूलाल हमारा पुत्र था। उसकी पत्नी मालूदेवी ने दूसरा विवाह कर लिया। उसकी नौकरी लग गई। हमने पुत्र खो दिया, पुत्रवधु भी चली गई। हमारे पास बाबूलाल की यादों के अलावा क्या रहा? माता-पिता होने के नाते वीरता पुरस्कार व परिलाभों के हम भी हकदार हैं। यह पुरस्कार व परिलाभ बाबूलाल की पत्नी को अकेले ही नहीं मिलने चाहिए।
-जैसाराम व नखतूदेवी
(शहीद के पिता-माता)


कानून व समाज जैसा कहे


इस मामले में कानून व समाज जो भी कहे, मैं वह करने के लिए तैयार हूं। मैंने एस पी साहब से कहा कि यदि विवाद की स्थिति है तो मैं पुरस्कार लेने नहीं जाऊंगी। लेकिन साहब ने कहा कि आपको जाना है। मैं तो यह चाहती हूं कि शहीद का सम्मान होना चाहिए, उसका नाम रहना चाहिए। पुरस्कार मिल जाए, उसके बाद पुलिस के आला अधिकारी व समाज के लोग जो कहेंगे, उसे मान लूंगी।
-मालूदेवी
(शहीद बाबूलाल की वीरांगना)
नॉमिनी ही हकदार
शहीद कांस्टेबल बाबूलाल के दस्तावेजों में नॉमिनी के रूप में उनकी पत्नी मालूदेवी का नाम है। जहां तक मुझे नियमों की जानकारी है, उसके अनुसार पुरस्कार व परिलाभ पर नॉमिनी का हक बनता है। गणतंत्र दिवस पर शहीद बाबूलाल को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है, जिसे मालूदेवी ग्रहण करेंगी। शहीद के माता-पिता मुझसे मिले थे, उनके पक्ष का विधिक परीक्षण करवाने के निर्देश दिए गए हैं।
-हेमन्त शर्मा,
पुलिस अधीक्षक बाड़मेर

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