दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा पर देश के कोने-कोने से श्रद्धालु चुम्बक की तरह गोवर्धन की ओर खिंचे चले आते हैं।
इस दिन गोवर्धन पूजा और गोवर्धन परिक्रमा का विशेष महत्व है क्योंकि यह पर्व विशुद्ध कृष्ण भक्ति का पर्व है तथा इसी दिन कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र पूजा की जगह गोवर्धन की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था तथा उन्होंने स्वयं भी गोवर्धन की पूजा की थी-“एक हाथ से पूजत हैं, एक से रहे पुजाय ।”
गर्ग संहिता का जिक्र करते हुए दानघाटी मंदिर के सेवायत आचार्य मथुरा प्रसाद कौशिक ने बताया कि जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से इन्द्र की पूजा करने की जगह गोवर्धन की पूजा करने को कहा था तो इन्द्र ने अपने संवर्तक मेघों से ब्रज को डुबोने का आदेश दिया था। उस समय इन्द्र का प्रयास इसलिए बेकार हो गया कि श्यामसुन्दर ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
उसके बाद इन्द्र को जब असलियत का पता चला तो उन्होंने श्यामसुन्दर का दुग्धाभिषेक किया था। इसीलिए गोवर्धन पूजा पर गिर्राज महाराज की परिक्रमा और धारा (दूध की धार से) परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है।
इस दिन अन्न सकड़ी का मंदिर का प्रसाद पाने का बड़ा महत्व है।
इस दिन गोवर्धन में विदेशी कृष्ण भक्त पूरी श्रद्धा के साथ गोवर्धन की पूजा के लिए झुण्ड के रुप में निकलते हैं। प्रसाद की डलिया सिर पर रखे हुए विदेशी पुरुष व महिलाएं हरगोकुल मंदिर पहुंचते हैं जहां पर ठाकुर जी का दुग्धाभिषेक कई मन दूध से कई घण्टे तक होता है।
इस दिन अपराह्न बडे़ बाजार से भी शोभा यात्रा निकलकर मुकुट मुखारबिन्द मंदिर जाती है। इस दिन दानघाटी मंदिर, मुखारबिन्द, जतीपुरा मंदिर, हरगोगुल मंदिर, मुकुट मुखारबिन्द मंदिर समेत गोवर्धन के अधिकांश मंदिरों में ठाकुर जी का दुग्धाभिषेक करने की होड़ सी लग जाती है। घरों में गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजन किया जाता है।
पुराणों के अनुसार कंस के दरबार में गोवर्धन नामक एक गोप था जो कंस का नौकर था। गोवर्धन की पत्नी बहुत अधिक कृष्णभक्त थी।
गोप के मना करने के बावजूद वह कृष्ण प्रेम में लीन रहती। जब गोप कंस के यहां जाता तो कृष्ण वहां आ जाते। वह उनका पूजन करती और कुछ समय बाद वे चले जाते। गोप को डर था कि यदि कंस को पता चल गया कि कृष्ण उसके यहां आते हैं तो उसे मार डालेगा।
उसके सभी प्रयास असफल होने के बाद एक दिन वह अपनी मां से यह कहकर चला गया कि आज कृष्ण आवें तो वे उसे चुपके से कमरे में बंद कर दें जिससे वह जब आये तो उन्हें सबक सिखा दे। वह जैसे ही गया उसके कुछ क्षण बाद ही श्रीकृष्ण गोवर्धन गोप के रुप में आ गये और गोवर्धन गोप की मां से कहा कि आज चूंकि उसके सिर में दर्द है इसलिए वह नौकरी में नहीं जायेगा।
गोवर्धन गोप की पत्नी ने माखन मिश्री का प्रसाद लगाया तो ठाकुर ने उन्हें दर्शन दिये। बाद में जब गोवर्धन गोप आया तो उसकी मां ने उसे घुसने नहीं दिया तथा लाठी और पत्थर मारकर घायल कर दिया तथा कहा कि उसका बेटा तो पहले ही आ गया है। मां से अनुनय विनय कर घायल गोवर्धन गोप जब घर में घुसा तो उसने पत्नी से श्रीकृष्ण के आने के बारे में पूछ लिया। उसकी पत्नी ने बताया कि वह श्रीकृष्ण की सच्चे मन से भक्ति करती है और उसे चाहे कितना कष्ट मिले वह कृष्णभक्ति को नहीं छोड़ सकती।
इसके बाद गोवर्धन गोप उसे मारने दौडा तो श्यामसुन्दर प्रकट हो गये। उन्होंने उससे पूछा कि वह क्या चाहता है तो उसने कहा कि जिस प्रकार उनकी ‘श्यामसुन्दर की’ पूजा होती है उसी प्रकार ब्रजवासी उससे प्रेम करें एवं उसकी ‘गोवर्धन गोप’ पूजा हो। श्रीकृष्ण ने ‘एवमस्तु’ कहकर यह कहा कि आज से गोबर का गोवर्धन गोप बनाकर सभी उसकी पूजा करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग उसकी पूजा करेंगे उसके कष्टों को वे (श्रीकृष्ण) हर लेंगे।
इस दिन देश विदेश के लाखों कृष्णभक्त गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं और अपना जीवन धन्य करते हैं तथा जो यह नहीं कर पाते हैं वे अकेले या सामूहिक रुप से गोबर के गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं।
इस दिन गोवर्धन पूजा और गोवर्धन परिक्रमा का विशेष महत्व है क्योंकि यह पर्व विशुद्ध कृष्ण भक्ति का पर्व है तथा इसी दिन कृष्ण ने ब्रजवासियों को इन्द्र पूजा की जगह गोवर्धन की पूजा करने के लिए प्रेरित किया था तथा उन्होंने स्वयं भी गोवर्धन की पूजा की थी-“एक हाथ से पूजत हैं, एक से रहे पुजाय ।”
गर्ग संहिता का जिक्र करते हुए दानघाटी मंदिर के सेवायत आचार्य मथुरा प्रसाद कौशिक ने बताया कि जब श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों से इन्द्र की पूजा करने की जगह गोवर्धन की पूजा करने को कहा था तो इन्द्र ने अपने संवर्तक मेघों से ब्रज को डुबोने का आदेश दिया था। उस समय इन्द्र का प्रयास इसलिए बेकार हो गया कि श्यामसुन्दर ने अपनी सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
उसके बाद इन्द्र को जब असलियत का पता चला तो उन्होंने श्यामसुन्दर का दुग्धाभिषेक किया था। इसीलिए गोवर्धन पूजा पर गिर्राज महाराज की परिक्रमा और धारा (दूध की धार से) परिक्रमा करने की होड़ लग जाती है।
इस दिन अन्न सकड़ी का मंदिर का प्रसाद पाने का बड़ा महत्व है।
इस दिन गोवर्धन में विदेशी कृष्ण भक्त पूरी श्रद्धा के साथ गोवर्धन की पूजा के लिए झुण्ड के रुप में निकलते हैं। प्रसाद की डलिया सिर पर रखे हुए विदेशी पुरुष व महिलाएं हरगोकुल मंदिर पहुंचते हैं जहां पर ठाकुर जी का दुग्धाभिषेक कई मन दूध से कई घण्टे तक होता है।
इस दिन अपराह्न बडे़ बाजार से भी शोभा यात्रा निकलकर मुकुट मुखारबिन्द मंदिर जाती है। इस दिन दानघाटी मंदिर, मुखारबिन्द, जतीपुरा मंदिर, हरगोगुल मंदिर, मुकुट मुखारबिन्द मंदिर समेत गोवर्धन के अधिकांश मंदिरों में ठाकुर जी का दुग्धाभिषेक करने की होड़ सी लग जाती है। घरों में गोबर के गोवर्धन बनाकर पूजन किया जाता है।
पुराणों के अनुसार कंस के दरबार में गोवर्धन नामक एक गोप था जो कंस का नौकर था। गोवर्धन की पत्नी बहुत अधिक कृष्णभक्त थी।
गोप के मना करने के बावजूद वह कृष्ण प्रेम में लीन रहती। जब गोप कंस के यहां जाता तो कृष्ण वहां आ जाते। वह उनका पूजन करती और कुछ समय बाद वे चले जाते। गोप को डर था कि यदि कंस को पता चल गया कि कृष्ण उसके यहां आते हैं तो उसे मार डालेगा।
उसके सभी प्रयास असफल होने के बाद एक दिन वह अपनी मां से यह कहकर चला गया कि आज कृष्ण आवें तो वे उसे चुपके से कमरे में बंद कर दें जिससे वह जब आये तो उन्हें सबक सिखा दे। वह जैसे ही गया उसके कुछ क्षण बाद ही श्रीकृष्ण गोवर्धन गोप के रुप में आ गये और गोवर्धन गोप की मां से कहा कि आज चूंकि उसके सिर में दर्द है इसलिए वह नौकरी में नहीं जायेगा।
गोवर्धन गोप की पत्नी ने माखन मिश्री का प्रसाद लगाया तो ठाकुर ने उन्हें दर्शन दिये। बाद में जब गोवर्धन गोप आया तो उसकी मां ने उसे घुसने नहीं दिया तथा लाठी और पत्थर मारकर घायल कर दिया तथा कहा कि उसका बेटा तो पहले ही आ गया है। मां से अनुनय विनय कर घायल गोवर्धन गोप जब घर में घुसा तो उसने पत्नी से श्रीकृष्ण के आने के बारे में पूछ लिया। उसकी पत्नी ने बताया कि वह श्रीकृष्ण की सच्चे मन से भक्ति करती है और उसे चाहे कितना कष्ट मिले वह कृष्णभक्ति को नहीं छोड़ सकती।
इसके बाद गोवर्धन गोप उसे मारने दौडा तो श्यामसुन्दर प्रकट हो गये। उन्होंने उससे पूछा कि वह क्या चाहता है तो उसने कहा कि जिस प्रकार उनकी ‘श्यामसुन्दर की’ पूजा होती है उसी प्रकार ब्रजवासी उससे प्रेम करें एवं उसकी ‘गोवर्धन गोप’ पूजा हो। श्रीकृष्ण ने ‘एवमस्तु’ कहकर यह कहा कि आज से गोबर का गोवर्धन गोप बनाकर सभी उसकी पूजा करेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग उसकी पूजा करेंगे उसके कष्टों को वे (श्रीकृष्ण) हर लेंगे।
इस दिन देश विदेश के लाखों कृष्णभक्त गोवर्धन की सप्तकोसी परिक्रमा करते हैं और अपना जीवन धन्य करते हैं तथा जो यह नहीं कर पाते हैं वे अकेले या सामूहिक रुप से गोबर के गोवर्धन बनाकर उसकी पूजा करते हैं।
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