बुधवार, 6 नवंबर 2013

"पत्नी से सेक्स ना करना अत्याचार के बराबर"

मुबंई। पत्नी से सेक्स ना करना और उससे चरित्र पर शक करना अत्याचार के बराबर है। यह टिप्पणी मुंबई की स्थानीय कोर्ट ने 27 वर्षीय महिला को पति से तलाक लेने की अनुमति देते हुए की। अदालत ने कहा कि प्रतिवादी को कोई अधिकार नहीं है कि वह याचिकाकर्ता को शारीरिक संबंध बनाने से वंचित रखे या उसके चरित्र पर शक करे। ऎसा व्यवहार अत्याचार कहलाए जाने के काबिल है।
कोर्ट ने पाया कि दोनों शादी से पहले प्यार करते थे लेकिन शादी के बाद यह प्यार खत्म हो गया, कोर्ट ने कहा कि चरित्र किसी के लिए, खास तौर से महिलाओं के लिए सबसे अहम होता है, बिना वजह किसी के चरित्र पर शक किया जाए तो कोई बर्दाश्त नहीं करेगा।

अदालत ने 33 वर्षीय शख्स को महिला को 3 लाख रूपए बतौर गुजारा भत्ता दें। दोनों की फरवरी 2009 में शादी हुई थी। शादी से पहले दोनों दो साल तक रिलेशनशिप में थे।

फरवरी 2012 में महिला ने तलाक के लिए याचिका डाली। महिला ने आरोप लगाया कि शादी पूरी होने के बाद उसके पिता ने उनके लिए जिस कमरे का इंतजाम किया था, उस पर ससुराल वालों ने कब्जा कर लिया। इस कमरे की व्यवस्था उसके पिता ने सुहागरात के लिए की थी।

महिला ने याचिका में कहा था कि उसके पति ने शादी को स्वीकार करने से ही मना कर दिया। नौकरी जाने की वजह से वह तनाव मे में चला गया और अक्टूबर 2009 तक बेरोजगार ही रहा। पीडित महिला ने कहा कि मार्च 2010 तक हालात ऎसे ही रहे।

महिला ने अपनी सास पर आरोप लगाते हुए कहा कि वह गाली गलौज करने और बार-बार घर छोड़ने का दबाव बनाती थी। दिन-ब-दिन लेकिन हालात तब बदतर हो गए जब उसके पति ने उसके चरित्र पर शक
जाहिर किया।

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