मुंबई। एक नियोक्ता कंपनी या संस्था अपने कर्मचारी से संबंधित कोई भी निर्णय इस आधार पर नहीं कर सकती कि वह बंद कमरे में क्या कर रहा था। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से जुड़े एक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया है।
गौरतलब है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचाने के आरोप में एक कर्मचारी नौकरी से हटा दिया था। बैंक के जनरल मैनेजर बालाकृष्णन पर आरोप था कि 11-12 सिंतबर 2012 को चंडीगढ़ में होने वाली कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के बजाय बंद कमरे में दिन भर शराब पीते रहे। गेस्ट हाउस के केयर टेकर का कहना था कि जनरल मैनेजर नग्न अवस्था में कमरे में घूम रहे थे।
वन्नादिल बालाकृष्णन की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश एसजे वाजीफदार और केआर श्रीराम ने यह फैसला सुनाया। हिंदी में डॉक्टरेट बालाकृष्णन ने बैंक के फैसले को चैंलेज करते हुए कहा था कि उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में काम करने से पहले बालाकृष्णन 23 सालों तक केन्द्र सरकार के साथ जुड़े रहे। 16 नवंबर 2011 को बैंक ने एक साल के प्रोबेशन पर उन्हें सीधी नियुक्ति दी, लेकिन 1 दिसंबर 2012 को उन्हें हटा दिया गया।
एसबीआई के वकील हरिहर भावे ने अपनी दलील में बालाकृष्णन को शराबी बताया और कहा कि उन्हें बंद कमरे में नग्न अवस्था में घूमते हुए देखा गया था।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने पाया कि बैंक का निर्णय व्यक्ति की निजी और व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायाधीश वजीफदार ने कहा कि एक कर्मचारी बंद कमरे में क्या करता है? नियोक्ता इस आधार पर फैसला नहीं ले सकता।
बालाकृष्णन के वकीलों नरेन्द्र बंदीवाडेकर और हिमांशु कोडे ने कहा कि इस बारे में उन्हें कोई सबूत नहीं दिया गया। यह सामान्य निष्कासन नहीं था बल्कि यह बदले की भावना से प्रेरित लगता है।
अगस्त 2012 में बालाकृष्णन की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया कि कॉन्फ्रेंस के समय वह चिकनपॉक्स से पीडित थे। उन्हें लगातार एलर्जी हो रही थी और चेहरे के साथ पूरे शरीर पर दाने उभर आए थे। एलर्जी और तमाम परेशानियों की वजह से याचिकाकर्ता शर्ट नहीं पहन सकता और साथ ही इस स्थिति में शराब नहीं पी सकते थे।
बालाकृष्णन ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी सर्विस के पहले 10 महीनों में उनके खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत नहीं आई। यह पूरा मामला उन्हें नौकरी से निकालने के लिए रचा गया। उनका कहना था कि उनके खिलाफ जो दो शिकायतें आई थी, उस नाम और पद का व्यक्ति संस्थान में है ही नहीं।
5 सिंतबर 2013 को मामले की आखिरी सुनवाई करते हुए न्यायाधीशों ने निर्देश दिया था कि यह पद स्थायी आधार पर नहीं भरा जाना चाहिए और कोई भी नियुक्ति अगले निर्णय के अधीन होगी।
गौरतलब है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचाने के आरोप में एक कर्मचारी नौकरी से हटा दिया था। बैंक के जनरल मैनेजर बालाकृष्णन पर आरोप था कि 11-12 सिंतबर 2012 को चंडीगढ़ में होने वाली कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के बजाय बंद कमरे में दिन भर शराब पीते रहे। गेस्ट हाउस के केयर टेकर का कहना था कि जनरल मैनेजर नग्न अवस्था में कमरे में घूम रहे थे।
वन्नादिल बालाकृष्णन की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायाधीश एसजे वाजीफदार और केआर श्रीराम ने यह फैसला सुनाया। हिंदी में डॉक्टरेट बालाकृष्णन ने बैंक के फैसले को चैंलेज करते हुए कहा था कि उन्हें सुनवाई का मौका नहीं दिया गया। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में काम करने से पहले बालाकृष्णन 23 सालों तक केन्द्र सरकार के साथ जुड़े रहे। 16 नवंबर 2011 को बैंक ने एक साल के प्रोबेशन पर उन्हें सीधी नियुक्ति दी, लेकिन 1 दिसंबर 2012 को उन्हें हटा दिया गया।
एसबीआई के वकील हरिहर भावे ने अपनी दलील में बालाकृष्णन को शराबी बताया और कहा कि उन्हें बंद कमरे में नग्न अवस्था में घूमते हुए देखा गया था।
मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीशों ने पाया कि बैंक का निर्णय व्यक्ति की निजी और व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायाधीश वजीफदार ने कहा कि एक कर्मचारी बंद कमरे में क्या करता है? नियोक्ता इस आधार पर फैसला नहीं ले सकता।
बालाकृष्णन के वकीलों नरेन्द्र बंदीवाडेकर और हिमांशु कोडे ने कहा कि इस बारे में उन्हें कोई सबूत नहीं दिया गया। यह सामान्य निष्कासन नहीं था बल्कि यह बदले की भावना से प्रेरित लगता है।
अगस्त 2012 में बालाकृष्णन की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया कि कॉन्फ्रेंस के समय वह चिकनपॉक्स से पीडित थे। उन्हें लगातार एलर्जी हो रही थी और चेहरे के साथ पूरे शरीर पर दाने उभर आए थे। एलर्जी और तमाम परेशानियों की वजह से याचिकाकर्ता शर्ट नहीं पहन सकता और साथ ही इस स्थिति में शराब नहीं पी सकते थे।
बालाकृष्णन ने अपनी याचिका में कहा था कि उनकी सर्विस के पहले 10 महीनों में उनके खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत नहीं आई। यह पूरा मामला उन्हें नौकरी से निकालने के लिए रचा गया। उनका कहना था कि उनके खिलाफ जो दो शिकायतें आई थी, उस नाम और पद का व्यक्ति संस्थान में है ही नहीं।
5 सिंतबर 2013 को मामले की आखिरी सुनवाई करते हुए न्यायाधीशों ने निर्देश दिया था कि यह पद स्थायी आधार पर नहीं भरा जाना चाहिए और कोई भी नियुक्ति अगले निर्णय के अधीन होगी।
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